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केरल: बाढ़ के बाद बीमारियों का खतरा, जानिए कैसे करें बचाव

केरल में बाढ़ का पानी घटने के साथ संक्रामक बीमारियों के खतरे की आशंका

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केरल में भारी बारिश से आई बाढ़ की वजह से सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है. अब स्वास्थ्य जानकारों की राय है कि बाढ़ का पानी घटने के साथ हालात संक्रामक बीमारियों के अनुकूल हो जाएंगे.

अभी तक केरल से किसी भी संक्रामक बीमारी के प्रकोप की सूचना नहीं है. लेकिन राज्य को दैनिक निगरानी के लिए कहा गया है, जिससे किसी भी प्रकोप के शुरुआती संकेतों का पता लगाया जा सके.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि संक्रामक बीमारियों, उनकी रोकथाम व नियंत्रण, सुरक्षित पेयजल, सफाई के कदम, वेक्टर नियंत्रण व अन्य चीजों पर राज्य के साथ स्वास्थ्य परामर्श साझा किया जा चुका है.

बाढ़ के हालात में खुद की सुरक्षा के लिए आपको क्या करना चाहिए और क्या नहीं, जानिए इससे जुड़ी कुछ जरूरी बातें.

जलजनित बीमारियों से बचाव

ऐसी किसी भी चीज का सेवन न करें, जो बाढ़ के पानी के संपर्क में आया हो. जहां तक संभव हो, ताजा पकाया हुआ खाना और सूखा राशन इस्तेमाल करें.

सर गंगा राम हॉस्पिटल के क्रिटिकल केयर और इमरजेंसी मेडिसिन में वाइस चेयरपर्सन डॉ सुमित रे के मुताबिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में सबसे अधिक खतरा जलजनित बीमारियों का होता है.

ऐसे क्षेत्रों में दस्त, पेचिश, हैजा और टायफायड जैसी बीमारियां फैलने की ज्यादा आशंका होती है. इनसे बचने के लिए सबसे जरूरी है कि स्वच्छ पानी पीया जाए. अगर साफ पानी की सप्लाई नहीं हो सकती है, तो पीने के पानी में क्लोरीन टैबलेट का इस्तेमाल करना चाहिए. 
डॉ. सुमित रे, सर गंगा राम हॉस्पिटल

बाढ़ के पानी से दूर रहें

जहां तक संभव हो, बाढ़ के पानी में उतरने से बचना चाहिए. अगर उतर भी रहे हैं, तो गड्डे और खुले मैनहोल का पता लगाने के लिए लंबी छड़ी का इस्तेमाल करना चाहिए.

केरल में बाढ़ का पानी घटने के साथ  संक्रामक बीमारियों के खतरे की आशंका
बाढ़ के पानी में चलते वक्त किसी लंबी छड़ी का इस्तेमाल करना चाहिए
(फोटो: एपी)

इस बात का खास ख्याल रखा जाना चाहिए कि पानी की धारा से भ्रम हो सकता है, पानी उथला या गहरा हो सकता है. बहाव तेज होने से आपका संतुलन बिगड़ सकता है, जिसकी वजह से चोट लग सकती है और इसके साथ इंफेक्शन का खतरा भी रहता है.

बाढ़ के पानी से संपर्क आपको बैक्टीरियल और वायरल, किसी भी तरह के संक्रमण से ग्रस्त कर सकता है. इसलिए जरूरी है कि बाढ़ के पानी से संपर्क होने के बाद जितना जल्दी हो सके नहा लेना चाहिए. बाढ़ के पानी से संपर्क पर सबसे ज्यादा खतरा कृमि संक्रमण (worm infestation) का होता है, जिससे पेट से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं. 

गर्म और आर्द्र मौसम में लेप्टोस्पायरोसिस (संक्रमित जानवरों के मूत्र से फैलने वाली बैक्टीरियल बीमारी) संक्रमण की भी ज्यादा आशंका होती है. बाढ़ के हालात में लेप्टोस्पायरोसिस के मामले ज्यादा देखे जाते हैं.

लेप्टोस्पायरोसिस यानी रैट फीवर का बढ़ता खतरा

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लेप्टोस्पायरोसिस यानी रैट फीवर की चपेट में आकर अब तक राज्य के अलग-अलग हिस्सों में 19 लोग जान गंवा चुके हैं.

सोमवार को भी राज्य में रैट फीवर के 123 संदिग्ध मामले सामने आए, वहीं 71 मामलों में रैट फीवर की पुष्टि हो चुकी है. लेकिन राज्य की स्वास्थ्य मंत्री के.के. शैलजा ने आश्वस्त किया है कि लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्लयूएचओ) के अनुसार लेप्टोस्पायरोसिस यानी रैट फीवर बैकटीरिया से फैलने वाली बीमारी है जो मनुष्यों और जानवरों दोनों को प्रभावित करती है. मनुष्यों को इस बीमारी का संक्रमण जानवरों के मूत्र या मूत्र-दूषित पानी के साथ सीधे संपर्क में आने से होता है. ये बैकटीरिया शरीर पर किसी भी प्रकार की खुली हुई चोट, मुंह, नाक और आंखों के जरिए शरीर में प्रवेश करता है.

संक्रमण, जो बाढ़ के बाद महामारी के रूप में ले सकता है, वह है लेप्टोस्पायरोसिस. बाढ़ से चूहों की संख्या में वृद्धि हो जाती है. उनके मूत्र में लेप्टोस्पायर की बड़ी मात्रा होती है, जो बाढ़ वाले पानी में मिल जाती है.
डॉ के. के. अग्रवाल, अध्यक्ष, हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया

बाढ़ के पानी से संपर्क के 72 घंटों के अंदर doxycycline (कई तरह के संक्रमण के खिलाफ प्रभावी एंटीबायोटिक) और azithromycin (एक एंटी बैक्टीरियल दवा) के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है. दवा की मात्रा बाढ़ के पानी और उसके संपर्क में रहने के समय पर निर्भर करती है.

अपोलो हॉस्पिटल के इंटरनल मेडिसिन में सीनियर कंसल्टेंट डॉ सुरनजीत चटर्जी के मुताबिक ये दवाएं आमतौर पर कोई नुकसान नहीं पहुंचाती हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल डॉक्टर या पब्लिक हेल्थकेयर वर्कर की देखरेख में ही किया जाना चाहिए. 

नमी और इलेक्ट्रिक शॉक से बचाव

अगर छत या दीवार गीले हैं, तो पंखा बंद ही रखें और स्वीच बॉर्ड को न छुएं. साथ ही बिजली के तार और अन्य सामानों से एक निश्चित दूर पर रहें. चूंकि पानी विद्युत का सुचालक होता है, ऐसे में बिजली का झटका लगने का खतरा रहता है.

केरल में बाढ़ का पानी घटने के साथ  संक्रामक बीमारियों के खतरे की आशंका
अधिकारियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती राज्य भर में 5,500 से अधिक राहत शिविरों में रह रहे 7 लाख से अधिक लोगों के प्रबंधन को लेकर है
(फोटो: पीटीआई)

साथ ही फर्नीचर और गीली दरी के बीच एल्यूमिनियम फॉयल लगाया जाना चाहिए.

मक्खी-मच्छर से फैलने वाली बीमारियों से बचाव

ठहरा हुआ पानी मच्छरों के लिए प्रजनन स्थल बन जाता है, इस तरह वेक्टर-जनित बीमारियों की संभावना में वृद्धि होती है.
डॉ के. के. अग्रवाल, अध्यक्ष, हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया

बाढ़ के बाद मक्खी और मच्छरों से फैलने वाली बीमारियां जैसे टायफायड और दस्त जैसी बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए जरूरी है कि कहीं पर भी पानी का भराव न रह जाए. इसके साथ ही मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों से बचने का सबसे अच्छा तरीका सोते वक्त मच्छरदानी का इस्तेमाल करना है.

इनपुट- आईएएनएस और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण

(ये Fit पर पब्लिश हुई स्टोरी है, जिसे हिंदी में सुरभि गुप्ता द्वारा अनुवाद किया गया है.)

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