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सेक्स की अदालत: पीरियड और उससे जुड़े मिथ को समझिए

जो खून जीवन का सृजन करने की शक्ति देता है, भला उसके लिए शर्मिंदा क्यों होना, उसे ‘गंदा’ क्यों मानना?

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भारतीय समाज का एक बड़ा तबका मानता है कि महिलाओं में होने वाली माहवारी की प्रक्रिया अपवित्रता है. ‘अपवित्रता’ का आलम ये है कि इस दौरान महिलाओं को कई मान्यताओं से गुजरना पड़ता है, जिससे वो रसोईघर में नहीं जा सकती, वो खाना नहीं बना सकती, पूजा नहीं कर सकती.

ये हालत देश के ग्रामीण इलाकों का ही नहीं है, शहरों में भी ऐसा ही किया जाता है. जिस समय अपना ध्यान रखने की जरूरत होती है, उस वक्त लड़कियां ये सब झेलती हैं.

हम इस टाॅपिक पर बात इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि इन दिनों सोशल मीडिया पर एक वेब सीरीज वायरल हो रही है, जिसका नाम है 'सेक्स की अदालत'. ये एक कोर्टरूम ड्रामा है, जिसमें कुछ किरदार वकील, जज, अभियुक्त बनकर सेक्स से जुड़े मिथ और धारणाओं पर बात करते हैं.

पाॅपुलेशन फाउंडेशन आॅफ इंडिया की ओर से ये सीरीज शुरू की गई है. इस सीरीज के एपिसोड में मास्टरबेशन, वर्जिनिटी, पॉर्नोग्राफी, मेंस्‍ट्रुएशन (माहवारी) जैसे मुद्दों पर बात की गई है.

सीरीज के इस एपिसोड में बारीकी से समझाया गया है कि पीरियड्स के वक्‍त शरीर में क्या-क्या होता है, क्यों होता है? साथ ही महिलाओं को उस दौरान 'अछूत' समझे जाने की धारणा पर चोट की गई है.

देखिए इस मुद्दे पर ये खास वीडियो.

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