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विश्व पर्यावरण दिवस: आपके नल का पानी भी बिगाड़ सकता है आपकी सेहत 

प्लास्टिक से भरा है आपके पीने का पानी

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आपको कैसा लगेगा जब आपसे ये कहा जाए की आप जो पानी पीते हैं, उसमें प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण हैं. जाहिर है आपको बहुत हैरानी होगी और आप परेशान हो जाएंगे.

जी हां अब से आपके घर के पानी से मिलने वाले तत्वों की लंबी फेहरिस्त में माइक्रोप्लास्टिक का नाम भी जोड़ लीजिए.

ऑर्ब मीडिया ने हाल ही में एक रिसर्च किया है, जिसके मुताबिक दुनिया भर से लिए गए टैप वॉटर सैंपल में 83 फीसदी पानी में माइक्रोप्लास्टिक्स पाया गया है.

भारत इस मामले में तीसरे नंबर पर है, जहां का 82.4 फीसदी टैप वाटर दूषित पाया गया. अमेरिका पहले नंबर पर था और लेबनान दूसरे नंबर पर.

भारत में रिसर्च के लिए इस्तेमाल किया गया टैप वॉटर दिल्ली से लिया गया था.

हालांकि जर्मनी और फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों के पानी में प्रदूषण कम पाया गया, लेकिन वहां भी 72 फीसदी पानी दूषित था.
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भारतीय आंकड़े

नई दिल्ली में 17 जगहों से टैप वॉटर सैंपल लिए गए थे, जिनमें से 14 में माइक्रोस्कोपिक प्लास्टिक फाइबर पाया गया था.

वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट के आंकड़े बताते हैं कि 13 करोड़ भारतीय उन इलाकों में रहते हैं, जहां का ग्राउंड वॉटर प्रदूषित है.

इसलिए इसकी बहुत आशंका है कि आपके घरों में आने वाला टैप वॉटर भी बहुत ज्यादा प्रदूषित हो.

भारत में प्रदूषण को रोकने के लिए बनाई गई संस्था केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर दिन 15,342 टन प्लास्टिक वेस्ट पैदा होता है और उनमें से केवल 9205 टन को ही रीसाइकल किया जाता है.

भारत की तटरेखा यानी कि समुद्री किनारा 7500 किलोमीटर है. ऐसा अनुमान है कि 2025 तक भारत मरीन प्लास्टिक उत्पादन करने वाला पांचवां सबसे बड़ा देश बन जाएगा.

और ऐसे में जबकि भारत अनियमति मॉनसून और फ्रेश ड्रिंकिंग वॉटर की कमी से जूझ रहा है, ये आंकड़े किसी अच्छे भविष्य की तरफ इशारा नहीं कर रहे.

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स्वास्थ्य के लिए खतरा

पिछले रिसर्च ने बताया था कि पानी में किस तरह प्लास्टिक प्रदूषण पाया जाता है. उससे ये भी पता चला था कि प्रदूषित सीफूड के रास्ते माइक्रोप्लास्टिक लोगों के शरीर में जा रहा है.

लेकिन इस नए शोध ने दो नई चिंताएं पैदा कर दी हैं.

गैलवे-मेओ इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी की डॉक्टर ऐने मेरी माहोन ने इस रिसर्च को किया है. द गार्डियन अखबार से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि टैप वाटर सैम्पल में नैनोपार्टिकल्स पाए गए थे, जो शरीर में दाखिल हो सकते हैं.

सेंटर फॉर साइंस एंड इनवारमेंट (सीएसई) के वरिष्ठ वैज्ञानिक राजश्री बनर्जी ने क्विंट बातचीत के दौरान कहा कि अक्सर माइक्रोप्लास्टिक शरीर की कोशिकाओं को पार कर जाते हैं. ये माइक्रोप्लास्टिक्स जहर फैलाते हैं, जिनसे शरीर में मेटाबॉलिक डिसऑर्डर पैदा होता है. ये शरीर के लिए बहुत हानिकारक होते हैं.
इस क्षेत्र में अभी और रिसर्च किए जाने की जरुरत है, तभी हम ठीक तरह से जान सकेंगे कि इससे शरीर को कितना नुकसान होता है.
डॉक्टर बैनर्जी
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वाटर फिल्टर कितना कारगर

डॉक्टर बैनर्जी के मुताबिक वाटर फिल्टर माइक्रोन साइज के माइक्रोप्लास्टिक्स को तो रोक सकते हैं. लेकिन वाटर फिल्टर नैनो साइज के माइक्रोप्लास्टिक्स को रोक सकेंगे या नहीं कहना मुश्किल है.

नैनो साइज के माइक्रोप्लास्टिक्स वाटर फिल्टर से पहचान में नहीं आते और वो साफ पानी में मिल जाते हैं.

उन्होंने कहा कि अभी तक ऐसा कोई वाटर प्यूरीफायर उनकी नजर से नहीं गुजरा जो माइक्रोप्लास्टिक्स को फिल्टर करने का दावा करता हो.

तत्काल उपाय

आप किसी भी तरह के प्लास्टिक के इस्तेमाल से बच सकते हैं. हालांकि इस रिसर्च में ये बात नहीं बताई गई है कि माइक्रोप्लास्टिक्स से सेहत को किस तरह का नुकसान होता है, लेकिन फिलहाल सबसे जरुरी यही है कि उसके इस्तेमाल से बचा जाए.

प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक लगा कर ही हम माइक्रोप्लास्टिक्स को फैलने से रोक सकते हैं. प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को भी बड़े पैमाने पर लागू करने की जरुरत है.

राजर्शी बैनर्जी के अनुसार रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली चीजों और कपड़ों में भी माइक्रोप्लास्टिक्स के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने की जरुरत है.

(यह लेख 11 सितंबर 2017 को पहली बार छपा था. विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर इसे दोबारा छापा जा रहा है. )

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