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बजट प्रबंधन कानून दोबारा लिखने की जरूरत : मोंटेक सिंह

बजट प्रबंधन कानून दोबारा लिखने की जरूरत : मोंटेक सिंह

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 भोपाल, 18 फरवरी (आईएएनएस)| योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने राज्यों की बढ़ती वित्तीय जरूरतों और वित्तीय सीमाओं को देखते हुए वित्तीय जिम्मेदारी और बजट प्रबंधन कानून को नए संदर्भो में दोबारा लिखने की जरूरत बताई है।

 राजधानी के मिंटो हाल में 'परियोजनाओं के लिए वैकल्पिक वित्त व्यवस्था' विषय पर वित्त विभाग द्वारा आयोजित कार्यशाला को संबोधित करते हुए अहलूवालिया ने मंगलवार को कहा, "सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण आर्थिक अधोसंरचना परियोजनाओं में बजट की कमी को दूर करने के लिए निजी-सार्वजनिक भागीदारी (पीपीपी) का कानून बनाने पर भी विचार किया जाना चाहिए।"

अहलूवालिया ने आगे कहा कि परियोजनाएं बनाना, उनके लिए बजट प्रावधान करना और समय रहते उन्हें उपलब्ध संसाधनों में पूरा करना पूरे विश्व में एक मान्य प्रक्रिया है। यह भी तथ्य है कि सरकारों के वित्तीय संसाधन सीमित हैं, लेकिन परियोजनाएं महत्वाकांक्षी हैं।

उन्होंने कहा कि सरकारों के पास सिर्फ आर्थिक अधोसंरचना परियोजनाओं के अलावा भी सामाजिक जिम्मेदारियों के कई काम और प्राथमिकताएं होती हैं। दोनों काम एक साथ पूरा होने में कई चुनौतियां सामने आती हैं। नतीजतन, योजनाओं और परियोजनाओं की गति धीमी होने लगती है।

उन्होंने कहा कि सिर्फ बजट संसाधनों पर निर्भर रहने की परंपरा से हटकर सोचने की जरूरत है। ऐसी स्थिति में निजी क्षेत्र की ओर देखना पड़ता है। निजी क्षेत्र किसी भी प्रकार का खतरा उठाने से बचता है, जबकि सरकार हानि-लाभ से परे जन-कल्याण के उद्देश्य के लिए समर्पित होती है। दोनों क्षेत्रों की अपनी सीमाएं हैं, इसलिए दोनों क्षेत्रों के परस्पर सहयोग से काम करने के लिए एक उचित कानून की जरूरत नजर आती है। इस स्थिति से निपटने में वित्तीय जिम्मेदारी और बजट प्रबंधन कानून पूरी तरह से मददगार साबित नहीं हो पा रहा है।

अहलूवालिया ने कहा कि सरकार को परियोजनाओं के लिए वित्तीय खतरा उठाने के प्रबंधन में सहयोगी मित्र की भूमिका निभाने पर ध्यान देना होगा।

मुख्यमंत्री कमल नाथ ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि पूरे विश्व का आर्थिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। इसलिए वित्तीय संस्थाओं और वित्त की व्यवस्था करने वाली सरकारों को भी अपनी सोच में परिवर्तन लाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि भारत जैसे देश में महत्वाकांक्षी युवाओं का बड़ा समुदाय रहता है और उसकी महत्वाकांक्षाएं पूरी करने के लिए ज्यादा बजट संसाधनों की जरूरत है। बदले हुए और लगातार बदल रहे भारत और भारतीय राज्यों के लिए वित्तीय व्यवस्थाएं करना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। इसलिए बैंकों, राज्य सरकारों और निजी क्षेत्रों को परिवर्तन के साथ स्वयं को बदलने की और परिवर्तनों को अपनाने की जरूरत है। इसलिए पारंपरिक बजट निर्माण की प्रक्रिया से अलग हटकर वैकल्पिक व्यवस्थाओं और नवाचारी विचारों पर काम करने की जरूरत है। रोजगार पैदा करने वाली आर्थिक गतिविधियों पर लगातार ध्यान देना जरूरी हो गया है।

कार्यशाला में बैंकों, कार्पोरेट सेक्टर के बजट विशेषज्ञों, बजट निर्माण में विशेष योग्यता रखने वाले विद्वानों और विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भागीदारी की।

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