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ब्रिगेडियर चांदपुरी : जिन्होंने पाकिस्तानी टैंकों को खदेड़ दिया था

ब्रिगेडियर चांदपुरी को पीएम मोदी ने दिवाली सेलिब्रेशन के मौके पर याद किया

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पाकिस्तानी सेना के टैंकों द्वारा हमले को रोकने के लिए लोंगेवाला के युद्ध के दौरान पांच दिसंबर, 1971 की रात अपनी और अपनी टीम के वीरतापूर्ण कारनामे और अदम्य साहस के लिए प्रसिद्ध ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी हमेशा से ही एक योद्धा रहे चाहे वह चंडीगढ़ के नागरिक मुद्दे हो या कैंसर के खिलाफ उनका आखिरी संघर्ष।

1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान मेजर के पद पर तैनात कुलदीप सिंह ने राजस्थान के लोंगेवाला में प्रसिद्ध युद्ध की रात को अपनी चौकी पर आंच नहीं आने दी थी, जहां केवल 120 सैनिकों ने उन्नत पाकिस्तानी पट्टोन टैंकों और दो हजार से ज्यादा सैनिकों द्वारा पूरे जोर-शोर से किए हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया था।

कुलदीप सिंह के इस असाधारण नेतृत्व का परिचय दिए जाने पर उन्हें भारत सरकार द्वारा महावीर चक्र (एमवीसी) से सम्मानित किया गया था।

मधुरभाषी लेकिन मजबूत व्यक्ति ब्रिगेडियर कुलदीप सेना से सेवानिवृत होने के बाद चंडीगढ़ के सेक्टर 33 के अपने कोने के मकान में रहते थे हालांकि वह सामाजिक रूप से सक्रिय रहते थे।

लोंगेवाला युद्ध को जीतने के बाद पराजित पाकिस्तानी टैंकों की छत पर चढ़कर नाच रहे उनके सैनिकों की प्रसिद्ध तस्वीर उनके मकान के बैठक कक्ष में एक बड़े से फ्रेम में दीवार पर लगी हुई है। ब्रिगेडियर कुलदीप और उनकी टीम पर ऐतिहासिक ब्लॉकबस्टर फिल्म 'बॉर्डर' भी बनी थी, जो 1997 में रिलीज हुई थी, जिसका निर्देशन जे.पी. दत्ता ने किया थ। फिल्म में उनका एक्शन पैक्ड किरदार अभिनेता सन्नी देओल ने निभाया था।

ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह का जन्म 22 नवंबर, 1940 को एक गुर्जर सिख परिवार में हुआ था। उनके परिवार का संबंध अविभाजित भारत के पंजाब में मोंटागोमरी से था। उनके जन्म के बाद उनका परिवार बालाचौर के चांदपुर स्थानातंरित हो गया था।

ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी मद्रास (अब चेन्नई) से प्रशिक्षण पूरा करने के बाद ब्रिगेडियर कुलदीप को 1963 में पंजाब रेजिमेंट की 23वीं बटालियन में कमीशन किया गया था।

ब्रिगेडियर कुलदीप ने अपनी टीम के साथ और भारतीय वायुसेना के समर्थन से पाकिस्तानी सैनिकों को धूल चटा दी थी। लोंगेवाला के युद्ध में 22 पाकिस्तानी टैंकों को तबाह कर दिया गया था।

उन्होंने पश्चिमी सेक्टर में 1965 भारत-पाकिस्तान युद्ध में हिस्सा लिया था। युद्ध के बाद वह एक साल तक गाजा (मिस्र) में संयुक्त राष्ट्र के मिशन पर रहे। साथ ही वह दो बार मध्य प्रदेश के महौ स्थित प्रतिष्ठित पैदल सेना स्कूल के प्रशिक्षक रहे और वहां युद्ध प्रशिक्षण प्रदान किया।

साल 2018 में उनका निधन हो गया.

(ये खबर सिंडिकेट फीड से ऑटो-पब्लिश की गई है. हेडलाइन को छोड़कर क्विंट हिंदी ने इस खबर में कोई बदलाव नहीं किया है.)

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