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मैं हमेशा फ्रेम से परे देखता हूं : सुदीप चटर्जी

मैं हमेशा फ्रेम से परे देखता हूं : सुदीप चटर्जी

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मुंबई, 21 फरवरी (आईएएनएस)| 'चक दे इंडिया', 'धूम 3', 'बाजीराव मस्तानी', 'काबिल' और हाल ही में रिलीज हुई 'पद्मावत' जैसी हिंदी फिल्मों में अपनी प्रतिभा का मूल्य जोड़ने वाले राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता छायाकार सुदीप चटर्जी ने कहा कि एक दृश्यमूलक कथाकार के रूप में हमेशा कहानी का बड़ा पक्ष दिखाने के लिए फ्रेम से परे देखने की कोशिश करते हैं।

चाहे गुस्से में हॉकी कोच कबीर खान को दिखाना हो या मराठा योद्धा बाजीराव या घातक सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को, चटर्जी ने अपने कैमरे से प्रतिष्ठित कलाकारों को बेहतरी से उनके किरदार में ढलने में मदद की।

एक छायाकार के रूप में अपने काम की जानकारी साझा करते हुए, चटर्जी ने आईएएनएस को बताया, मैं हमेशा बड़े कैनवास के अति सूक्ष्मता और पैमाने पर कब्जा करने के लिए फ्रेम से परे देखता हूं, मुझे पता है कि हमारा दिमाग परे देखता है, इसलिए छायाकार के रूप में, मैं स्पेस को कैप्चर करने के लिए बुनियादी सिद्धांत का ध्यान रखता हूं, क्योंकि एक फ्रेम का भौतिक स्थान सीमित है, मन का नहीं है।

'इकबाल' और 'चक दे इंडिया' जैसे खेल-संबंधी फिल्मों के साथ कई तरह के विषयों की खोज के बाद, 'बाजीराव मस्तानी' और 'पद्मावत' जैसी फिल्मों पर काम कर चुके चटर्जी ने कहा कि एक छायाकार के लिए यह जरूरी है कि वह केवल फिल्म के निर्देशक के साथ व्यक्तिगत संबंध न हो, बल्कि सभी विभागों के लोगों के साथ मिलकर काम करे।

उन्होंने कहा, चाहे लाइट, सेट, कस्ट्यूम या अभिनेता हो, मैं उनके साथ निकटता से काम करता हूं, क्योंकि सभी प्रमुख सहयोगी हैं। जब सब कुछ सही तरीके से होता है, तो हम सभी जादू बिखेरते हैं।

चटर्जी ने कहा, मैं फिल्म कर रहा था और संजय फिल्म के मुख्य सहायक निदेशक थे। हम चैटिंग करते थे या एक साथ रिक्शा सवारी करते थे। विचारों का आदान-प्रदान था, ऐसे संबंध निश्चित रूप से रचनात्मक मन के दर्शन को समझने में मदद करते हैं।

3डी रूपांतरण और दृश्य प्रभावों के बढ़ते उपयोग पर उन्होंने कहा, 3डी और वीएफएक्स से फिल्म के दृश्यों को अलग ढंग से कल्पना करने का मौका मिला और इसने सिनेमा में बड़ा परिवर्तन लाया है।

(ये खबर सिंडिकेट फीड से ऑटो-पब्लिश की गई है. हेडलाइन को छोड़कर क्विंट हिंदी ने इस खबर में कोई बदलाव नहीं किया है.)

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