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'ट्रांसजेंडरों को पहचान साबित करने में लगते हैं 10 साल'

'ट्रांसजेंडरों को पहचान साबित करने में लगते हैं 10 साल'

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 नई दिल्ली, 20 जनवरी (आईएएनएस)| एलजीबीटीक्यू समुदाय ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय ने भले ही धारा 377 को हटा दिया है और समलैंगिकता को अपराध मानने से इनकार कर दिया है, फिर भी समाज में ट्रांसजेंडरों और एलजीबीटीक्यू को कानून, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, मीडिया रिपोर्टिग में भेदभाव सहित विभिन्न मोचरें पर समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

  समुदाय का कहना है कि अभी ट्रांसजेंडरों को अपनी पहचान साबित करने में 10 साल लग जाते हैं। लव मैटर्स की ओर से शनिवार को आयोजित 'कॉन्क्वीर' में देश के विभिन्न भागों से आए ट्रांसजेंडरों ने विभिन्न क्षेत्रों में सामने आने वाली परेशानियों और समस्याओं को साझा किया। लव, सेक्स और रिलेशनशिप पर काम करने वाले एनजीओ लव मैटर्स ने केशव सूरी फाउंडेशन की साझेदारी में 'कॉनक्वीर 2019' सम्मेलन का आयोजन किया।

संस्था की ओर से जारी बयान के अनुसार, सम्मेलन में ट्रांसजेंडरों ने एकजुट होकर कहा कि समुदाय के साथ समाज के हर स्तर पर होने वाले भेदभाव को रोकने के लिए सख्त कानून बनाना वक्त की जरूरत है। कानूनी प्रक्रिया को सरल बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि एलजीबीटी समुदाय से भेदभाव रोकने के लिए टीजी विधेयक बनाया गया था, लेकिन इसमें कमियां हैं और समलैंगिकों से भेदभाव पर लगाम लगाने के लिए सख्त प्रावधान नहीं हैं।

बयान के अनुसार, ट्रांसजेंडरों ने कहा कि एलजीबीटी और ट्रांसजेंडरों के साथ सरकारी अस्पतालों में भेदभाव किया जाता है। सरकारी अस्पतालों में लिंग परिवर्तन की सुविधा नहीं है। प्राइवेट अस्पतालों में काफी पैसा लगता है। सामाजिक, मानसिक, शारीरिक और लिंग परिवर्तन में आने वाली परेशानियों से समुदाय में आत्महत्या की दर बढ़ती जा रही है। आंकड़े उपलब्ध न होने से आत्महत्या की वजहों का अभी ठीक ढंग से पता नहीं चल पाया है।

उन्होंने कहा कि समाज के कुछ लोगों में यह गलत धारणा फैली है कि ट्रांसजेंडर एचआईवी फैलाते हैं। एमबीबीएस कोर्स में रिजिवन कर इस भ्रांति को दूर किया जाना आज के वक्त की जरूरत है।

इस अवसर पर लव मैटर्स की कंट्री हेड विथिका यादव ने कहा, "हम ट्रांसजेंडरों की समस्याओं के समाधान के लिए अपने इस प्लेटफॉर्म को फाउंडेशन की तरह इस्तेमाल करने की उम्मीद कर रहे हैं। हमारा मानना है कि 'कॉनक्वीर' में उठाई गई समस्याएं घर-घर तक पहुंचेंगी और समाज के लोग हर स्तर पर उपेक्षा के शिकार इस समुदाय की समस्याओं और परेशानियों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे।"

(ये खबर सिंडिकेट फीड से ऑटो-पब्लिश की गई है. हेडलाइन को छोड़कर क्विंट हिंदी ने इस खबर में कोई बदलाव नहीं किया है.)

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