“मुझे अपने अनुभवों के आधार पर यह लगता है कि कॉलेजियम में लोग गुट बना लेते हैं. राय और तर्क रिकॉर्ड किए बिना ही चयन हो जाता है. दो लोग बैठकर नाम तय कर लेते हैं और बाकी से ‘हां’ या ‘ना’ के लिए पूछ लेते हैं. कुल मिलाकर कॉलेजियम सबसे अपारदर्शी कार्यप्रणाली बन गई है, इसलिए मैं अब कॉलेजियम की मीटिंग में शामिल नहीं हो पाऊंगा.”
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज और संविधान पीठ ‘कॉलेजियम’ के 5 मेंबर्स में से एक, जे. चेल्मेश्वर ने शनिवार को जब यह बयान दिया, तो धमाका हो गया.
न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने की मानसिकता से बनाए गए कॉलेजियम सिस्टम पर उन्होंने पक्षपात करने का आरोप लगाया. साथ ही कहा कि कुछ लोग ही न्यायपालिका की स्वतंत्रता का फायदा उठा रहे हैं. और तो और, इस प्रणाली में मजबूत मेरिट वाले और लायक लोगों के लिए कोई स्थान नहीं रह गया है.
फिर मंगलवार, 6 सितंबर को खबर आई: इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज की नियुक्ति के लिए भेजे गए 44 नामों में से 11 को कॉलेजियम ने रिजेक्ट कर दिया. साथ ही कर्नाटक हाई कोर्ट की सिफारिश पर भेजे गए 10 नामों में से 8 को भी मना कर दिया गया. कारण बताया गया कि रिजेक्ट किए गए जजों के सीनियर जजों और राजनेताओं से रिश्तेदारी थी.
सवाल उठता है कि क्या कॉलेजियम के इस फैसले को जे. चेल्मेश्वर के बयान का इंपैक्ट माना जाए?
...पर ये कॉलेजियम है क्या?
- देश की अदालतों (सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट) में जजों की नियुक्ति की प्रणाली को ‘कॉलेजियम सिस्टम’ कहा जाता है.
- 1993 से लागू इस सिस्टम के जरिए ही जजों के ट्रांसफर, पोस्टिंग और प्रमोशन का फैसला होता है.
- कॉलेजियम 5 लोगों का एक समूह है. इसमें भारत के चीफ जस्टिस समेत सुप्रीम कोर्ट के 4 सीनियर जज मेंबर हैं. सीनियर जज जे चेल्मेश्वर इसी समूह में मेंबर हैं.
- कॉलेजियम के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एआर दवे, न्यायमूर्ति जे एस खेहर और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा हैं.
- कॉलेजियम कथित तौर पर व्यक्ति के गुण-कौशल का मूल्यांकन करता है और उसकी नियुक्ति करता है. फिर सरकार उस नियुक्ति को हरी झंडी दे देती है.
- इस सिस्टम को नया रूप देने के लिए एनडीए सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) बनाया था. यह सरकार द्वारा प्रस्तावित एक संवैधानिक संस्था थी, जिसे बाद में रद्द कर दिया गया.
- NJAC में 6 मेंबर रखने का प्रस्ताव था, जिसमें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के साथ SC के 2 वरिष्ठ जज, कानून मंत्री और विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ीं 2 जानी-मानी हस्तियों को बतौर सदस्य शामिल करने की बात थी.
- लेकिन इसे यह कहकर रद्द किया गया कि जजों के सिलेक्शन और अपॉइंटमेंट का नया कानून गैर-संवैधानिक है. इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर असर पड़ेगा.
सीनियर जज जे चेल्मेश्वर के मुताबिक, कॉलेजियम में अब न तो ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता’ बची है, न ही प्रणाली में पारदर्शिता, क्योंकि स्वतंत्रता को कॉलेजियम के किन्हीं दो सदस्यों ने अपने हाथ में ले लिया है. जो इसका विरोध करते हैं, उसे कहीं दर्ज नहीं किया जाता.
बहरहाल आरोप गंभीर थे, तो इस मामले में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया टीएस ठाकुर को टिप्पणी करनी पड़ी. उन्होंने सिर्फ इतना कहा,
हम लोग इस मामले को सुलझा लेंगे.
काटजू ने भी कहा था- चुनकर लिए जाते हैं भ्रष्ट जज
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कण्डेय काटजू ने भी अपने ब्लॉग में कॉलेजियम पर तीखी टिप्पणी की थी. उन्होंने लिखा था, इस सिस्टम में ‘एक हाथ दो, एक हाथ लो’ वाला फॉर्मूला चलता है. लोग पक्षपात करते हैं और बाकी लोग अपने फायदे के लिए उसमें शामिल होते हैं. कुछ लोग अपने रिश्तेदारों को भी चुनते हैं. इसलिए अच्छे जज लाने में यह सिस्टम फेल है.
पिछले साल बेहतर विकल्प के लिए जब कॉलेजियम पर सुनवाई हुई, तब भी चेल्मेश्वर एकमात्र ऐसे जज थे, जिन्होंने इस सिस्टम का विरोध किया था और एनजेएसी का समर्थन किया था.
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