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सेहत को भारी नुकसान पहुंचा सकता है छोटे बच्‍चों का भारी बस्‍ता

अगर कम उम्र में ही बच्‍चे की पीठ में दर्द शुरू हो जाता है, तो आशंका है कि उसे जीवनभर यह समस्या झेलनी पड़ेगी.

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भारत
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स्‍कूली बच्‍चों का भारी बस्‍ता सेहत के नजरिए से बड़ी मुसीबत खड़ा कर सकता है.

एक सर्वे में कहा गया है कि भारी बस्ते ढोने वाले सात से 13 वर्ष के आयुवर्ग के 68 फीसदी स्कूली बच्चे पीठ में हल्के दर्द की समस्या से पीड़ित हो सकते हैं. यह हल्का दर्द बाद में गंभीर दर्द या कूबड़ तक में बदल सकता है.

सर्वे में पाया गया है कि सात से 13 वर्ष की आयु वर्ग के 88 फीसदी छात्र अपनी पीठ पर अपने वजन के 45 फीसदी से अधिक भार ढोते हैं, जिनमें आर्ट किट, ताइक्वांडो के उपकरण, तैराकी से संबंधित सामान, क्रिकेट की किट आदि शामिल हैं.

इन बच्चों को स्लिप डिस्क, स्‍पॉन्‍ड‍िलाइटिस, स्‍पॉन्‍डिलोलिस्थीसिस, पीठ में लगातार दर्द, रीढ़ की हड्डी के कमजोर होने और कूबड़ निकलने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है.
बी के राव, अध्यक्ष, एसोचैम

बाल स्कूली बस्ता अधिनियम, 2006 के अनुसार, स्कूल के बस्ते का वजन बच्चे के वजन के 10 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए. कानून के अनुसार, बालवाड़ी के छात्रों को कोई स्कूल बैग नहीं ढोना चाहिए और स्कूल से जुड़ी अथॉरिटी को बस्तों के बारे में दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए.

गंभीर होती जा रही है समस्या

अगर कम उम्र में ही बच्‍चे के पीठ में दर्द शुरू हो जाता है, तो इस बात की आशंका है कि उसे यह समस्या जीवनभर झेलनी पड़ेगी. यह सर्वे दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, मुंबई, हैदराबाद, पुणे, अहमदाबाद, लखनऊ, जयपुर और देहरादून समेत 10 शहरों में किया गया. इस दौरान 2500 से अधिक छात्रों और 1000 माता-पिता से बातचीत की गई.

सर्वे के दौरान अधिकतर अभिभावकों ने शिकायत की कि उनके बच्चे दिन में औसतन 20 से 22 किताबें और सात से आठ पीरियड की कॉपियां लेकर जाते हैं.

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