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क्या सिंधु समझौता तोड़ा जा सकता है?

भारत और पाकिस्तान के बीच मनमुटाव इस मुकाम पर आ गया है कि 56 साल पुराना सिंधु समझौता तोड़ने पर भी बात हो रही है

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भारत और पाक के बीच कड़वाहट की वजह से दोनों देशों के बीच सिंधु जल समझौता खतरे में पड़ सकता है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसके संकेत दिए हैं.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा है कि ऐसी किसी भी संधि के लिए परस्पर विश्वास और सहयोग बेहद जरूरी है. उन्होंने बताया कि संधि की प्रस्तावना में कहा गया है कि यह सद्भावना पर आधारित है.

क्या है सिंधु समझौता?

1960 में दोनों देशों के बीच यह समझौता हुआ था. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के सैन्य शासक मार्शल अयूब खान ने संधि पर हस्ताक्षर किए थे.

इस संधि के तहत भारत अपनी 6 नदियों का लगभग 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को देगा. इन नदियों में ब्यास, रावी, सतलज, सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों के पानी का दोनों देशों के बीच बंटवारा होगा.

क्यों हुआ समझौता?

1960 में पाकिस्तान के लोगों के लिए पानी समस्या सुलझाने में सहयोग करने के लिए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इसकी प्रस्तावना में लिखा है कि यह संधि सद्भावना के आधार पर हो रही है.

संधि के मुताबिक भारत इन 6 नदियों का पानी नहीं रोकेगा, वहीं जम्मू-कश्मीर के लोग इन नदियों का सिर्फ 20 प्रतिशत पानी ही इस्तेमाल कर सकेंगे.

यहां तक कि इन नदियों पर बांध बनाने से पहले भारत को पाकिस्तान से राय लेनी होगी.

सिंधु संधि टूटी तो?

पाकिस्तान की फसल का बड़ा हिस्सा इन नदियों पर ही निर्भर करता है. ऐसे में अगर भारत यह समझौता तोड़ते हुए पानी की सप्लाई रोक देता है तो पाकिस्तान के लोगों के लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है.

कुछ लोग यह समझौता तोड़ने को ‘जल परमाणु’ का नाम भी देते हैं. इसका मतलब यह है कि सिर्फ यह समझौता तोड़ देने से ही पाकिस्तान को बगैर हथियारों के हराया जा सकता है.
हर कूटनीतिक कदम के बारे में खुलकर बात नहीं की जा सकती है. स्वरूप ने कहा कि हमारा काम अपने आप बोलता है, और हमारे एक्शन के नतीजे आने शुरू हो गए हैं.
विकास स्वरूप, प्रवक्ता, विदेश मंत्रालय (समझौता तोड़ने के सवाल पर)

भारत पर क्या पड़ेगा असर?

क्योंकि यह समझौता पाकिस्तान के लिए लाइफ लाइन जैसा है. इस पर आंच आने पर पाकिस्तान सरकार पर जनता का प्रेशर काफी ज्यादा बढ़ जाएगा. ऐसे में यदि इसे लेकर बातचीत से समस्या हल नहीं हुई तो पाकिस्तान सरकार भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए दूसरे हथकंडे भी अपना सकती है.

हालांकि पाकिस्तान पिछले 56 साल में कई बार यह शिकायत कर चुका है कि उसे पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है, और वह कुछ मामलों में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए भी आगे गया है.

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