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UP चुनावः जब तीन सीटों पर हुआ था मुलायम Vs मुलायम का मुकाबला

समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम को तीन चुनावों में करना पड़ा था अपने नामाराशियों से मुकाबला

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भारत
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देश के सबसे बड़े सियासी परिवार के मुखिया और यूपी की समाजवादी पार्टी के पूर्व सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का नाम देश के कद्दावर राजनेताओं में शुमार हैं. लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब मुलायम को अपने नाम की वजह से परेशानी का सामना करना पड़ा और अपनी पहचान बचाने के लिए उन्हें अपने पिता के नाम का सहारा लेना पड़ा.

यूपी के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके मुलायम सिंह यादव के साथ कई बार ऐसा हुआ है जब उन्हें अपने ही नामवालों से चुनौती मिली. साल 1989 में पहली बार मुलायम सिंह यादव को उनके ही नाम वाले मुलायम सिंह यादव ने चुनौती दी.

चुनाव आयोग के आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 1989 में जनता दल ने मुलायम सिंह यादव को जसवंत नगर सीट से चुनाव मैदान में उतारा था. और इसी चुनाव में पहली बार मुलायम को इसी सीट पर उनके नाम वाले निर्दलीय प्रत्याशी मुलायम सिंह यादव पुत्र पातीराम ने पहली बार चुनौती दी थी. लिहाजा मुलायम सिंह को पहली बार अपनी पहचान बचाने के लिए अपने पिता सुघर सिंह का सहारा लेना पड़ा. मुलायम को उस दौरान 65 हजार 597 वोट मिले थे, जबकि उनके नामाराशि प्रतिद्वंद्वी को महज 1032 वोट ही हासिल हुए थे.

1991 में भी मिली थी नामाराशि से चुनौती

कुल मिलाकर वह आठ बार विधायक चुने गए मुलायम को इसी तरह की मुश्किल का सामना साल 1991 और 1993 के विधानसभा चुनावों में भी करना पड़ा था. साल 1991 में मुलायम जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ कर मुलायम जसवंतनगर सीट से जीते. उन्हें 47 हजार 765 मत मिले जबकि उनके नामाराशि को केवल 328 वोट मिले. इस साल हुए विधानसभा चुनाव में एक अन्य मुलायम सिंह भी नजर आए. बरौली विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़े नए मुलायम को महज 218 वोट ही हासिल हुए थे.

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तीन सीटों पर तीन नामाराशियों से हुआ था मुकाबला

मुलायम साल 1993 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की तीन सीटों जसवंत नगर (इटावा) शिकोहाबाद (फिरोजाबाद) और निधौली कलां (एटा) से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और तीनों ही सीटों पर जीत गए. सपा के गठन और राम मंदिर आंदोलन के बाद यह पहला चुनाव था. इसी चुनाव में मुलायम को तीनों विधानसभा सीटों पर अपने नामाराशियों से चुनौती का सामना करना पड़ा था.

जसवंत नगर में मुलायम को 60 हजार 242 वोट मिले, जबकि उनके नामाराशि निर्दलीय उम्मीदवार को केवल 192 मत हासिल हुए. शिकोहाबाद में मुलायम को 55 हजार 249 वोट हासिल हुए, जबकि उनके नामाराशि निर्दलीय प्रत्याशी को केवल 154 वोट मिले. निधौलीकलां में मुलायम सिंह यादव को 41 हजार 683 वोट मिले जबकि उनके नामाराशि निर्दलीय उम्मीदवार को महज 184 वोट मिले. बरौली सीट (अलीगढ़) से मुलायम सिंह सेहरा (निर्दलीय) को महज 164 वोट मिले.

साल 1985 में हुए विधानसभा चुनाव की बात करें तो मुलायम जसवंतनगर सीट से लोकदल की टिकट पर जीते. उनके नामाराशि मुलायम औरैया से चुनाव लड़े लेकिन उन्हें केवल 292 वोट मिले. मुलायम सिंह यादव साल 1980 का विधानसभा चुनाव जसवंतनगर से हार गये. वह चौधरी चरण सिंह की अगुवाई वाली जनता दल (सेक्यूलर) से चुनाव लड़े थे. उनके नामाराशि प्रतिद्वन्द्वी इंडियन नेशनल कांग्रेस (यू) के टिकट पर भरथना से लड़े और केवल 2367 वोट हासिल कर सके.

दिलचस्प बात यह है कि उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में मुलायम सिंह यादव के उतरने से पहले ही साल 1951 में निर्दलीय मुलायम सिंह गुन्नौर उत्तर सीट से लड़े थे और उन्हें 2944 मत हासिल हुए थे. मुलायम सिंह यादव साल 2007 में गुन्नौर और भरथना दोनों सीटों से लड़े और जीते. साल 1969 विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव जसवंतनगर सीट पर दूसरे नंबर पर थे. मुलायम सिंह यादव साल 1974 में जसवंतनगर से भारतीय क्रान्ति दल के टिकट पर जीते और साल 1977 में इसी सीट से जनता पार्टी (जेएनपी) के टिकट पर विजयी हुए. समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो रहे मुलायम सिंह यादव साल 1967 में पहली बार विधायक चुने गए थे.

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