शाम 6 बजकर 54 मिनट. मौरिस नगर पुलिस स्टेशन का गेट. पुलिसिया घूंसों से घायल चिल्लाते स्टूडेंट. पुरुष पुलिसवालों की मार से रोती-बिलखती लड़कियां... ये किसी फिल्म का सीन नहीं है, बल्कि मैं आपको 22 फरवरी 2017 की उस बर्बर शाम का आंखों देखा हाल सुनाना चाहता हूं, जिसे सुनकर आप परेशान हो जाएंगे.
वामपंथी विचारधारा से दुनिया बदलने को आमादा छात्र दक्षिणपंथी छात्रों से जुबानी जंग लड़ रहे थे. विचारधाराओं की जंग जारी थी. हिंसा के साथ प्रति हिंसा भी होने की आशंका थी. 22 फरवरी की सुबह दोनों पक्षों की झड़प में दोनों तरफ के कई छात्र घायल हुए थे. वामपंथी छात्र मौरिस नगर स्टेशन में एबीवीपी समर्थकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की मांग पर डटे हुए थे.
नारे पर नारे एक खाली आसमान में उछाले जा रहे थे. उस खाली आसमान के गवाह वहां मौजूद तमाम पत्रकार थे, जो इससे पहले कई बार ऐसी नारेबाजी से दो-चार हो चुके थे. कई कैमरामैनों के लिए ये हर रोज सुबह उठकर ब्रश करने जैसा था. उन्हें ठीक-ठीक पता था कि ये पूरा विरोध प्रदर्शन कैसे अपने चरम पर पहुंचेगा और फिर ठंडा हो जाएगा.
लेकिन 22 फरवरी की शाम कुछ अलग थी. कुछ भी वैसा नहीं हुआ जिसकी मुझे और मुझसे कई गुना ज्यादा वरिष्ठ पत्रकारों ने उम्मीद की थी. दिल्ली पुलिस एक बेहद शर्मनाक कांड को अंजाम देने वाली थी.
शाम ढल रही थी. ढलते सूरज के साथ कुछ ऐसा घट रहा था जो परेशान करने वाला था. पत्रकारों के माथों पर तनाव उतरना शुरू हो चुका था.
पत्रकारों को था कुछ अनिष्ट होने का अंदेशा
मौके पर मौजूद पत्रकार अपने करियर में कई बार पुलिसिया अत्याचार के गवाह बन चुके थे. लेकिन इस बार माहौल कुछ अलग शक्ल ले रहा था. ये शाम हर बीतते पल के साथ आदमखोर भेड़िये की गुहार जैसी डरावनी शक्ल अख्तियार कर रही थी. नारेबाजी अभी हो रही थी.
जवान दिल उन चोटों से अनजान थे जो कुछ पल बाद उनके शरीर और मन पर जीवन भर के लिए अख्तियार होने वाली थी.
पुलिसिया चेहरों पर उतर रहा था खून...
ढलती शाम के साथ ही मौरिस नगर स्टेशन के गेट पर मौजूद छात्रों को चेतावनी जारी हो चुकी थी. वामपंथी छात्रों के चारों और रस्सी से घेरा बन चुका था.
द क्विंट के कैमरे में दर्ज हुई दर्द और बर्बरता की दास्तान
आइसा समर्थक छात्रों के चारो ओर घेरा बनाकर पुलिस ने बर्बरता से उन्हें पीटना शुरू कर दिया.
हर तरफ कोहराम था. चीखें थीं. दर्द था. छात्रों की चीखों से आसमान फट रहा था. ये वो मौका था जब द क्विंट के लिए रिपोर्टिंग करते हुए मैं और हमारे सहयोगी शिव कुमार मौर्य ने पुलिसवालों और छात्रों के बीच जाकर पुलिस की बर्बर कार्रवाई को कैमरे पर रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया. टीवी कैमरे भीड़ के बीच में नहीं जा सके. लेकिन सैमसंग और आईफोन के दो कैमरों से लैस हम दो लोगों ने पुरुष पुलिसकर्मियों को लड़कियों को पीटते हुए देखा और कैमरे पर उनके इस जघन्य अपराध को रिकॉर्ड किया.
पुलिस ने हम पर हमला बोलकर रिकॉर्डिंग रोकने की कोशिश की. लेकिन मैंने और हमारे सहयोगी ने रिकॉर्डिंग जारी रखी.
जान हथेली पर रखकर पुलिस की बर्बरता को रिकॉर्ड करने का कारण सिर्फ एक था क्योंकि द क्विंट आपके सामने वो सच लाना चाहता था जो आपको किसी ने नहीं बताया.
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