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JNU में रिसर्च सीटों में 83% की कटौती, छात्र कर रहे हैं विरोध

सामाजिक न्याय के अपने सिद्धांतों और बुनियादी आधार पर बात करने वाले यूनिवर्सिटी के लिए ये फैसला सही है?

Published
भारत
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देश की प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) ने इस बार सेशन 2017-18 का प्रॉस्पेक्ट्स काफी देर से जारी किया. इस प्रॉस्पेक्ट्स के जारी होते ही देशभर के स्टूडेंट्स को झटका लगा.

रिसर्च सीटों में भारी कटौती कर दी गई है. यूनिवर्सिटी सिर्फ 194 सीटों पर ऐडमिशन लेगी जबकि पिछले साल ये संख्या 1174 थी.

यूनिवर्सिटी ने इंटिग्रेटेड एम.फिल-पीएचडी, जूनियर रिसर्च फेलोशिप और डायरेक्ट पीएचडी के लिए यूजीसी गजेट के आधार पर प्रॉस्पेक्टस जारी किया है. रिसर्च सीटों में 83% कटौती की गई है. यूनिवर्सिटी ने कमजोर तबके के लिए एम.फिल-पीएचडी के लिए डिप्रिवेशन प्वाइंट भी बंद कर दिए हैं. 
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स्कूल ऑफ फिजिकल साइंसेज, स्कूल ऑफ कंप्यूटेशनल ऐंड इंटिग्रेटिव साइंसेज और स्कूल ऑफ बायॉटेक्नोलॉजी में इस बार एक भी ऐडमिशन नहीं होगा. हिस्ट्री और इंग्लिश स्टडीज में भी इस साल एम.फिल और पीएचडी कोर्स के लिए सीट नहीं हैं.



सामाजिक न्याय के अपने सिद्धांतों और बुनियादी आधार पर बात करने वाले यूनिवर्सिटी के लिए ये फैसला सही है?
(फोटो: स्क्रीनशाॅट/ जेएनयू प्रॉस्पेक्टस 2017-18)
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यूजीसी के अनुसार एम.फिल / पीएचडी स्टूडेंट्स की संख्या सीमित कर दी गई है. अब एक प्रोफेसर 3 एम.फिल और 8 पीएचडी स्काॅलर्स से ज्यादा को गाइड नहीं कर सकते और एसोसिएट प्रोफेसर अधिकतम 2 एम फिल और 6 पीएचडी स्काॅलर को गाइड कर सकते हैं.

यही वजह है कि सीटों की संख्या में भारी कटौती की गई है.



सामाजिक न्याय के अपने सिद्धांतों और बुनियादी आधार पर बात करने वाले यूनिवर्सिटी के लिए ये फैसला सही है?
(फोटो: स्क्रीनशाॅट/ जेएनयू प्रॉस्पेक्ट्स 2017-18)

द क्विंट से बात करते हुए ए के पोद्दार, जेएनयू के सहायक रजिस्ट्रार (एडमिशन) कहते हैं कि

एम.फिल / पीएचडी के लिए उपलब्ध सीटों की संख्या सेंटर लेवल और स्कूल लेवल पर तय की गई थी. ये कैलकुलेशन यूजीसी के नियमों के मुताबिक स्टूडेंट्स को सुपरवाइज करने वालों की एलिजिबिलिटी के आधार पर की गई थी.
ए के पोद्दार, सहायक रजिस्ट्रार (प्रवेश), जेएनयू

सीट कट के मसले पर जेएनयू के कुछ स्टूडेंट्स ने हाई कोर्ट में अपील की थी, लेकिन उसे अदालत ने रद्द कर दिया.

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इसके अलावा एम.फिल और पीएचडी कोर्स में एडमिशन के लिए एक क्वालीफाइंग परीक्षा होगी और उसके बाद उम्मीदवार का सेलेक्शन इंटरव्यू के आधार पर होगा. यूनिवर्सिटी का कहना है कि ये फैसला 5 मई 2016 को जारी किए गए यूजीसी के नोटिफिकेशन के आधार पर लिया गया है. अब तक जो एंट्रेंस एग्जाम थे उसमें 70% मार्क्स लिखित के लिए रखे गए थे और 30% इंटरव्यू के लिए. लेकिन अब पहला पेपर सिर्फ 50% मार्क्स के साथ क्वालीफाई करना है और उसके बाद सेलेक्शन सिर्फ इंटरव्यू के आधार पर होगा यानी एक तरह से मौखिक परीक्षा के लिए 100% मार्क्स रखे गए हैं.

हालांकि जेएनयू यूजीसी के सामने इस फैसले पर दोबारा गौर करने के लिए कह सकता था लेकिन जेएनयू ने इसे अपनाना बेहतर समझा. जेएनयू के इस फैसले को लिए जाने के वक्त जब कुछ छात्रों ने इसका विरोध किया तो 9 छात्रों को सस्पेंड भी कर दिया गया. जेएनयू के शिक्षक संगठन ने भी इसका विरोध किया है.

पिछले एक साल से ज्यादा समय से विवादों के केंद्र में रहे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) को 2 मार्च को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की ओर से देश में सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय के लिए वार्षिक विजिटर्स अवार्ड मिला. समारोह के दौरान, राष्ट्रपति ने जेएनयू की एकैडमिक एक्सीलेंस की तारीफ की. लेकिन रिसर्च स्टूडेंट्स की संख्या में की गई कटौती इस पहचान को बनाए रख पाएगी? क्या नए यूजीसी नियम उच्च शिक्षा और रिसर्च को भारत में हाशिए से आए स्टूडेंट्स की पहुंच से दूर नहीं कर रहा?

सामाजिक न्याय के अपने सिद्धांतों और बुनियादी आधार पर बात करने वाला जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के लिए ये फैसला सही है?

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