हाल ही में आई फिल्म ‘हिंदी मीडियम’ में एक डायलॉग है- इस देश में अंग्रेजी जुबान नहीं है, क्लास है और इस क्लास में घुसने के लिए एक अच्छे स्कूल में पढ़ने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है. फिल्म में इस डायलॉग का इस्तेमाल देश में अंग्रेजी की बढ़ती अहमियत को दर्शाने के लिए किया गया है, लेकिन अंग्रेजी का ये ‘क्लास’ कम से कम वर्चुअल वर्ल्ड में तो टूटता जा रहा है.
जी हां, इंटरनेट तेजी से ‘हिंदी मीडियम’ होता जा रहा है. और ये कहने के लिए हमारे पास पुख्ता सबूत हैं. आज का एक सुखद सच ये है कि इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं का इस्तेमाल करने वाले यूजर अंग्रेजी इस्तेमाल करने वालों से कहीं ज्यादा हो चुके हैं.
सर्च इंजन गूगल और रिसर्च फर्म केपीएमजी की एक ज्वॉइंट रिपोर्ट में बताया गया है कि 2011 से 2016 के बीच भारतीय भाषाओं में इंटरनेट यूजर की तादाद सालाना 41% से बढ़ी और 2016 के अंत तक 23.4 करोड़ लोग अपनी-अपनी मातृभाषा में इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे. जबकि अंग्रेजी में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की तादाद 17.5 करोड़ थी.
रिपोर्ट कहती है कि अगले 5 सालों यानी 2021 तक देसी भाषाओं में इंटरनेट यूजर बेस 53.6 करोड़ तक पहुंच जाएगा, जबकि अंग्रेजी इंटरनेट यूजर बेस होगा करीब 20 करोड़. (देखें ग्राफिक्स) यानी ‘देसी’ इंटरनेट अंग्रेजी इंटरनेट से ढाई गुने से ज्यादा बड़ा हो चुका होगा.
स्मार्टफोन पर इंटरनेट का बढ़ता इस्तेमाल, देसी भाषाओं के वेब एप्लिकेशंस और ऐप, और भाषाई पहचान को बनाए रखने की ललक- ये तीन वजहें हैं जो देश में इंटरनेट की अंग्रेजीदा छवि को तोड़ रही हैं. गौरतलब है कि मातृभाषा में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले 99% लोगों ने स्मार्टफोन को इसका जरिया बनाया है. फिलहाल, देसी भाषा इंटरनेट यूजर्स में सबसे आगे है तमिल, इसके बाद आती है हिंदी.
डिजिटल लैंग्वेज रेनेसां
अनुमान है कि देश में अगले पांच साल तक इंटरनेट के हर नए 10 यूजर में से 9 देसी भाषा के होंगे. यही नहीं, इस समय तक अकेली हिंदी इंटरनेट यूजर ही अंग्रेजी यूजर को पीछे छोड़ चुके होंगे.
गूगल-केपीएमजी की रिपोर्ट ये भी कहती है कि देश में इंटरनेट ग्रोथ को बढ़ावा देने का काम हिंदी के अलावा मराठी, बांग्ला, तमिल, कन्नड़ और तेलुगू जैसी भाषाएं करेंगी.
इसे आप डिजिटल लैंग्वेज रेनेसां या डिजिटल भाषाई पुनर्जागरण भी कह सकते हैं. आखिर जब हर तरफ अंग्रेजी को सिर्फ एक ‘क्लास’ नहीं बल्कि ‘क्लास अपार्ट’ माना जाता है, ऐसे में इंटरनेट पर देसी भाषाओं की पकड़ उस ‘अंडरकरेंट’ का सबूत है जिसके बहाव को डिजिटल होते इंडिया में कोई नहीं रोक सकता.
इस वक्त इंटरनेट पर खबरें यानी डिजिटल न्यूज का इस्तेमाल करने वाले देसी यूजर्स की तादाद है 10.6 करोड़ जो 2021 तक बढ़कर 28.4 करोड़ पहुंच जाएगी. इसके मुकाबले अंग्रेजी में डिजिटल न्यूज के यूजर्स करीब 20 करोड़ होंगे. यानी डिजिटल न्यूज स्पेस में देसी भाषाएं तमाम न्यूज कॉन्टेंट प्रोवाइडरों के लिए एक बड़ा बाजार साबित हो सकती हैं.
यही नहीं, 3.2 करोड़ ‘देसी’ इंटरनेट यूजर्स के लिए डिजिटल न्यूज ही एक्सक्लूसिव मीडियम है, यानी वो खबरों के लिए सिर्फ इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं.
जहां तक बात है डिजिटल एंटरटेनमेंट की, तो देसी भाषाओं में इसका इस्तेमाल करने वाले फिलहाल 16.7 करोड़ हैं जो 2021 तक बढ़कर 39.2 करोड़ हो जाएंगे. इसमें सबसे आगे हैं हिंदी, बांग्ला और मराठी भाषा के यूजर्स.
डिजिटल एंटरटेनमेंट कैटेगरी अगले 5 सालों में क्षेत्रीय भाषाओं में डिजिटल विज्ञापन के लिए सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म साबित होगा.गूगल-केपीएमजी की रिपोर्ट
19वीं सदी के प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र ने मातृभाषा की अहमियत बताने के लिए लिखा था- निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल. बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल. इसका अर्थ है कि अपनी भाषा की तरक्की के बिना देश की तरक्की नहीं हो सकती और अपनी भाषा के ज्ञान के बिना मन को शांति नहीं मिल सकती. 30 भाषाएं और 1600 से ज्यादा बोलियों वाले हमारे देश में, अपनी भाषाओं में हो रही डिजिटल ग्रोथ को देखकर हम ये कह सकते हैं कि भारतेंदु हरिश्चंद्र का सपना शायद इंटरनेट के माध्यम से ही पूरा होने जा रहा है.
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