राजस्थान रॉयल्स (RR) से हार के बाद ये बात तो अब लगभग तय हो गई है कि पहली बार धोनी की चेन्नई सुपर किंग्स (CSK) IPL में प्ले-ऑफ में अपनी जगह नहीं बना पाएगी. इससे पहले ये कभी नहीं हुआ था.
महेंद्र सिंह धोनी (MS DHONI) ने अपनी क्रिकेट हमेशा अपनी शर्तों पर ही खेली. जिस दौर में भारतीय क्रिकेटर बड़े बाल रखने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे, धोनी ने इसे स्टाइल बना दिया. विकेटकीपर-बल्लेबाज और कप्तान के तौर पर तो धोनी ने भारतीय क्रिकेट में अमिट छाप छोड़ी है लेकिन एक बात जिसने धोनी को बाकी हर खिलाड़ी से जुदा किया वो थी उनकी क्रिकेट से प्यार के बावजूद एक दूरी बनाए रखने की असाधारण योग्यता, उनका निर्मोही होना. धोनी ने टेस्ट क्रिकेट को तब अलविदा कहा जब उनके पास आसानी से 100 टेस्ट वाले क्लब में शामिल होने के लिए सिर्फ कुछ ही मैच बचे हुए थे.
वन-डे क्रिकेट की कप्तानी भी लगभग सही समय में ही वक्त रहते हुए विराट कोहली को सौंप दी. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से भी धोनी ने आखिरकार (शायद भले ही थोड़ी देर से ही सही) संन्यास का फैसला उस वक्त ले ही लिया जब आलोचक उन पर शब्दों के तीर चलाते. लेकिन, यही कप्तान और खिलाड़ी आईपीएल में ऐसे फैसले लेने से क्यों हिचक रहा है?
ये ठीक है कि तीन बार IPL ट्रॉफी जीतने वाले कप्तान का आकलन सिर्फ एक खराब सीजन के जरिए नहीं हो सकता लेकिन जिस अंदाज में धोनी और उनकी टीम जूझी है और उससे आखिरी दौर में उन्हें झुंझलाते हुए, मायूस होते हुए, हारते हुए, कोसते हुए, बहाने ढूंढते हुए, अंपायर से उलझते हुए देखना (शायद ये उनका विदाई वाला साल भी साबित हो) बेहद निराशाजनक रहा है.
क्रिकेट कभी भी किसी भी खिलाड़ी को संपूर्ण होने का गुरूर होने नहीं देता है. इस खेल ने डॉन ब्रैडमन को आखिरी पारी में 4 रन बनाने नहीं दिए जिससे उनका औसत 100 का हो जाता, सचिन तेंदुलकर को 99 से 100 शतक पहुंचाने में इतनी देर लगवा दी कि उस ऐतिहासिक उपलब्धि की चमक ही फीकी पड़ गई. धोनी का सूरज जब धीरे-धीरे अस्त होता दिख रहा है तो उनके साथ भी लगभग वही कुछ हो रहा है जो महानतम खिलाड़ियों तक के साथ होता आया है.
ऐसे में क्या अब भी धोनी के पास मौका है कि इस IPL में कुछ ऐसे फैसले ले लें ताकि फिर से #THANKYOU MAHI ट्रेंड करने लगे? क्या धोनी ऐसा कह सकते हैं कि सीजन के बचे हुए मैचों में कप्तानी की जिम्मेदारी किसी युवा खिलाड़ी को दे दी जाए?
क्या वह कप्तानी की जिम्मेदारी और हार के नतीजे की परवाह किए बगैर बेफिक्र अंदाज में हेलिकॉप्टर शॉट खेलते हुए हमारी आंखों से ओझल हो सकते हैं ताकि क्रिकेट के मैदान पर फैंस के लिए माही की आखिरी यादें हमेशा के लिए सुनहरी हों जैसा कि वानखेडे स्टेडियम में 2011 वर्ल्ड कप का छक्का है ना कि 1993 में फरीदाबाद वन-डे में कपिल देव जैसे दिग्गज का लचकते हुए मैदान से बाहर होना.
धोनी ने हमेशा अपने फैसले अपनी ही मर्जी और अपनी शर्तों पर लिए. क्या IPL 2020 के खत्म होने से पहले वह इसमें एक और अध्याय जोड़ पाएंगे?
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