- मैं 5 साल में देश में 2 करोड़ लोगों को नौकरियां दूंगा
- मैं 6 महीने के भीतर सारी सड़कों के गड्ढे भरवा दूंगा
- मैं आपके लिए मंदिर, मस्जिद बनवा दूंगा
- मैं सत्ता में आया, तो आपके सारे कर्ज माफ कर दूंगा
- मैं सारे क्रिमिनल को जेल में बंद करवा दूंगा
- आपकी इनकम डबल कर दूंगा, कालधन वापस ले आऊंगा
चुनावी सीजन आते ही नेताजी पब्लिक से कैसे-कैसे वादे करते हैं, आप उसकी एक झलक ऊपर देख सकते हैं. लेकिन ऐसे वादों का आखिर होता क्या है? ...वादा कर, दरिया में डाल.
सज चुके हैं वादों के मंच
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के लोग वोटिंग के लिए तैयार हैं. 2019 में तो पूरे देश की ही किस्मत तय होने वाली है. ऐसे चुनावी सीजन में सजे-धजे मंचों से वादों की झड़ी लगनी शुरू हो चुकी है. ये सिलसिला आने दिनों में और तेज होगा.
चुनावी मंच से विकास की बड़ी-बड़ी बातें करने वालों के अजेंडे से जनहित के मुद्दे गायब हो जाते हैं. 5 साल बाद जब इनके रिपोर्ट कार्ड देखेंगे, तो मिलेगा निल बट्टे सन्नाटा. कई पार्टियों में धड़ल्ले से पाए जाने वाले ऐसे नेताजी को एक बार कबीरदास की कुछ साखियों (दोहों) पर गौर करने की जरूरत है.
आप भी देखिए कि कबीर की ये साखियां पढ़कर आपको किसी का चेहरा याद आता है क्या?
जो कहते तो बहुत हैं, लेकिन करते कुछ नहीं हैं, वे मुंह के लबार हैं. उनका मुंह परमात्मा के दरबार में काला होगा.
केवल बोलने से क्या होता है, अगर वैसे काम न किए जाएं. जैसे कागज के महल देखते ही गिर जाते हैं, वैसे ही ये सहज ही पतित हो जाते हैं.
कथनी तो शक्कर जैसी मीठी है, लेकिन करनी विष की लता जैसी है. जब ऐसी कथनी तो त्यागकर अच्छे काम किए जाएंगे, तब विष से भी अमृत पैदा हो सकेगा.
करनी रंचमात्र भी नहीं है, लेकिन कथनी दुनियाभर की. क्या ऐसी बातों से कोई प्रभु का दर्शन कर पाएगा?
जो बिना कुछ किए-धरे दिन-रात केवल बड़ी-बड़ी बातें करते रहते हैं, वे अज्ञानी हैं. ऐसे लोग कुत्ते के समान ही केवल भौंकते हैं.
जिसकी बोली कुछ और है, चाल कुछ और है, वह मनुष्य नहीं, श्वान है. वह बंधा हुआ ही यमलोक जाता है.
बिना कुछ किए केवल ज्ञान पिलाने वाले वैसे ही हैं, जैसे कोई बिना अन्न वाली भूसी को कूटता फिरे. इसका नतीजा वैसा ही होगा, जैसा बिना गोली के बंदूक छोड़ने पर होता है.
कुत्ते का नाम बाघ रख देने से वह सचमुच का बाघ नहीं हो जाता. जो विषय-वासना में पड़े हुए हैं, वो अगर खुद को साधु कहलवाने लगें, तो क्या वे साधु हो जाएंगे?
कबीर की इन साखियों को पढ़कर क्या लगा आपको? आज भी जगहों के नाम बदलकर वोटरों को रिझाने का खेल जारी है, भले ही वहां विकास के नाम पर कुछ हुआ हो या नहीं. जमीनी स्तर पर काम भले न दिखे, महंगाई-बेरोजगारी पर करारा प्रहार हो या नहीं, लेकिन चुनावी मंच से 'ठांय-ठांय' अभी भी जारी है.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)