ADVERTISEMENTREMOVE AD

‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ बिल: मिलेगी आजादी या होंगी कॉमेडी-ट्रेजडी? 

जरा सोचिए, अगर संसद में ये बिल सच में पास हो जाए, तो जिंदगी में क्या-क्या होगा....

story-hero-img
छोटा
मध्यम
बड़ा

क्या आप भी प्राइवेट नौकरीपेशा लोगों की उस जमात में शामिल हैं, जिसकी प्रोफेशनल लाइफ ने ऑफिस के बाहर भी जीना दूभर कर रखा है? क्या आप भी ऐसे एम्प्लॉई हैं, जिनके ऑफिस का काम घर तक पीछा नहीं छोड़ता? क्या आपका बॉस छुट्टी के दिन भी आपको फोन पर फोन और ईमेल पर ईमेल करके इतना तंग कर देता है कि एकबारगी आप झल्लाकर ये कहने को मजबूर हो जाते हैं, "ऊपरवाले! या तो इसे उठा ले, या मुझे"

अगर इनमें से एक भी सवाल का जवाब 'हां' में है, और इन समस्याओं से जान छुड़ाना चाहते हैं, तो अपने इष्टदेव से मनाइए कि 'राइट टू डिस्कनेक्ट' बिल संसद में पास हो जाए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने हाल ही में लोकसभा में ये बिल पेश किया है. हालांकि 'प्राइवेट मेंबर्स बिल' होने के नाते संसद के दोनों सदनों से इस बिल के पास होकर कानून बनने की गुंजाइश बहुत कम है. लेकिन जरा सोचिए, अगर ऐसा सच में हो जाए, तो जिंदगी में क्या-क्या होगा? एम्प्लॉई के वारे-न्यारे तो होंगे ही, साथ ही कैसे-कैसे ऊटपटांग नतीजे सामने आएंगे, ये भी गौर करने वाली बात है.

ऑफिस के बाद न फोन, न ईमेल!

बिल पास होने की सूरत में इसके नतीजों के 'पोस्टमॉर्टम' करने से पहले मोटे तौर पर ये जान लीजिये कि इस बिल के प्रावधान क्या हैं. आसान शब्दों में ये समझिए कि प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए काम खत्म कर ऑफिस से निकलने के बाद ऑफिस के किसी ईमेल या कॉल का जवाब देना जरूरी नहीं होगा. यानी अगर आप घर जाने के बाद ऑफिस से आने वाले कॉल को डिस्कनेक्ट कर देते हैं, तो इस पर कंपनी कोई एक्शन नहीं ले सकेगी.

इसके अलावा, अगर आपने ऑफिस से छुट्टी ली है या वीकली ऑफ है, तो आपका बॉस न तो आपको कॉल कर सकता हैं, न ही ईमेल पर कोई सवाल-जवाब.

मतलब ऑफिस टाइम के बाद बॉस आपको किसी तरह से परेशान नहीं कर सकता....या यूं कहिए कि आपके फुर्सत के लम्हों में वो आपका दिमाग नहीं खाएगा. आप बेहिचक-बेखौफ होकर उनके कॉल या ईमेल को इग्नोर मार सकते है. सोचकर ही चेहरे पर मुस्कान आ रही है न? तो आने वाले समय में ऐसा कोई कानून बने या न बने, उसको लेकर कुछ ‘खयाली पुलाव’ पकाने में हर्ज ही क्या है? जेहन को थोड़ा जायका ही मिलेगा.

एम्प्लॉई के 'नहले' पर बॉस का 'दहला'

सॉफ्टवेयर इंजीनियर विशाल सक्सेना के बॉस ने उसके घर को 'दूसरा ऑफिस' बनाने को मजबूर कर दिया था. एक्स्ट्रा घंटे काम करने के बाद भी जब वो थका-हारा घर पहुंचता, तो अक्‍सर प्रोजेक्ट को लेकर उसके बॉस के फोन आने शुरू हो जाते. वो फिर से अपना लैपटॉप खोलकर बैठता और बॉस को गालियां देते हुए बेमन से काम करने में जुट जाता.

'राइट टू डिस्कनेक्ट' का कानून बनते ही विशाल के हाथ तो जैसे कुबेर का खजाना लग गया. एक शाम वो ऑफिस से घर लौटकर चाय की चुस्कियां लेते हुए मजे से टीवी देख रहा था कि तभी फोन की घंटी बजी. स्क्रीन पर बॉस का नाम देखकर हमेशा की तरह विशाल ने मुंह बिचकाते हुए फोन को उठाया. लेकिन कॉल पिक करने से ऐन पहले उसका अंगूठा ठिठक गया. चेहरे पर एक शरारती मुस्कान खिली, और कॉल को डिस्कनेक्ट कर दिया.

हैरान-परेशान बॉस ने तुरंत एक एसएमएस भेजा - What's this? Call me back right now !"

विशाल ने रिप्लाई किया,  "Sorry Sir, but its my 'Right to Disconnect'. Will talk to you at the office tomorrow."

बॉस बेचारा झेंपकर खामोश रह गया.

कुछ दिन बाद विशाल की तबीयत खराब हुई. सुबह उसने बॉस को कॉल किया और बताया कि आज वो बीमार है, इसलिए ऑफिस नहीं आ सकता. पहले तो बॉस ने एक जोरदार ठहाका लगाया, उसके बाद कहा:

"सॉरी विशाल, अगर घर पर रहकर ऑफिस का कॉल अटेंड नहीं किया जा सकता, तो घर से किया हुआ कोई भी ऑफिशियल कॉल भी वैलिड नहीं माना जाएगा. इसलिए, पहले ऑफिस आकर अपना सिक लीव एप्लिकेशन दे जाओ, फिर जाकर डॉक्टर को दिखाओ."

अब झेंप कर खामोश रहने की बारी विशाल की थी.

हाथ से गई करोड़ों की डील

'फलानी' कंपनी का बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर अपने संभावित क्लाइंट के ऑफिस के कॉन्फ्रेंस रूम में प्रेजेंटेशन दे रहा है. उसके सामने उस कंपनी का सीईओ और कई डायरेक्टर बैठकर प्रेजेंटेशन सुन रहे हैं. पिछले 1 घंटे से कॉन्फ्रेंस रूम का माहौल बेहद गंभीर है, आखिर इसी प्रेजेंटेशन की कामयाबी पर करोड़ों की डील टिकी हुई है.

अचानक प्रेजेंटेशन के बीच सामने बैठे एक डायरेक्टर ने एक पेचीदा सा क्रॉस क्वेश्चन दाग दिया. मैनेजर साहब की फर्राटेदार स्पीच में स्पीड ब्रेकर लग गया. वो पहले तो ठिठके, फिर थोड़ा हिचके. जो सवाल डायरेक्टर ने किया था, उसका जवाब मैनेजर साहब के पास न था. माथे पर शिकन आई, और धड़कन तेज हो गई. अब करें तो करें क्या?

खैर, काबिल आदमी थे, सो ऐसे सिचुएशन को संभालना जानते थे. उन्होंने कहा, "प्लीज 1 मिनट का समय दीजिए, मैं अभी आपको जानकारी देता हूं."

अटके और भटके हुए मैनेजर साहब अपनी कंपनी के प्रोडक्ट डेवलपमेंट मैनेजर को कॉल लगाते हैं. लेकिन वो तो ऑफिस से घर जा चुका है और ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ बिल पास हो चुका है. मैनेजर बार-बार कॉल करते हैं और दूसरी तरफ अपने बच्चे की बर्थडे पार्टी में व्यस्त प्रोडक्ट डेवलपमेंट मैनेजर बार-बार कॉल डिस्कनेक्ट कर देता है.

ये सिलसिला कई दफे चला. बहुत हाथ-पैर मारने के बावजूद मैनेजर साहब उस क्रॉस क्वेश्चन का जवाब न दे पाए. इधर सामने बैठे सीईओ और डायरेक्टर्स के सब्र का बांध टूटा और गुस्सा मैनेजर साहब के ऊपर फूटा.

नतीजा ये हुआ कि हाथ आती हुई करोड़ों की डील आखिरकार कैंसल हो गई.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

डॉक्टर ने कॉल को नकारा, पेशेंट स्वर्ग सिधारा

"सिस्टर, जल्दी डॉक्टर खुराना को कॉल लगाइए, पेशेंट क्रिटिकल है." ICU में मरीज की उखड़ती सांसों को देखकर जूनियर डॉक्टर ने हड़बड़ाते हुए नर्स से कहा.

"सर, मैं कॉल कर रही हूं, वो फोन नहीं उठा रहे." नर्स ने हताश होकर जवाब दिया.

परेशान जूनियर डॉक्टर अब अपने फोन से सीनियर डॉक्टर को बार-बार कॉल करता है.

दूसरी तरफ डॉक्टर खुराना अपने घर में खर्राटे लेते हुए चैन की नींद सो रहे हैं.

डॉक्टर खुराना आज छुट्टी पर हैं. पहले छुट्टी के दिन भी वे हॉस्पिटल से आने वाले सभी कॉल्स का जवाब देते थे. लेकिन जब से ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ का कानून बना है, वे सोते वक्त अपना मोबाइल साइलेंट मोड पर कर देते हैं.

करीब 3 घंटे बाद जब डॉक्टर खुराना सोकर उठे, तो स्क्रीन पर जूनियर डॉक्टर और नर्स के 33 मिस्‍ड कॉल नोटिफिकेशन देखकर घबरा गए. उन्होंने कॉल बैक किया.

"सॉरी डॉक्टर, आई वाज स्लीपिंग...एनीथिंग सीरियस? ICU बेड नंबर 4 पेशेंट कैसा है अभी?"

उधर से जूनियर डॉक्टर ने गंभीर आवाज में जवाब दिया, "ही इज नो मोर सर"

देखें वीडियो - जौनपुर यूनिवर्सिटी VC के ‘ज्ञान’ का असर,  कुंदन बना कत्‍ली!

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×