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दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की बंपर जीत के 5 कारण

दिल्ली के चुनावी कैंपेन में बीजेपी ने पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह समेत केंद्रीय मंत्रियों की पूरी फौज उतार दी थी

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आम आदमी पार्टी के कार्यालय में जश्न का माहौल है. दिल्ली चुनाव नतीजों में आम आदमी पार्टी बहुमत हासिल करती नजर आ रही है. ताजा टैली के मुताबिक, आम आदमी पार्टी 63 सीटों पर आगे है, वहीं बीजेपी को महज 7 सीटें मिलती दिख रही हैं. कांग्रेस के खाते में कोई सीट नहीं दिख रही है.

बता दें कि दिल्ली के चुनावी कैंपेन में बीजेपी ने पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह समेत केंद्रीय मंत्रियों की पूरी फौज उतार दी थी. शाहीन बाग को भी बीजेपी ने मुद्दे की तरह उठाया, बीजेपी के कुछ नेताओं ने तो भारत Vs पाकिस्तान जैसा माहौल भी तैयार करने की कोशिश की. लेकिन अब आम आदमी पार्टी एक बार फिर बहुमत हासिल करती नजर आ रही है.

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ऐसे में जानते हैं कि वो 5 फैक्टर कौन से हो सकते हैं, जिनकी वजह से आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल जीत की हैट्रिक लगाते नजर आ रहे हैं.

काम पर फोकस, वोट मिले चौकस

अरविंद केजरीवाल इस चुनाव में लगातार कहते नजर आए कि इस बार का चुनाव काम पर लड़ा जा रहा है. साथ ही जनता काम पर ही वोट देगी. दिल्ली के सरकारी स्कूलों में जिस तरह का काम आम आदमी पार्टी सरकार ने किया है, उसकी सोशल मीडिया, देसी-विदेशी मीडिया में जमकर तारीफ हुई और केजरीवाल-सिसोदिया भी अक्सर चुनावी प्रचारों में सरकारी स्कूलों का जिक्र जरूर करते रहे.

पार्टी ने हेल्थ, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं पर काम किया है और इसको चुनाव में मुद्दा भी बनाया. बीजेपी के पास ऐसे मुद्दों पर आम आदमी को घेरने के लिए कोई हथियार नहीं दिखा. मोहल्ला क्लिनिक, बसों में मुफ्त ट्रैवल जैसी योजनाओं ने भी आम आदमी पार्टी की जीत का रोडमैप खींचा है.

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विपक्ष के पास सीएम का चेहरा नहीं

आम आदमी पार्टी की तरफ से साफ था कि चेहरा अरविंद केजरीवाल ही हैं. पार्टी लगातार विपक्ष से पूछती रही कि चेहरा कौन है, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ही अपने सीएम पद के दावेदार का ऐलान नहीं किया. बीजेपी अपने दिल्ली अध्यक्ष मनोज तिवारी को प्रमोट तो करती रही, लेकिन कभी ऐसा ऐलान नहीं किया गया कि वो सीएम पद के उम्मीदवार हैं. कांग्रेस की तरफ से तो कोई चेहरा ही सामने नहीं आया. ऐसे में ये आम आदमी पार्टी के लिए सीधी बढ़त रही, केजरीवाल हर पोस्टर, हर कैंपेन में नजर आए और उन्होंने खुद ही पूरे कैंपेन को लीड किया.

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सांप्रदायिक एजेंडे से किनारा

जहां बीजेपी ने पूरे चुनाव में शाहीन बाग को लेकर एक हिंदू बनाम मुसलमान का नैरेटिव खड़ा किया था उसी के ठीक उलटा केजरीवाल एंड टीम ने इन मुद्दों को खुद से दूर रखा. केजरीवाल की पार्टी की तरफ से सांप्रदायिक बयान बाजी ना करना भी आम आदमी पार्टी के लिए काफी मुफीद रहा. साथ ही आम आदमी पार्टी ने बीजेपी के नेताओं द्वारा केजरीवाल को नक्सल और 'आतंकवादी' कहे जाने को भी खूब भुनाया. और वोटरों में ये मैसेज देने की कोशिश की गई कि जहां आप पर वोट मांग रही है वहीं बीजेपी काम करने वाले को आतंकवादी कह रही है.

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कारोबारी वर्ग की नाराजगी

दिल्ली में दुकानों की सीलिंग भी पिछले कुछ सालों से बड़ा मुद्दा रहा है. कारोबारी वर्ग लगातार बीजेपी पर ये आरोप लगाती रही है कि एमसीडी और लोकसभा में बहुमत में रहने के बाद भी बीजेपी ने सीलिंग नहीं रुकवाई. इसके अलावा जीएसटी, नोटबंदी और मंदी की वजह से भी दिल्ली के कारोबारियों में बीजेपी से नाराजगी दिखी. जिसका फायदा सीधे तौर पर केजरीवाल को हुआ.


चुनाव से पहले हुए इंडिया टुडे एक्सिस के सर्वे में भी खुलासा हुआ था कि आम आदमी पार्टी ने पिछली बार की तरह गरीब तबके के सबसे ज्यादा वोट तो खींचे ही हैं, वहीं इस बार अमीरों का झुकाव भी केजरीवाल की तरफ रहा है. सर्वे के मुताबिक जो लोग 1 लाख रुपये महीने से ज्यादा कमाने वाले लोगों ने आम आदमी पार्टी को ज्यादा पसंद किया.

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कांग्रेस का सुपड़ा साफ

2015 दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी. वहीं आम आदमी पार्टी को एतिहासिक 67 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. अब 2019 में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिलती दिख रही है. लेकिन कांग्रेस के पीछे रहने का सीधा फायदा आप को हुआ है. कांग्रेस में लीडर की कमी, दिल्ली में प्रदेश अध्यक्ष को लेकर असमंजस में रहना, किसी भी बड़े नेता जैसे अजय माकन, सर्मिष्ठा मुखर्जी का चुनावी राजनीति से दूर रहना, चुनाव प्रचार में भी बैकफुट पर रहने का फायदा भी आप को होता दिख रहा है. बीजेपी जहां नरेंद्र मोदी और अमित शाह के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है वहीं आज के पास केजरीवाल का नाम है. लेकिन कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इस चुनाव से काफी हद तक दूरी बनाए रहे.

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