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सोशल मीडिया का स्यापा: अपने देश में भी दिख रहे भयंकर साइडइफेक्ट  

‘द सोशल डायलेमा’  में सोशल मीडिया के जिन डार्क साइड के बारे में बताया गया है उसकी काली परछाई भारत में दिख रही है.

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कुछ महीने पहले बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनाक्षी सिन्हा ने ट्विटर को गुडबाय कह दिया. चौंकाने वाली बात है ना? जिन सेलेब का कारोबार और रोजगार एक हद तक सोशल मीडिया के जरिए चलता है वो आखिर इससे क्यों तौबा कर रही हैं? इसके पीछे जो वजहें हैं उन्हें ही समझाया गया है हाल ही में नेटफ्लिक्स पर आए 'द सोशल डायलेमा' नाम के एक डॉक्यू ड्रामा में. सोशल मीडिया के जिन डार्क साइड के बारे में इस डॉक्यूड्रामा में बताया गया है उसकी काली परछाई भारत में दिख रही है. फेसबुक, ट्विटर, वॉट्सऐप (हालांकि डॉक्यू ड्रामा में वॉट्सऐप का जिक्र नहीं है) आदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के कारण भारत में भी कोहराम मचा हुआ है.

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‘द सोशल डायलेमा’  में सोशल मीडिया के जिन डार्क साइड के बारे में बताया गया है उसकी काली परछाई भारत में दिख रही है.
‘द सोशल डायलेमा’ में बताया गया है कि कैसे सोशल मीडिया ने हमारे ऊपर पूरी तरह से नियंत्रण कर रखा है और इसका इस्तेमाल निजी फायदे के लिए किया जा रहा है. वह साधन जिसका विकास लोगों को जोड़ने, पास लाने और प्यार बढ़ाने के लिए किया गया था, आज वही नफरत, हिंसा और झूठ फैलाने का जरिया बन गया है.

250 वाहनों में लगा दी आग

अगस्त में बेंगलुरु में कांग्रेस विधायक के भतीजे ने सोशल मीडिया पर एक भड़काऊ पोस्ट किया, जिसे बाद में हटा भी लिया गया. लेकिन तब तक कई लोग हंगामा और पत्थरबाजी करने लगे. देखते ही देखते भीड़ ने आगजनी शुरू कर दी और करीब 250 वाहनों को आग के हवाले कर दिया. इस घटना में 2 लोगों की मौत हुई और करीब 60 पुलिसकर्मी घायल हुए. 110 लोगों को गिरफ्तार किया गया.

सोशल मीडिया और सत्ता की साठगांठ

वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि फेसबुक की इंडिया पब्लिक पॉलिसी हेड अंखी दास ने नियमों को दरकिनार करते हुए बीजेपी को सहयोग किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्होंने बीजेपी नेताओं की हेट स्पीच के मामले में नरम रुख अपनाया और चुनावी कैंपेन में भी बीजेपी को फायदा पहुंचाया. संसदीय समिति इस मामले की जांच कर रही है.

‘द सोशल डायलेमा’  में सोशल मीडिया के जिन डार्क साइड के बारे में बताया गया है उसकी काली परछाई भारत में दिख रही है.
  • 2018 में बीबीसी द्वारा की गई रिसर्च में कहा गया था कि भारत में राष्ट्रवाद के नाम पर फेक न्यूज फैलाई जा रही है
  • आम चुनाव 2019 के पहले माइक्रोसॉफ्ट द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार इंटरनेट पर भारत में 64 प्रतिशत लोगों को फर्जी खबरों का सामना करना पड़ा है
  • MIT के दो रिसर्चर ने एक स्टडी कर बताया कि भारत में पब्लिक-पॉलिटिकल ग्रुप्स में शेयर होने वाली 13% तस्वीरें फेक होती हैं.
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अफवाह के चलते मॉब लिंचिंग

वॉट्सऐप के जरिए फैली अफवाह के कारण 2018-19 में बच्चा चोरी के शक में कई बेगुनाह लोगों की हत्या कर दी गई. असम में 2018 में जब कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर बच्चा चोर होने की अफवाहें फैल रही थीं. ऐसे में जब ग्रामीणों ने रात के करीब 8 बजे दो लोगों को गांव में देखा, तो बच्चा चोर होने के संदेह में भीड़ ने पीट-पीट कर उनकी हत्या कर दी, जबकि वह बच्चा चोर नहीं थे.

फैलाया जा रहा है प्रोपेगेंडा

सोशल मीडिया पर एक पूरी प्लानिंग के साथ प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा है. इसके तहत आम लोगों को जरूरी मुद्दों से भटकाने की कोशिश की जा रही है और काफी हद तक यह प्रोपेगेंडा कामयाब भी हो रहा है. आज फेसबुक, ट्वीटर, वॉट्सऐप पर कंगना रनौत और सुशांत को न्याय देने से संबंधित मैसेज देखने को मिले रहे हैं. लेकिन क्या यही आज देश की असली समस्या और मुद्दे हैं? नहीं, इन्हें प्रोपेगेंडा के तहत ट्रेंड कराया जा रहा है, जिससे लोगों का ध्यान बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था की गिरती स्थिति, बढ़ते कोरोना मामले, किसान आत्महत्या और चीन के खतरे जैसे जरूरी मुद्दों से हटाया जा सके.

‘द सोशल डायलेमा’  में सोशल मीडिया के जिन डार्क साइड के बारे में बताया गया है उसकी काली परछाई भारत में दिख रही है.
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आज सोशल मीडिया का इस्तेमाल ध्रुवीकरण की राजनीति करने के लिए किया जा रहा है. सोशल मीडिया पर तथ्य और सत्य को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है, जिससे हमारे अंदर अन्य के प्रति नफरत और गुस्सा पनप रहा है, जो धीरे-धीरे हिंसा का रूप ले लेता है. जब आम आदमी इन चीजों में फंसता है तो न सिर्फ उसका असल मुद्दों से ध्यान बंटता है, बल्कि सियासतदान अपना उल्लू सीधा करते हैं.

चुनावों को प्रभावित करता फेक न्यूज

भारत में चुनाव के दौरान सोशल मीडिया का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर वोटरों को प्रभावित करने के लिए किया जाता है. 2019 के आम चुनाव को तो भारत का पहला वॉट्सऐप चुनाव तक कहा गया. फेक न्यूज के माध्यम से वोटरों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की जाती है. इसके लिए विदेशी कंपनियों की मदद भी ली जाती रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत के कई चुनावों में कैंब्रिज एनालिटिका की सहयोगी कंपनी ओवलेने बिजनेस इंटेलिजेंस मदद कर चुकी है. कैंब्रिज एनालिटा वही कंपनी है, जिसपर फेसबुक के जरिए पिछले अमेरिकी चुनावों को प्रभावित करने के आरोप लगे.

सोशल मीडिया की लत

बाकी दुनिया की तरह अब भारत में भी लोग ज्यादा वक्त सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं. खासकर युवाओं के बीच इसकी ऐसी लत लग चुकी है कि इसके तमाम तरह के नुकसान दिखाई दे रहे हैं. पढ़ाई में नुकसान, अपनों के बीच घमासान, दोस्तों से दूरी बढ़ना, ये तमाम साइड इफेक्ट्स अब यहां भी नजर आने लगी हैं. नौबत ये है कि जब सोशल मीडिया डिटॉक्स की बातें हो रही हैं.

सोशल मीडिया की गंदगी से तंग आकर कई सेलेब्स ने हाल फिलहाल कहा है कि वो सोशल मीडिया को बाय-बाय कह रहे हैं. सोशल मीडिया से तंग आकर इसे छोड़ने की बात कहने वालों में शाहरुख, सलमान, आमिर, अनुराग कश्यप जैसे बड़े नाम हैं. जून में ही सोनाक्षी सिन्हा ने ट्विटर को गुडबाय कह दिया.

जिन सुशांत सिंह राजपूत की मौत को लेकर इन दिनों सोशल मीडिया अखाड़ा बना हुआ है, उन्होंने खुद इससे तंग आकर 2016 में ट्विटर को छोड़ दिया था. तो आप कब सोशल के स्यापे से दूर जा रहे हैं?

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