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नेता, कारोबारी और आम लोग WhatsApp छोड़ क्यों अपना रहे टेलीग्राम?

टेलीग्राम (Telegram) मैसेंजर एप्लीकेशन पर नेता, कार्यकर्ता, बिजनेसमैन, ब्यूरोक्रेट्स और आम लोग तेजी से आ रहे हैं.

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चुनाव नजदीक है और सियासी पार्टियों के 'हथियारों' में ब्रह्मास्त्र के तौर पर सोशल मीडिया शामिल है. ऐसे में पिछले कुछ महीनों से टेलीग्राम (Telegram) मैसेंजर एप्लीकेशन पर नेताओं, कार्यकर्ताओं, बिजनेसमैन, ब्यूरोक्रेट्स, मीडिया पर्सन और आम लोग तेजी से आ रहे हैं. WhatsApp का तोड़ कहे जाने वाले इस एप्लीकेशन में डेटा प्राइवेसी, ग्रुप में ज्यादा मेंबर समेत कई ऐसी खूबियां हैं, जो इसे किसी दूसरे प्लेटफॉर्म से बेहतर बना रहे हैं. उन लोगों के लिए ये बेहद खास है, जो किसी भी हालत में डेटा प्राइवेसी से समझौता नहीं करना चाहते.

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साथ ही जिन्हें सोशल मीडिया प्रचार का सबसे बड़ा माध्‍यम लगता है, उन्होंने टेलीग्राम अपना लिया है. ऐसा इसलिए, क्योंकि WhatsApp के बार-बार डेटा प्राइवेसी में सेंध की बात खारिज करने के बावजूद भी लोग उस पर खास भरोसा नहीं जता पा रहे हैं.

Telegram की खूबियों को जानने से पहले इसका संक्षिप्त इतिहास जान लेते हैं.

रूस के पॉपुलर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को बनाने वाले Pavel Durov को वहां का मार्क जकरबर्ग भी कहा जाता है. साल 2013 में Pavel Durov ने Nikolai Durov के साथ मिलकर टेलीग्राम बनाया.

टेलीग्राम (Telegram) मैसेंजर एप्लीकेशन पर नेता, कार्यकर्ता, बिजनेसमैन, ब्यूरोक्रेट्स और आम लोग तेजी से आ रहे हैं.
Pavel Durov
(फोटो: ट्विटर)

शुरुआत में इसका बेस रूस का सेंट पीट्सबर्ग था, लेकिन आईटी रेगुलेशन के दबाव की वजह से टेलीग्राम की टीम को शहर छोड़ना पड़ा. इसके बाद वो बर्लिन, लंदन और सिंगापुर में गए, लेकिन रेगुलशन के कारण बात वहां भी नहीं बन सकी. फिलहाल कंपनी का बेस दुबई में है.

कंपनी के मुताबिक, टेलीग्राम को हर महीने 20 करोड़ से ज्यादा लोग इस्तेमाल कर रहे हैं. इस चैट मैसेंजर पर भारत में भी दबाव बनता रहता है. पिछले साल ही ऐसी रिपोर्ट सामने आई थी कि भारत में टेलीग्राम पर बैन लगाने की तैयारी की जा रही है.

टेलीग्राम पर बढ़ता दबाव और इसकी खूबी में कनेक्शन है!

‘Since the day we launched in August 2013 we haven’t disclosed a single byte of our users’ private data to third parties.’
टेलीग्राम

इस सोशल मैसेंजर कंपनी ने अपने एक ब्लॉग में बताया था कि जब से कंपनी बनी है, तब से इसका डेटा किसी भी थर्ड पार्टी को शेयर नहीं किया गया. कंपनी का ये भी दावा है कि उसका कोई शेयर होल्डर या एडवर्टाइजर नहीं है, जिसे उसे अपनी डेटा रिपोर्ट देनी हो. साथ ही मार्केट, डेटा पर काम करने वाले और गवर्नमेंट एजेंसी का भी कंपनी से कोई सरकार नहीं है.

टेलीग्राम (Telegram) मैसेंजर एप्लीकेशन पर नेता, कार्यकर्ता, बिजनेसमैन, ब्यूरोक्रेट्स और आम लोग तेजी से आ रहे हैं.
साफ है कि दुनिया के कई देशों की सरकारें और राजनीतिक दलों के लिए काम करने वाली एजेंसियां ऐसे सोशल चैट मैसेंजर से डेटा हासिल करने में लगी रहती हैं. अगर कंपनी के दावे पर भरोसा करें, तो उस हिसाब से ये डेटा प्राइवेसी के लिहाज से काफी भरोसेमंद है और लोगों की पहली पसंद के तौर पर उभर रहा है.
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ज्यादा ग्रुप मेंबर, थोक में मैसेज भेजने में सहूलियत

भारत में तो थोक मैसेज भेजने के रवैये को आप समझते ही होंगे. गुड मॉर्निंग से लेकर लेकर गुडनाइट तक के मैसेज. सबसे अहम है पॉलिटिकल पार्टियों के मैसेज, अब तक वॉट्सऐप पर मैसेज की भरमार हो रही थी. वॉट्सऐप के एक ग्रुप में 256 लोग जुड़ सकते हैं, वहीं टेलीग्राम के एक ग्रुप में 2 लाख मेंबर जोड़े जा सकते हैं. जाहिर है कि सियासी दलों के लिए ये चैट मैसेंजर ज्यादा बड़ा प्लेटफॉर्म साबित हो रहा है.

टेलीग्राम (Telegram) मैसेंजर एप्लीकेशन पर नेता, कार्यकर्ता, बिजनेसमैन, ब्यूरोक्रेट्स और आम लोग तेजी से आ रहे हैं.

किसी भी कंटेंट पर सेंसरशिप नहीं

टेलीग्राम ने ये साफ-साफ बताया है कि किसी भी ग्रुप और चैट में जो बातें हो रही हैं, वो उस ग्रुप में शामिल लोगों के बीच की सहमति से ही हो रही हैं. ऐसे में किसी कंटेंट के खिलाफ कार्रवाई करने के आग्रह को वो मंजूर नहीं करेंगे. हालांकि कंपनी ने एब्यूज दर्ज कराने के लिए एक मेल आईडी जरूर दे रखी है. टेलीग्राम में मैसेज की प्राइवेसी की हालत आप ऐसे समझ सकते हैं कि पेरिस अटैक के वक्त कंपनी पर आरोप लगे थे कि वो ISIS के प्रोपेगेंडा को अपने प्लेटफॉर्म पर फैला रही है. दूसरी ओर कंपनी के मालिक इस बात को सिरे से खारिज कर रहे थे और डेटा भी नहीं दे रहे थे.

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