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समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे आई, पर पूरा-पूरा न आई...

पत्रकार संजय अहिरवाल की कविता में पढ़िए समाजवाद कैसे आया और कितना आया?

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लोहिया से लेकर जयप्रकाश तक एक सपना देखा गया था. देश में समाजवाद लाने का सपना. बड़े भारी आंदोलन हुए. हजारों लोग जेल गए. बिहार और उत्तर प्रदेश में भारी राजनीतिक आंधी मची. आंधी के बाद देश में डॉक्टर लोहिया और जयप्रकाश तेजी से उभरे, पर बाद में गुम हो गए.

फिर समाजवाद की कमान आई मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव जैसे युवा नेताओं के हाथ.

वरिष्ठ पत्रकार संजय अहिरवाल ने सम्मानीय कवि गोरख पांडेय के प्रति अपनी श्रद्धा जताते हुए उनकी कविता समाजवाद को अपने शब्दों में बयां किया है.

समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई

समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई

अमर सिंह के कंधा पर आई

शिवपाल के डंडा से आई

पैसा से आई, जायदाद से आई

परिवारवाद पर शहनाई बजाई, समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे...

नोटवा से आई, बोटवा से आई

मुलायम के घर में समाई, समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे...

गाँधी से न आई, आँधी से आई

सांप्रदायिकता ख़ूब फैलाई, समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे...

सपा से आई, जनता के ऊपर समाई

गुंडागर्दी के बल पर राज चलाई, समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे...

डालर से आई, पाऊंड से आई

देसवा के ग़रीब करते जाईं, समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे...

वादा से आई, लबादा से आई

जनता के बेवकूफ बनाई, समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे...

लाठी से आई, गोली से आई

लेकिन अंहिसा भाड़ में ले जाईं, समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे...

महंगी ले आई, ग़रीबी ले आई

मजूरा के न हो कोई कमाई, समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे...

छोटका का छोटहन, बड़का का बड़कन

लोहियावाद के चिथड़ी करते जाईं, समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे...

परसों ले आई, बरसों ले आई

उत्तरप्रदेश के फक्कडप्रदेश बनाई, समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे...

धीरे-धीरे आई, चुपे-चुपे आई

अँखियन पर काला चश्मा लगाई

अखिलेश के मुलायम से लडवाई

रामगोपलवा के नेता बनवाई

परिवारवाद बबुआ, बहुते जल्दी आई

उनके समाजवाद कभी न आई

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कवि गोरख पांडेय ने ये समाजवाद कविता साल 1978 में लिखी थी, जब देश की राजनीति तमाम तरह के झंझावातों से जूझ रही थी.

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