आम तौर पर सिगरेट पीने वाले लोग मानते हैं कि ई-सिगरेट शरीर के लिए कम खतरनाक होती है, क्योंकि इसमें खतरनाक धुआं, टार और कार्बनमोनोऑक्साइड नहीं होता है. लेकिन ई-सिगरेट से दिल और फेफड़ों में बीमारियों के कई मामले सामने आए हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) ई-सिगरेट पर रोक लगाने की मांग भी कर चुका है. ताजा रिसर्च में यह बात सामने आई है कि ई-सिगरेट की लत के शिकार लोग सामान्य सिगरेट पीने वालों से ज्यादा सिगरेट पीते हैं, जिससे कार्डियक सिम्पथैटिक एक्टिविटी एंडरलीन का लेवल और ऑक्सीडेंटिव तनाव बढ़ जाता है. ऐसा माना जाता है कि इससे दिल की समस्याओं का खतरा भी बढ़ जाता है.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. के.के. अग्रवाल और जनरल सेक्रेटरी डॉ. आर.एन. टंडन कहते हैं कि ई-सिगरेट से निकोटीन की लत लग सकती है.
ई-सिगरेट से कैंसर का खतरा अधिक
ई-सिगरेट में धुआं कम होता है, फिर भी दूसरे लोग इसके संपर्क में अधिक आते हैं. रिसर्च में, ई-सिगरेट के सेवन से कारसिजेंस जैसे फॉर्मडिहाइड, बैन्जीन और तंबाकू आधारित न्रिटोसेमीन्स पैदा होने का पता चला है.
डॉ. अग्रवाल बताते हैं कि ई-सिगरेट से कैंसर होने का खतरा एक पैकेट सिगरेट पीने की तुलना में 5 से 15 गुना होता है. धुआं रहित कुछ तंबाकू में तीन से चार गुना ज्याद निकोटीन होता है, जो दिल में जहरीलापन पैदा कर सकता है और ई-सिगरेट से यह खतरा टलने वाला नहीं है.
किशोरों के लिए चिंता का विषय
डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि एक दूसरे के साथ ऐसी सिगरेट का आदान-प्रदानल करने से टीबी, हेरप्स और हैपेटाइटिस जैसे वायरस वाले रोग फैल सकते हैं. किशोरों में ई-सिगरेट का बढ़ते उपयोग की वजह से यह और भी चिंता का विषय बन गया है. निकोटीन से दिमाग के विकास पर असर पड़ सकता है, जिससे ध्यान केंद्रित करने में परेशानी आ सकती है और गुस्से पर काबू पाना मुश्किल हो जाता है.
डॉ. अग्रवाल के अनुसार, ई-सिगरेट का उपयोग असल में तंबाकू जैसा ही है. धूम्रपान करने वाले इसे छोड़ने की तकनीक सीखें और वही तकनीक अपनाएं जिन्हें मान्यता है.
-इनपुट आईएएनएस से
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