सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) को लेकर भारत में कई तरह की मान्यता हैं. भले ही इसका कोई वैज्ञानिक आधार न हो लेकिन लोग इसे शुभ नहीं मानते. इस समय कोई शुभ काम नहीं करते. मंदिरों के द्वार बंद कर देते हैं. खाने-पीने की चीजों में तुलसी के पत्ते डाल देते हैं लेकिन सूर्य ग्रहण होने पर इस्लामिक देशों में क्या करते हैं? वहां इसको लेकर क्या मान्यताएं और मिथक हैं?
मुस्लिम देशों में भी ग्रहण को मानते हैं अशुभ
ऐसा मानते हैं कि पैगम्बर के बेटे की मौत सूर्य ग्रहण के समय ही हुई थी और एक और 2 जुलाई ई पूर्व 632 को एक और सूर्य ग्रहण के दिन पैगम्बर के दामाद के खिलाफ बगावत हुई थी. सूर्यग्रहण को कयामत का वक्त भी माना जाता है. हालांकि जामिया मिलिया इस्लामिया में उर्दू के प्रोफेसर खालिद मुबस्सिर कहते हैं कि पैगम्बर के बेटे की मौत की बात सिर्फ मिथक है.
हजरत मोहम्मद के दौर में लोग सूर्य ग्रहण के दौरान खौफजदा हो जाते थे. मस्जिदों की ओर भागते थे. सूर्य ग्रहण के समय पैगंबर के बेटे की मौत हुई थी, ऐसी कोई बात नहीं है. ये सब किस्से-कहानियां हैं. फिजूल बातें हैं.प्रोफेसर खालिद मुबस्सिर, जामिया मिलिया इस्लामिया
कहा जाता है कि सूर्यग्रहण होने पर मुहम्मद साहब मस्जिद में चले जाते थे और सबसे लंबा कयाम करते थे. ग्रहण के समय अल्लाह को याद करने और अपने गुनाहों के लिए माफी मांगने की हिदायत दी जाती है. प्रोफेसर खालिद ने क्विंट से बात करते हुए बताया कि इस्लाम में चंद्र ग्रहण के समय नमाज-ए-कुसूफ और सूर्य ग्रहण के समय नमाज-ए-खुसूफ पढ़ने का चलन है. नमाज इसलिए पढ़ी जाती है ताकि ग्रहण का बुरा प्रभाव ना पड़े.
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