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Me, The Change: 20 साल की रेसलर पिंकी बलहारा से पंगा मत लेना

ट्रेजडी किसी को भी तोड़ सकती है लेकिन पिंकी को नहीं!

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भारत
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‘मी, द चेंज’ पहली बार वोट करने जा रही ऐसी महिलाओं के लिए द क्विंट का कैंपेन है, जिन्होंने कोई भी, छोटी या बड़ी उपलब्धि हासिल की है. इस कैंपेन में द क्विंट नाॅमिनेशन के जरिए इन असाधारण महिलाओं की कहानियों को आपके सामने पेश कर रहा है. अगर आप भी ऐसी किसी बेबाक और बिंदास महिला को जानते हैं, तो हमें methechange@thequint.com पर ईमेल करके बताएं.

पिंकी बलहारा ने 2018 एशियाई खेलों में कुराश में भारत के लिए सिल्वर मेडल जीता है, और अपनी इस शानदार जीत के लिए वो काफी तारीफें बटोर रही हैं. लेकिन सिर्फ ये ही वो कमाल नहीं है जिसके लिए इस 20 साल की यंग अचीवर की सराहना की जानी चाहिए.

पिंकी की जिस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए और जो उसकी अहम जीत से भी ज्यादा मुश्किल था, वो है उनका संघर्ष, जिससे गुजर कर इस कुराश चैंपियन ने अपना मेडल हासिल किया.
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मुश्किल हालात से उबरीं

इंडोनेशिया के जकार्ता में एशियाई खेलों में मुकाबले के तीन हफ्ते पहले, पिंकी के परिवार को कई मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ा था- एक नहीं, दो नहीं, बल्कि तीन-तीन मौतें. पिंकी उस वक्त को याद करती हैं, “पहले मेरे चचेरे भाई, फिर मेरे पिता और फिर मेरे दादा जी- ये सभी मौतें एक-के बाद एक बहुत कम दिनों के अंतराल पर हुईं.” इस तरह की ट्रेजडी किसी को भी तोड़ सकती है.

लेकिन पिंकी को नहीं!

जिन्होंने भारत को कुराश में अपना पहला मेडल दिलाया. कुराश कुश्ती का एक रूप है, जिसे 2018 एशियाई खेलों में पहली बार शामिल किया गया था.

अपनी कोचिंग टीम के सपोर्ट, जिसमें उनके चाचा भी शामिल थे, युवा पहलवान अपनी मंजिल की तरफ बढ़ती रहीं. उन्हें उनके चाचा ने, जो कुछ भी उन पर गुजरी उसे भूल कर भविष्य पर ध्यान लगाकर अपने देश के लिए कुछ जीत कर लाने को कहा. और पिंकी ने ठीक ऐसा ही किया, अपने पिता के सपने को पूरा करने की कोशिश की ताकि वो एक महान खिलाड़ी बन सकें और अपने देश के लिए उपलब्धि हासिल कर सकें.

“लोग सिर्फ सिल्वर मेडल देखते हैं, लेकिन उस कोशिश को नहीं, जो इसे जीतने के लिए की जाती है. दिल्ली के नेब सराय की रहने वाली पिंकी कहती हैं, “ किसी भी खिलाड़ी के लिए विदेश जाना और अपने देश के लिए पदक जीतना आसान नहीं होता है.” 

पिंकी के लिए पदक की राह मुश्किल थी, खासकर उनके पिता की मौत के बाद. वो बताती हैं, घर पर हमेशा ढेर सारे लोग होते थे, जिससे उन्हें प्रैक्टिस करने में मुश्किल हो रही थी. ट्रायल नजदीक आने के साथ उनके लिए कोई रास्ता निकालना जरूरी हो गया था. लोगों के ताने से बचते हुए घर से बाहर जाने में उनके दोस्त मदद करते थे. वो उनकी जूडो ड्रेस एक बैग में भर कर ले जाते और उनके चाचा लोगों से ये कहकर बाहर निकलने में मदद करते कि वो परेशान हैं और उन्हें कुछ देर खुली हवा की जरूरत है. इसके बाद वो लोगों से छिपकर जिम में प्रैक्टिस करती थीं.

“मुझे हमेशा डर सताता था कि अगर लोग मुझे प्रैक्टिस करते देख लेंगे तो क्या कहेंगे. भारतीय मानसिकता ऐसी ही है- देखो घर में मौत हो गई है और इस लड़की को खेल की पड़ी है. लेकिन जब मैंने सिल्वर मेडल जीता, तो सबके मुंह बंद हो गए.”
पिंकी बलहारा
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नई-नई लोकप्रियता

जीत ने दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज की छात्रा पिंकी की जिंदगी बदल दी है. वो कहती हैं, इससे पहले लोग उनसे ज्यादा बातचीत नहीं करते थे, लेकिन अब अलग बात है.

पिंकी कहती हैं, “ऐसा नहीं कि लोग मुझे नापसंद करते थे, पर मैं कुछ खास लोकप्रिय नहीं थी. लेकिन मेडल के बाद, मेरा एयरपोर्ट पर बहुत शानदार स्वागत हुआ. मुझे देखकर बहुत खुशी हुई कि वो लोग भी वहां मौजूद थे, जो लोग मेरे लिए अजनबी थे. उस दिन मुझे लगा कि मैंने कुछ हासिल किया था, जिसने मेरे पिता और दादा को गौरवान्वित किया.”

पिंकी दीदी की निगाहें अब सोने पर

पिंकी युवा पहलवानों के लिए भी रोल मॉडल बन गई हैं जो उनके जैसा बनने की ख्वाहिश रखते हैं. चेहरे पर मुस्कान के साथ वो बताती हैं,

“मुनिरका की स्पोर्ट्स एकेडमी में बहुत से नौजवान लड़के-लड़कियां प्रैक्टिस करते हैं. आमतौर पर प्रैक्टिस सेशन खत्म होने के बाद वे आपस में खेलना शुरू कर देते हैं. लेकिन जब मेरे मुकाबले का ऐलान किया जाता है, तो वे सब कुछ छोड़ कर एकट्ठा हो जाते हैं और बैठ कर देखने लगते हैं.”

वो कहती हैं, पिंकीदीदी’ में उनका इतना गहरा यकीन है कि इन नन्हे फैंस को हमेशा लगता है कि उन्होंने किसी फाइट में सोना जीता है. वो बहुत खुश हैं कि वो किसी की आदर्श हो सकती हैं और उन्हें प्रेरित कर सकती हैं.

युवा चैंपियन को किसी बात का पछतावा?

पिंकी कहती हैं. “गोल्ड मेडल जीतने का मेरा सपना पूरा नहीं हुआ है. मैं अगली बार इस सपने को पूरा करूंगी.”

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