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रिपोर्टर : मोहम्मद सरताज आलम
22 साल के गणेश हांसदा का जन्म झारखंड के छोटे से गांव कोषापालिया में हुआ था. वे खेतिहर परिवार से ताल्लुक रखते थे. 15 जून को गलवान में चीन के साथ हुए झड़प में उनकी मौत हो गई.
उनके बड़े भाई पढ़ाई नहीं कर पाएं थे क्योंकि परिवार दोनों बच्चों को स्कूल नहीं भेज सकता था. सितंबर 2018 में गणेश ने आर्मी ज्वाइन की थी. गणेश के परिवार को उम्मीद थी कि उनके आर्मी ज्वाइन करने के साथ ही उनका संघर्ष खत्म हो जाएगा.
मेरे दो बेटे हैं और दोनों में हमने छोटे बेटे को शिक्षा दिलाई. कड़ी मेहनत के बाद उसे नौकरी मिली और अब वो ही नहीं है, इससे तकलीफ होती है. मेरा बेटा गणेश अब नहीं है. हम दुखी हैं लेकिन हम और क्या कर सकते हैं? अब सिर्फ उसकी यादें बची हैं.कापरा हांसदा, शहीद सिपाही गणेश हांसदा की मां
जुलाई, 2019 में बिहार के दानापुर से गणेश ने अपनी ट्रेनिंग पूरी की थी, जिसके बाद लद्दाख में उनकी पोस्टिंग हुई. मई 2020 में आखिरी बार उनकी अपने भाई से बात हुई थी.
दोपहर का समय था, हम खेत में काम कर रहे थे. हम केवल एक मिनट ही बात कर सकते थे. उसने केवल इतना ही कहा, ‘भाई मैं ठीक हूंयहां कोई दिक्कत नहीं है. आप सभी खुश रहें. अगर मैं फोन नहीं करूंगा तो टेंशन मत लीजिएगा और मां-पापा को भी बता दीजिएगा कि मैं ठीक हूं’दिनेश हांसदा, शहीद सिपाही गणेश हांसदा के भाई
गणेश हांसदा की दोस्त बताती हैं कि हकीकत में, एक भी दिन ऐसा नहीं है जब मैं उसके बारे में नहीं सोचती. मैं हमेशा से सेना में शामिल होना चाहती थी और वो इसकी तैयारी में मेरी मदद करता था. मुझे लगता है कि ये सब मेरी गलती है.
जब वो वापस लद्दाख जा रहा था, हमने दिल्ली एयरपोर्ट पर बात की. जहां उसने कहा, ‘अगर तुम मेरी तरफ हो तो मैं हर चीज में सफल रहूंगा’ जब उसने फोन बूथ से (लद्दाख में) फोन किया तो मैं फोन नहीं उठा पाई क्योंकि मेरा फोन बंद था. शायद इसीलिए उसे सफलता नहीं मिली. मुझे इससे बहुत दुख होता है कि मैं उसके आखिरी पलों में उससे बात नहीं कर सकी.शहीद सिपाही गणेश हांसदा की दोस्त
शहीद हांसदा के भाई की एक ही गुजारिश है कि मेरे भाई को भूल मत जाइएगा. वो कहते हैं, “देश के लिए गणेश हांसदा शहीद हो गया. याद रखें कि ये आदमी, जो एक छोटे परिवार से था. देश के लिए इतनी बड़ी सेवा कर सकता था. तो, इसे याद करते हुए, हमारे ग्रामीण इलाके के युवाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए”
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