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मैं 6 फुट लंबा इंसान हूं, मतलब मैं डिप्रेशन का शिकार नहीं हो सकता!

मैंने डिप्रेशन और ओसीडी की परेशानी का सामना किया है.

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तीसरी दुनिया वाले देश होने के नाते मानसिक स्वास्थ्य (मेंटल हेल्थ) हमारी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक नहीं है, लेकिन आज के समय में यह एक बढ़ता हुआ और गंभीर मसला है.

मैंने डिप्रेशन और ओसीडी की परेशानी का सामना किया है. इस लड़ाई के दौरान मुझे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. जिन समस्याओं से हमें दो-चार होना पड़ा, उन अनुभवों को मैं आपसे शेयर कर रहा हूं.

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जब मैं 20 साल का था, पहली बार मैंने अपने पेरेंट्स से कहा कि मैं डिप्रेशन और ओसीडी की परेशानी का सामना कर रहा हूं और मैं मनोचिकित्सक (साइकेट्रिक) से मिलना चाहता हूं. उन्होंने जो प्रतिक्रिया दी, उसकी मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी. राजस्थान के एक जाट परिवार से मैं ताल्लुक रखता हूं और मेरे परिवार में इतना खुलापन नहीं है.

मैं अपने परिवार में इस तरह का मुद्दा उठाने वाला पहला आदमी था. परिवारवालों ने सीधे मना कर दिया. वे नहीं चाहते थे कि किसी को यह पता चले कि उनका बड़ा बेटा 'पागल' हो गया है. करीब पांच साल तक इस परेशानी का सामना करने के बाद मैं मनोचिकित्सक से मिला. एक साल तक मेडिसिन और थेरेपी लेने के बाद मैं ठीक भी हो गया था. लेकिन एक बार फिर से मुझे अब थेरेपी की जरूरत है. लेकिन इस बार मैं पहले की तुलना में अपने पेरेंट्स या दोस्तों को अपनी परेशानी बताने में ज्यादा डर रहा हूं.

शायद वो पुराने दिन मेरे जीवन का सबसे बुरा समय था. जब मैंने डिप्रेशन के बारे में जिससे भी शेयर किया, अधिकांश लोगों ने मेरा साथ छोड़ दिया. जब मैंने अपनी गर्लफ्रेंड को डिप्रेशन के बारे में बताया, तो वह मुझे छोड़कर चली गई. पहले तो वह मेरी बातों पर यकीन नहीं करना चाहती थी कि मैं डिप्रेशन (अवसाद) से पीड़ित हूं. लेकिन कुछ समय खुलकर बात करने के बाद वह शांत हो गई. लेकिन उसके कुछ दिनों बाद से उसका व्यवहार बिल्कुल बदल गया. मेरे साथ उसने लड़ाई-झगड़े शुरू कर दी.

मुझे बात-बत पर नीचा दिखाने लगी और मुझे कमजोर और बीमार समझने लगी. एक दिन अचानक से बोली कि वह मेरे साथ नहीं रह सकती. सही कहूं, तो उस समय मुझे इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि इससे पहले मैंने काफी कुछ झेला था.

इस घटना के कुछ महीनों बाद वह मेरे पास आई और माफी मांगने लगी. उसने मुझे बताया कि उसने भी डिप्रेशन का इलाज करवाया है. ये बात सुनकर मुझे खुशी नहीं हुई, बल्कि मैंने उसके लिए सहानुभूति जताई. लेकिन अब मेरे पास आगे बढ़ने की ताकत थी और मैंने दोबारा उसके साथ नहीं जाने का फैसला किया.

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मैंने अपना दोस्त खो दिया

डिप्रेशन का सामना करना काफी मुश्किल होता है. जब मैंने अपनी परेशानी के बारे में दोस्तों को बताया, तो उन्होंने भी मेरा साथ छोड़ दिया. अचानक मुझे समाज से बहिष्कृत कर दिया गया. जब मुझे सबसे ज्यादा लोगों की इमोशनल सपोर्ट की जरूरत थी, एक-एक करके सबने मेरा साथ छोड़ दिया.

मैंने डिप्रेशन और ओसीडी की परेशानी का सामना किया है.

6 फुट लंबा, हट्टा-कट्टा होने की वजह से मैं बाहर से सबके सामने खुद को काफी स्ट्रॉन्ग इंसान के रूप में दिखाने की कोशिश कर रहा था. लेकिन सही में मैं अंदर से पूरी तरह टूट चुका था. कोई मेरी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था. लोगों को पता चलने के बाद समाज से भी मुझे पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया था.

साइकेट्रिक के पास जाने के मेरे फैसले पर मेरे पेरेंट्स ने लगातार सवाल उठाया. उन्हें मेरा फैसला बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रहा था. दरअसल हमारे परिवार में साइकेट्रिक के पास तभी कोई जाता है. जब उसका दिमाग पूरी तरह से खराब हो गया हो.

आज के समय में मैं अपने पेरेंट्स से रोजाना बात करता हूं, लेकिन कभी भी अपने डिप्रेशन के बारे में उनसे बातें शेयर नहीं करता. मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं उन्हें फिर से बताऊं कि मेरे अंदर फिर से डिप्रेशन के लक्षण दिख रहे हैं और मैं थेरेपी ले रहा हूं. मुझे वो दिन अब भी याद है, जब मैंने उनसे पहली बार कहा था कि मैं थेरेपी के लिए जाना चाहतां हूं, उनका सीधा जवाब था 'नहीं'. आज भी वो मेरी परेशानी को नहीं समझना चाहते.

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उन दिनों किसी तरह मैंने अपने अकेलेपन, डिप्रेशन और दर्द भरे अनुभवों का सामना किया और उनका डटकर मुकाबला किया. मेरी इस लड़ाई में सिर्फ मेरे एक सीनियर ने साथ दिया. उन्होंने खुद भी मेंटल हेल्थ की परेशानी का सामना किया था.

मैंने डिप्रेशन और ओसीडी की परेशानी का सामना किया है.

ऐसे में उन्होंने मेरी परेशानी को समझा और मेरी हरसंभव मदद की. जब मैंने अपनी परेशानी का इलाज शुरू किया था, तब मैं विंटर वैकेशन में घर पर था. जब कॉलेज लौटा, तो अपने सीनियर को शुरुआत से पूरी बात बताई. उन्होंने मेरी बातों को काफी गौर से सुना और मेरी मदद की. उन्होंने मेरे अंदर हिम्मत दिलाई कि मैं सर उठा के आराम से लोगों को सामना करूं, मुझे शर्मिंदा होने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है.

हर दिन वह मुझसे 2-3 घंटे बात करते थे और मेरी हौसला अफजाई करते थे. जब मेरे दोस्त, परिवार वालों और समाज के बाकी लोगों ने मेरा साथ छोड़ दिया था, मेरे सीनियर हमेशा मेरे साथ खड़े रहे. अभी वह पीएसयू में काम कर रहे हैं और मैं आज भी उनके संपर्क में हूं.

करीब एक साल तक मेडिसिन लेने और इलाज कराने के दौरान मैं सुस्त सा हो गया था. हर दिन करीब 18 घंटे तक सोता रहता था, जिस वजह से 4 विषयों में मैं फेल भी हो गया. लेकिन ट्रीटमेंट के बाद मैं ठीक हो गया था. मैं फिर से समाज में सबका सामना करने को तैयार था, लेकिन जैसा मैंने सोचा था, वैसा ही हुआ. कोई मुझे खुले दिल से स्वीकार करने को तैयार नहीं था. समय के साथ धीरे-धीरे मेरी लाइफ पटरी पर लौटने लगी और लोग मुझे एक्सेप्ट करने लगे. लेकिन एक बार फिर से अब मुझे लग रहा है कि डिप्रेशन के कुछ लक्षण मेरे अंदर लौट रहे हैं.

मैंने डिप्रेशन और ओसीडी की परेशानी का सामना किया है.

इस बार मैं काफी डरा हुआ हूं, क्योंकि हमारे आस-पास अब जो लोग हैं, वो बिल्कुल नए हैं. मुझे नहीं पता कि जब उन्हें मेरे बारे में पता चलेगा, तो वे कैसे रिएक्ट करेंगे. पिछली बार मैं बैचलर डिग्री के सेकेंड ईयर में था और अभी मैं आईआईटी से मास्टर्स डिग्री कर रहा हूं. इस बार समाज से बहिष्कृत होने का डर मुझे ज्यादा सता रहा है.

पिछली बार जब मैंने बिल्कुल भी उम्मीद नहीं की थी, तब लोगों ने मुझे समाज से अलग-थलग कर दिया था. इस बार तो डर और भी ज्यादा है कि मेरे साथ क्या होगा. इसी डर से मैं अपनी परेशानी किसी और के साथ शेयर नहीं कर रहा. कॉलेज के लोगों को पता है कि मैं वीकेंड पर कहीं चला जाता हूं, लेकिन उन्हें ये नहीं पता कि मैं इस दौरान अपना ट्रीटमेंट कराता हूं और थेरेपी लेता हूं. मैं इस बार अपने दोस्तों को अपनी परेशानी बताकर उन्हें खोना नहीं चाहता.

मुझे उम्मीद है कि समय के साथ चीजें सही हो जाएंगी और लोग डिप्रेशन को सामान्य समझेंगे और ऐसे लोगों को एक्सेप्ट करेंगे. मुझे उम्मीद है कि कोई मजाक नहीं बनाएगा, न ही गॉसिप करेगा. मुझे उम्मीद है कि डिप्रेशन से पीड़ित लोग खुद को शर्मिंदा महसूस नहीं करेंगे, क्योंकि इसमें उनकी बिल्कुल भी गलती नहीं है. मुझे पूरा भरोसा है कि थेरेपी से मुझे फायदा होगा.

(ये लेख हमें प्रशांत बेनीवाल ने भेजा है. My Report कैंपन के तहत ये लेख पब्लिश हुआ है.)

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