2019 लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के दूसरे सबसे बड़े दावेदार राहुल गांधी अपनी पुरानी, पुश्तैनी और एक प्रकार से सुरक्षित भी सीट अमेठी से चुनाव लड़ने के साथ- साथ कांग्रेस की एक और दूसरी सुरक्षित सीट केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. क्या हैं इसके अभिप्राय?
क्या ये मात्र एक सीट की गिनती बढ़ाना है कांग्रेस के लिए, या फिर अमेठी में हार का भय है? इसे समझना शायद इतना आसान नही है, मगर इस बात के साथ अगर कुछ और बातों पर भी गौर करें तो समझ आएगा की आमतौर पे पप्पू समझे जाने वाले इस नेता ने कितनों को पप्पू बनाने का ये मास्टर-स्ट्रोक खेला है.
सबसे पहले याद कीजिए की बहुत शुरू में ही कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी पार्टी की रणनीति के बारे में क्या कहा था? उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी लोकसभा की पूरी 572 सीट पर फोकस करने की बजाय केवल जीतने वाली 300 सीटों पर ध्यान देने जा रही है. अब इन 300 सीटों में यूपी के महत्व को आंकें. कई समीक्षकों ने ये माना है की उत्तर प्रदेश के बिना भी संभावनाए हैं. और शायद यही सोचकर कांग्रेस दक्षिण भारत की तरफ फोकस कर रही है.
जिस प्रकार से पिछले 2014 के चुनाव में मोदी ने बनारस आकर यूपी पर डांका डाला और साथ ही साथ बिहार को भी खंगाला और दोनों मिलाकर ले लिए 73+31 सीटें, उसी प्रकार से राहुल केरल जाकर केरल समेत और भी दूसरे दक्षिण राज्य आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक तमिलनाडु और गोवा की 103 सीटों पर नजर लगा रहे हैं और इसमें अगर महाराष्ट्र के 48 सीट जोड़ दें तो 151 हो जाता है.
ये बात इससे भी पुख्ता होता है कि कांग्रेस ने दिल्ली और उत्तर प्रदेश में गठबंधन पर इतना जोर नहीं दिया, लेकिन दक्षिण के राज्यों में इसपर खास ध्यान दिया है. यही नहीं उनके हाल फिलहाल की रैलियों और संबोधनों को देखें तो महाशय यूपी- बिहार से ज्यादा बेंगलुरू और चेन्नई में जाकर लड़कियों से हाय राहुल सर कहने की बजाय राहुल कहने की अपील कर रहे हैं.
दक्षिण के अलावा वो कुछ कर रहे हैं, तो वो जाकर पूर्वी राज्यों में कभी वहां की वेशभूषा में नजर आ रहे हैं, तो कभी उनके अंदाज में नाचने की कोशिश और सबसे बढ़कर पश्चिम में बीजेपी के गढ़ गुजरात मे बार-बार सेंधमारी करने की कोशिश हो रही है. यहां पर ये चर्चा करना जरूरी है कि पिछले चुनाव में राजस्थान, एमपी में बीजेपी ने सूपड़ा साफ कर दिया था, तो वहां तो अब उनकी सरकार ही है और कर्जमाफी की चर्चा वो कर ही रहे हैं.
वापस हम उत्तर प्रदेश और बिहार पर आते हैं. बिहार में उन्होंने ज्यादा नखड़ा ना दिखाते हुए कम सीटों पर ही गठबंधन कर लिया तो मकसद साफ था सीट नहीं लेना, लेकिन बीजेपी की सीट को कम करना जो कि एक मजबूत गठबंधन के असर से लगता है कि कारगर भी होगा. और यही चीज यूपी में एसपी और बीएसपी के गठबंधन से भी असर होता दिखता है.
फिर सवाल लाजमी होता है कि क्या वजह है कि यूपी में कांग्रेस ने गठबंधन पर जोर नहीं दिया और प्रियंका को अलग वहां भेज दिया, दो बातें हैं, एक तो खुद राहुल ने कहा था कि वो प्रियंका को वनडे नहीं बल्कि टेस्ट खेलने भेज रहे हैं, यानी सीधी तौर पर 2022 का विधानसभा चुनाव और दूसरे ये कि कांग्रेस बतौर पीएम यूपी वाली गठबंधन को भी अपने प्रतिस्पर्धा के रूप में देखती है, इसीलिए इस चुनाव को यूपी में त्रिकोणीय बनाना जरूरी सा लगता है, इसी पॉइंट के मातहत बंगाल में भी गठबंधन पर जोर नहीं दिया गया और आने वाले दिनों में कांग्रेस की रैलियों की तादाद भी वहां बढ़ सकती है और हां इन राज्यों के अलावा पंजाब, झाड़खंड, अरुणाचल और कश्मीर को वो अपने 300 वाले टारगेट में जोड़ रहे हैं.
(सभी माई रिपोर्ट सिटिजन जर्नलिस्टों द्वारा भेजी गई रिपोर्ट है. द क्विंट प्रकाशन से पहले सभी पक्षों के दावों / आरोपों की जांच करता है, लेकिन रिपोर्ट और इस लेख में व्यक्त किए गए विचार संबंधित सिटिजन जर्नलिस्ट के हैं, क्विंट न तो इसका समर्थन करता है, न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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