ऑलवेदर रोड या कहें चार धाम सड़क परियोजना, कुछ भी हो लेकिन ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PRIME MINISTER NARENDRA MODI) की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है. चार धाम की यात्रा हो या एलएसी तक पहुंच को आसान बनाना हो, सुगम यातायात के लिए यह सड़क बनायी जा रही है, लेकिन सड़क के आस-पास रहने वाले लोगों के लिए यह 'अभिशाप' बनती जा रही है. हाल के दिनों में भूस्खलन और गांव दरकने के हादसे बढ़ रहे हैं, स्थानीय लोग और पर्यावरणविदों का कहना है कि इसकी एक वजह बेतरतीब विकास है.
2017 के विधानसभा चुनावों के पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देहरादून आये तो उन्होंने इसकी घोषणा की, इसे ऑलवेदर रोड कहा, फिर इसका नाम चार धाम परियोजना कर दिया गया. सरकार के समर्थक इस सड़क को विकास की इबारत के तौर पर ऐसे पेश करते हैं जैसे कि कोई नयी सड़क बन रही है. इससे पहले बनी हुई सड़क को ही चौड़ा करने के लिए खंडूड़ी जी की वाहवाही की गयी.
केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार 825 किलोमीटर सड़क है, जिसके सुधार और चौड़ा किए जाने का काम 12072 करोड़ रुपये में किया जाना है.
सड़क 825 किलोमीटर तक चौडी करनी है,लेकिन इसे एक परियोजना नहीं बल्कि इसे 53 अलग-अलग परियोजना मे बांटा गया है. ऐसा क्यों? बड़ी परियोजनाओं के लिए पर्यावरण और स्थानीय लोगों पर प्रभाव का आकलन करना जरूरी होता है. क्या इसीलिए इस परियोजन को टुकड़ों में बांट दिया गया है ताकि आकलन कराने की जरूरत ही न पड़े?
परियोजना के लिए हजारों पेड़ों को काटा गया
825 किलोमीटर सड़क चौड़ा करने के लिए दसियों हजार पेड़ काटे जा चुके हैं, पहाड़ मटियामेट किए जा रहे हैं और पर्यावरण पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका कोई आकलन नहीं, कोई अध्ययन नहीं!
ऑलवेदर रोड से वन संपदा को तो नुकसान पहुंचा ही है साथ ही साथ नदियां भी प्रदूषित हुई हैं. डम्पिंग क्षेत्र न होने के कारण सारा मलबा नदियों में डाला गया, जिससे नदियों में पानी का लेबल बढ़ गया और सारा मलबा बहकर नदियों के किनारे बसे आवासीय भवनों में घुस गया. साथ ही जलीय जीव जन्तु पर भी दुष्प्रभाव पड़ा है, मछलियों की कई प्रजातियों का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है.सतेन्द्र सिंह राणा, सामाजिक और पर्यावरण कार्यकर्ता
कार्यदायी संस्था को भी जानकारी नहीं कि कितने पेड़ कटे, ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग, रुद्रप्रयाग से गौरीकुण्ड और ऋषिकेश से गंगोत्री तक कुल कितने पेड़ों को काटा गया, उसकी सटीक जानकारी न तो राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण को है और न ही उस जिले के आलाधिकारियों को है. अलग-अलग अधिकारियों से बात करने पर अलग-अलग आंकड़े सामने आते हैं.
रुद्रप्रयाग से गौरीकुण्ड तक लगभग चार हजार पेड़ काटे गये हैं तथा तीन स्थानों पर नये भूस्खलन क्षेत्र बने हैं. बांसवाड़ा में भूस्खलन रूक गया है.जेके त्रिपाठी,अधिशासी अभियंता, राष्ट्रीय राजमार्ग, रुद्रप्रयाग
चार धाम परियोजना में ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग तक लगभग 6 हजार पेड़ काटे गये हैं, वही आठ से दस स्थानों पर नये अतिसंवेदनशील भूस्खलन क्षेत्र बने हैंबलराम मिश्रा, अधिशासी अभियंता
सुप्रीम कोर्ट पहुंची 'सिटिजन्स ऑफ ग्रीन दून'
इस परियोजना से हो रहे पर्यावरण को नुकसान के खिलाफ 'सिटिजन्स ऑफ ग्रीन दून' ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने समिति गठित करने का आदेश दिया ताकि परियोजना के सभी प्रभावों का अध्ययन किया जा सके. अदालत के 08 अगस्त 2018 के आदेश के अनुपालन में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने डॉ.रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर दी.
सड़क की चौड़ाई को लेकर भले ही उक्त कमेटी में दो मत थे, लेकिन इन बातों को लेकर कोई मतभेद नहीं थे कि इस परियोजना को अवैज्ञानिक और अनियोजित तरीके से लागू करने के कारण, इसने हिमालय के परिस्थितिक तंत्र को पहले ही बहुत नुकसान पहुंचा दिया है. अवैज्ञानिक निर्माण, अनियोजित मलबा निस्तारण और पहाड़ों की तीव्र कटान ने नए भूस्खलनों और संबंधित आपदाओं को निमंत्रण दिया है.
वहीं ऑलवेदर रोड से प्रभावित और पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले वन सरपंच देवी प्रसाद थपलियाल बताते हैं ऐसे पेड़ भी काट दिए गए,जिसकी रोड के लिए जरूरत नहीं थी.
परियोजना शुरू होने से पहले सरकार ने किसी तरह पर्यावरणीय आकलन नही किया, हमारे सिविल वन जिन्हें ग्रामीणों ने अपने काश्तकारी के लिए तैयार किया था और सरकारी वन जिसे वन विभाग ने तैयार किया है, उन्हें चंद ठेकेदारों को लाभ देने के लिए काटा गया है, जबकि वे चौड़ीकरण के दायरे में भी नहीं आते थे. जब हमारे जंगल कट गये उसके बाद कमेटी बनाकर माननीय उच्चतम न्यायालय ने हमारे जख्मों पर नमक लगाने का काम किया है.देवी प्रसाद थपलियाल, पर्यावरणविद
क्या कहती है रिपोर्ट ?
समिति ने पाया कि एनएच 125 पर ही 174 ताजा कटे ढलानों में से 102 भूस्खलन संभावित हैं. ऐसी ही स्थिति दूसरी जगहों पर भी है. मानसून से पहले ही राज्य में हल्की बारिश से नये भूस्खलन क्षेत्र बन गए हैं. स्वीत,फरासू नरकोटा, चटवापीपल, कर्णप्रयाग, आश्रम, समेत दर्जनों स्थानों पर बने भूस्खलन से आम आदमी की समस्या बढ़ गई है.
भूगर्भ पर शोध कर रहे नरेन्द्र शर्मा ने बताया कि पहाड़ बेहद संवेदनशील हैं और भूकंपीय क्षेत्र की श्रेणी पांच में आते हैं. आज सड़क विकास का पैमाना तो अवश्य है लेकिन यह पैमाना तभी तक है जब हिमालय सुरक्षित व उसके वाशिंदे सलामत रहेंगे, आज तो बिना अध्ययनों के ही परियोजना की बाढ़ आने लगी है वो हिमालय की संरचना के लिए उचित नहीं है.
वहीं NHIDCL के सहायक अभियंता शक्ति सिंह ने बताया कि "पहले चरण में कुछ दिक्कतें होनी लाजिमी है लेकिन जब सकड़ पूरी तरह बनकर तैयार होगी, तब आम जन को किसी तरह की परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी. सड़क कटिंग के बाद शुरू हुए भूस्खलन क्षेत्र में जापानी तकनीक से ट्रीटमेंट किया जा रहा है और भूस्खलन क्षेत्र में घास के पौधे लगाए गए हैं जो मिट्टी को जकड़े रखते हैं."
चार धाम सड़क परियोजना से पर्यटकों की आमद अधिक होगी, महानगरों के लोग साहसिक खेलों के लिए सप्ताहांत में ऋषिकेश, टिहरी व औली सहित तमाम पर्यटक स्थलों की ओर आएंगे. परियोजना पहाडों के लिए जीवनदायनी है. इसी उद्देश्य के साथ चार धाम परियोजना का निर्माण कार्य किया जा रहा है.HIDCL के सहायक अभियंता शक्ति सिंह
क्या है चार धाम सड़क परियोजना ?
चारधाम परियोजना उत्तराखंड के चार प्रमुख हिंदू तीर्थ यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ को सड़क मार्ग से जोड़ेगी.
लगभग 900 किलोमीटर के इस हाइवे प्रोजेक्ट से पूरे उत्तराखंड में सड़कों का जाल विकसित होगा.
वहीं चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच यह सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण परियोजना है.
इस परियोजना के तहत कुल 53 परियोजनाओं पर काम होना है. 40 परियोजनाएं आवंटित हो चुकी हैं. जबकि 38 परियोजनाओं के लिए ठेका दिया जा चुका है.
बची हुई 13 परियोजनाओं में सड़क की चौड़ाई और पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है.
इसमें कोई शक नहीं कि ये परियोजना उत्तराखंड के विकास, तीर्थयात्रियों की सहूलियत और डिफेंस की दृष्टि से अहम है, लेकिन अगर सड़क को बनाने के क्रम में पर्यावरण की अनदेखी की गई तो ये तीनों उद्देश्य पूरे नहीं होंगे साथ ही इनपर आपदाओं का भी डर रहेगा.
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