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''नरेंद्र दाभोलकर के कातिलों को वक्त रहते पकड़ते तो तीन कत्ल रोके जा सकते थे''

नरेंद्र दाभोलकर की बेटी मुक्ता दाभोलकर से क्विंट की खास बातचीत

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डॉक्टर का कत्ल इसलिए हुआ था क्योंकि कोई उनके विचारों का कत्ल करना चाहता था. लेकिन आदमी को मार के उसके विचारों को खत्म करने का प्रयास समाज में कभी भी यशस्वी नहीं हो सकता"
मुक्ता दाभोलकर, कार्यकर्ता, महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति
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ये शब्द हैं मुक्ता दाभोलकर के जो अपने पिता की हत्या के आठ साल बाद भी न्याय के लिए संघर्ष कर रही हैं. महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (अनीस) का काम और तेजी से आगे बढ़ाते हुए मुक्ता आज भी एक विवेकशील समाज बनाने के लिए उतनी ही कटिबद्ध हैं जितने उनके पिता और अनीस के संस्थापक डॉ. नरेंद्र दाभोलकर थे.

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डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की अगस्त 2013 को पुणे में हुई हत्या के बाद पुणे पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी. 2014 में इस मामले को CBI को सौंपा गया. अब तक इस मामले में पांच आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर किया गया है. तो वहीं सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि पेश किए गए सबूतों और अब तक की गई दलीलों को देखते हुए चार आरोपियों के खिलाफ हत्या, हत्या की साजिश रचने और आतंकवादी कृत्य करने के आरोप तय करने का फैसला किया है. अदालत ने कहा कि पांचवें आरोपी पर सबूत मिटाने का आरोप लगाया जाएगा.

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इन पांच आरोपियों में डॉ. विरेन्द्र सिंह तावडे, शरद कलसकर, सचिन अंदुरे, वकील संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे का नाम शामिल है. सभी पांचों आरोपियों ने खुद को बेगुनाह बताया है. कोर्ट ने 5 आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 120 (बी), 34 के साथ-साथ यूएपीए की धारा 16 और आर्म्स एक्ट की धारा 3 (25), 27 (1), 27 (3) के तहत आरोप तय किए. केस में गिरफ्तार संजीव पुनालेकर के खिलाफ धारा 201 आईपीसी के तहत आरोप तय किए जाएंगे.
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बता दे कि मुक्ता दाभोलकर मानती हैं कि जिस मुकाम तक केस आया है उससे लगता है कि मामले की जांच सही दिशा में चल रही है. लेकिन डॉ. दाभोलकर के बाद लेखक गोविंद पानसरे, कलबुर्गी और पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या भी एक ही तरीके से की गई. अगर पुलिस आरोपियों तक जल्दी पहुंचती तो ये जानें बचाई जा सकती थी.

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ये हत्याएं एक बड़े आतंकवादी षड्यंत्र का हिस्सा हैं, जिसमें एक विचार के लोगों को निशाना बनाकर समाज मे भय पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है. हालांकि इन प्रयासों को अनीस के कार्यकर्ता सफल नहीं होने देंगे.
मुक्ता दाभोलकर, कार्यकर्ता, महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति
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हालांकि इस मामले के आठ साल बाद भी दाभोलकर परिवार को विश्वास है कि कोई जवान लड़का इतने बड़े हत्या को अंजाम नहीं दे सकता. इन हत्याओं का मास्टरमाइंड अभी भी पुलिस की गिरफ्त के बाहर है. जो इन आरोपियों को गुमराह करता है, पनाह देता है और विचारों की इस लड़ाई को हिंसक रूप दे रहा है. उनका कहना है कि जांच एजेंसियों को जल्द से जल्द इस मामले के सूत्रधार को गिरफ्तार करना जरूरी है.

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