संसद के बजट सत्र से पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद दोनों सदनों को संबोधित करने वाले हैं, लेकिन उससे पहले 16 पार्टियों ने बयान जारी ऐलान किया है कि वो राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करेंगीं.
विरोध करने वाली पार्टियों में एनसीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, डीएमके, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, समाजवादी पार्टी, आरजेडी, सीपीआई आरसीपी, पीडीपी, एमडीएमके, केरल कांग्रेस, एआईयूडीएफ, आम आदमी पार्टी और अकाली दल शामिल है.
16 राजनीतिक दलों के तरफ से हम आज बयान जारी कर रहे हैं कि कल संसद में माननीय राष्ट्रपति का जो अभिभाषण है हम उसका बहिष्कार करते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण है कि सरकार ने किसानों की मर्जी के बिना ये 3 बिल जबरदस्ती पास किए थे.गुलाम नबी आज़ाद, कांग्रेस
संयुक्त बयान में क्या-क्या कहा गया है?
संयुक्त बयान में कहा गया है, "भारत के किसान तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सामूहिक रूप से लड़ रहे हैं, जो भाजपा सरकार द्वारा मनमाने ढंग से लागू किए गए हैं. यह भारतीय कृषि के भविष्य के लिए खतरा हैं, जो भारत की 60 प्रतिशत आबादी और करोड़ों किसानों, शेयरक्रॉपर (साझेदारी में खेती करने वाला) और कृषि श्रमिकों की आजीविका है."
बयान में कहा गया है, "लाखों किसान अपने अधिकारों और न्याय के लिए पिछले 64 दिनों से ठंड और भारी बारिश का सामना करते हुए राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के द्वार पर आंदोलन कर रहे हैं. 155 से अधिक किसानों ने अपनी जान गंवाई है. सरकार अड़ी हुई है और उसने पानी की बौछारों, आंसू गैस और लाठीचार्ज के साथ जवाब दिया है."
इसमें कहा गया है, "सरकार ने प्रायोजित गलत सूचनाओं के अभियान के माध्यम से एक वैध जन आंदोलन को बदनाम करने का हर संभव प्रयास किया गया है. विरोध और आंदोलन काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा है."
बयान में यह भी कहा गया है कि दुर्भाग्य से, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 26 जनवरी 2021 को हिंसा की कुछ घटनाएं हुई हैं, जिसकी निंदा की गई है.
बता दें कि केंद्र सरकार के तीन कृषि कानून को लेकर किसान दिल्ली बॉर्डर पर करीब 2 महीने से भी ज्यादा वक्त से आंदोलन कर रहे हैं. विपक्ष भी किसानों के इस आंदोलन का समर्थन कर रहा है. आप सांसद संजय सिंह ने कहा-
हम लोग तीन कृषि कानूनों का विरोध करते रहे हैं और करते रहेंगे, इसलिए आम आदमी पार्टी महामहिम राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करेगी और हमारे लोकसभा के सांसद भगवंत मान और राज्य सभा के हम तीन सांसद कल राष्ट्रपति के अभिभाषण कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे.
बता दें कि किसान 26 नवंबर से दिल्ली के बॉर्डर पर डटे हैं और केंद्र सरकार पर लगातार दबाव बना रहे हैं कि सरकार तीनों कृषि कानून वापस ले. दोनों के बीच 10 राउंड की बैठक भी हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
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