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2015 गैंगरेप केस: ‘शरीर पर चोट नहीं, मतलब जबरदस्ती नहीं हुई’

जनवरी 2017 में एक ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को बरी कर दिया था

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"अगर किसी महिला के शरीर पर कोई चोट का निशान नहीं है, तो इसका मतलब उसके साथ बलात्कार नहीं हुआ है, वो महिला सेक्स के लिए राजी थी." ये बात चंडीगढ़ हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने 2015 गैंगरेप मामले का फैसला सुनाते हुए कही है.

चंडीगढ़ प्रशासन ने 2015 गैंगरेप मामले में आरोपियों को बरी किए जाने के खिलाफ चंडीगढ़ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी. लेकिन कोर्ट ने प्रशासन की याचिका को खारिज कर दिया है.

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क्या है पूरा मामला?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़िता के पिता ने पुलिस रिपोर्ट में दावा किया है कि उनकी बेटी 30 अक्टूबर 2015 को एक जागरण के कार्यक्रम में शामिल होने गई थी. वहां से उसका अपहरण हो गया. एफआईआर में चार लड़कों का नाम दर्ज किया गया था. इन चार लड़कों की पहचान अमित, सूरज, कन्नू और विकास के तौर पर हुई थी.

कोर्ट का क्या मानना है?

डिवीजन बेंच ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को कायम रखते हुए कहा, "हमारा मानना है कि इस मामले में अभियोजन पक्ष का अपहरण नहीं हुआ. ट्रायल कोर्ट में अभियोजन पक्ष की कहानी अनुचित लगती है. बचाव पक्ष सही लगता है.”

बेंच ने आगे कहा कि डॉक्टर को लड़की के शरीर पर कोई चोट के निशान नहीं मिले, जिसका मतलब है कि वह संभोग के लिए सहमत थी.

अभियोजन पक्ष के पास इसका कोई सबूत नहीं है कि लड़की का बलात्कार हुआ है. उसकी गवाही पर इन हालातों पर विश्वास नहीं किया जा सकता है. इस परिस्थिति में, हम शक का फायदा दूसरे पक्ष को देना चाहते हैं.
चंडीगढ़ हाईकोर्ट की डिवीडन बेंच का फैसला

आरोपियों में एक अमित नाम के लड़के ने कोर्ट को बताया कि लड़की के परिवार ने इस मामले में उसे झूठा फंसाया है क्योंकि वह दोनों 'रिलेशनशिप' में थे.

बता दें, जनवरी 2017 में एक ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को बरी कर दिया था. जब लड़की के पिता ने बलात्कार का मामला दर्ज कराया, तब लड़की की उम्र 18 साल थी.

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