अंडमान सागर में 81 रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी फंसे हुए हैं. भारत उन्हें मदद और खाना मुहैया करा रहा है. ये शरणार्थी बांग्लादेश से मलेशिया जा रहे थे लेकिन उनकी नाव खराब हो गई. अब उन्हें मदद मिल गई है, पर शरण नहीं. कोई भी देश इन्हें लेने को तैयार नहीं है. म्यांमार की सेना के सताए हुए ये रोहिंग्या अपनाए जाने का इंतजार कर रहे हैं.
इस सबके बीच 4 मार्च को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर बांग्लादेश की राजधानी ढाका पहुंचे. जयशंकर बांग्लादेशी विदेश मंत्री डॉ एके अब्दुल मोमीन से मिले और पानी साझा करने, व्यापार और सीमा के मुद्दे पर चर्चा की.
समंदर में फंसे रोहिंग्या शरणार्थियों का जिक्र भी इस बातचीत में होने का अनुमान था. लेकिन कोई नतीजा निकलेगा, इसके आसार कम हैं. भारत ने इन रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने से इनकार कर दिया है और चाहता है कि बांग्लादेश इन्हें वापस ले. बांग्लादेश भी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता और विदेश मंत्री मोमीन कह चुके हैं कि शरणार्थियों की मौजूदा जगह से सबसे करीबी देश भारत या फिर इनके अपने देश म्यांमार को इनकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए.
81 रोहिंग्या मुसलमानों का भविष्य उनकी नाव की तरह अधर में लटका है. वो यहां तक कैसे पहुंचे और आगे क्या हो सकता है, शुरुआत से समझते हैं.
अंडमान सागर में कैसे पहुंचे रोहिंग्या शरणार्थी?
26 फरवरी को भारत के कोस्ट गार्ड्स को अंडमान सागर में भटके हुए रोहिंग्या मुसलमानों की एक नाव मिली. इस नाव में 81 लोग ठूंसे गए थे. आठ लोगों की पानी की कमी से मौत हो चुकी थी. कोस्ट गार्ड्स अब इस नाव को ठीक कर रहे हैं. इसके इंजन में कुछ दिक्कत आ गई थी, जिसकी वजह से नाव अंडमान सागर में भटक गई.
नाव बांग्लादेश के कॉक्स बाजार से 11 फरवरी को मलेशिया के लिए निकली थी. 90 रोहिंग्या दक्षिणी बांग्लादेश में रिफ्यूजी कैंप से निकलकर मुस्लिम बहुल मलेशिया जाने की फिराक में थे. रॉयटर्स की रिपोर्ट कहती है कि इस यात्रा के लिए रोहिंग्या शरणार्थियों ने मानव तस्करों को भुगतान किया था.
भारतीय अधिकारियों के मुताबिक, नाव में सवार ज्यादातर रोहिंग्या बीमार हैं और पानी की कमी से जूझ रहे हैं. 11 फरवरी को बांग्लादेश से निकलने के चार दिन बाद ही नाव का इंजन खराब हो गया था. इसके बाद वो समंदर में भटकते रहे और उनका खाना-पानी खत्म हो गया था.
रिपोर्ट के मुताबिक, एक कोस्ट गार्ड ने बताया कि कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों से उन्हें SOS मिला था, जिसके बाद नाव का पता लगाने का ऑपरेशन शुरू किया था.
शरण देने के लिए कोई देश राजी नहीं
रॉयटर्स ने कोस्ट गार्ड्स के हवाले से बताया कि नाव में फंसे रोहिंग्या शरणार्थियों को खाना और दवाइयां दी गई हैं. महिलाओं और बच्चों को नए कपड़े दिए गए हैं. भारत के विदेश मंत्रालय के कहा है कि कोस्ट गार्ड्स नाव पर मौजूद लोगों की मदद कर रहे हैं और नाव की मरम्मत की जा रही है. लेकिन इन लोगों को शरण देने का क्या?
इसके लिए कोई देश राजी नहीं हो रहा है. भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि मरम्मत के बाद नाव को बांग्लादेश वापस भेजने का इंतजाम किया जाएगा. भारत 1951 रिफ्यूजी कन्वेंशन का हिस्सा नहीं है. ये कन्वेंशन शरणार्थियों के अधिकार और देश की उनके प्रति जिम्मेदारी बताता है.
बांग्लादेश भी अपना पल्ला झाड़ रहा है. बांग्लादेशी विदेश मंत्री अब्दुल मोमीन ने पिछले हफ्ते रॉयटर्स से कहा कि हम उम्मीद करते हैं 'भारत या म्यांमार उन्हें वापस लेगा.'
शरणार्थी म्यांमार वापस नहीं जा सकते क्योंकि सेना के नरसंहार से बचने के लिए देश छोड़ कर बांग्लादेश गए थे. मुस्लिम बहुल मलेशिया रोहिंग्या मुसलमानों का पसंदीदा देश बन चुका है. हालांकि, मलेशिया ने भी पिछले साल कह दिया था कि वो उन्हें अब नहीं आने देगा.
भारतीय विदेश मंत्री की बांग्लादेश यात्रा से बनेगी बात?
रोहिंग्या संकट के बीच भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर 4 मार्च को बांग्लादेश गए. उन्होंने अपने समकक्ष अब्दुल मोमीन से मुलाकात की और कई मुद्दों पर चर्चा की. रॉयटर्स की रिपोर्ट में भारतीय विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी के हवाले से बताया गया कि इस बातचीत में 81 रोहिंग्या मुसलमानों की चर्चा भी एजेंडे पर थी.
अधिकारी ने कहा, "रोहिंग्या पर चर्चा जरूर होगी लेकिन मुख्य एजेंडा प्रधानमंत्री मोदी का बांग्लादेश दौरा है." प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 26 मार्च को बांग्लादेश के दौरे पर जाएंगे और देश के स्वतंत्रता दिवस के जश्न में शरीक होंगे.
भारत में कई लाख रोहिंग्या मुसलमान पहले से रह रहे हैं. ऐसे में भारत का समंदर में फंसे 81 रोहिंग्या शरणार्थियों पर कोई भी फैसला आसान नहीं होगा. बांग्लादेश और मलेशिया भी इन्हें लेने से इनकार कर रहे हैं. नाव ठीक भी हो जाती है तो ये शरणार्थी कहां जाएंगे, इसका जवाब अभी किसी के पास नहीं है.
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