बीजेपी ने उन्हें 'ईसाई' मुख्यमंत्री कहा था और TDP ने उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था, लेकिन वाइएस जगन मोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश के निकाय चुनावों के विजेता निकले. वोटों की गिनती 14 मार्च को पूरी हुई.
रेड्डी की YSR कांग्रेस ने चुनावों में बड़ी जीत हासिल की. पार्टी ने 11 म्युनिसिपल कॉर्पोरेशंस और 75 में से 73 म्युनिसिपल लोकल बॉडीज को अपने नाम किया. जबकि बीजेपी के खाते में कुछ नहीं आया और तेलुगु देसम पार्टी (TDP) ने 75 में से सिर्फ दो म्युनिसिपेलिटी जीती.
आंध्र प्रदेश के राजनीतिक पंडित कहते हैं कि YSR कांग्रेस की जीत ने साबित कर दिया कि बीजेपी की 'सांप्रदायिक रणनीति' ने राज्य में काम नहीं किया. आंध्र प्रदेश में एंटी-बीजेपी माहौल 2014 में राज्य के बंटवारे के समय से है.
बीजेपी ने राज्य के बंटवारे का समर्थन किया था
2014 से पहले आंध्र प्रदेश और तेलंगाना एक ही राज्य थे. 2009 में के चंद्रशेखर राव की अगुवाई वाली तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) ने अलग तेलंगाना राज्य के लिए कई आंदोलन किए. केंद्र में कांग्रेस की UPA सरकार राज्य का बंटवारा नहीं करना चाहती, लेकिन विपक्षी बीजेपी ने तेलंगाना के निर्माण को अपना समर्थन दिया.
आंध्र प्रदेश के राजनीतिक इतिहास को 1960 के दशक से समझते आ रहे वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रमेश कंडुला ने कहा, "बंटवारे पर बीजेपी का जो रवैया था, उसने आंध्र प्रदेश के लोगों को बहुत चोट पहुंचाई. तेलंगाना के बनने के सात साल बाद भी बीजेपी के खिलाफ माहौल में कमी नहीं आई है."
2009 में बीजेपी नेता एलके आडवाणी ने वादा किया था कि अगर अगले चुनाव में NDA की जीत होती है तो वो आंध्र प्रदेश में से तेलंगाना बनाएंगे.
आडवाणी ने यहां तक कह दिया था कि NDA के पिछले कार्यकाल (1998-2004) में ही वाजपेयी सरकार ने तेलंगाना का निर्माण कर दिया होता, अगर लोगों की मांग उन तक पहुंच जाती.
इसके बाद कांग्रेस ने 2014 में राज्य के बंटवारे की इजाजत दे दी और ये उम्मीद रखी कि 2014 लोकसभा चुनाव में TRS कांग्रेस का समर्थन करेगी. बंटवारे के बाद तेलंगाना में TRS को सत्ता मिल गई और कांग्रेस को हार नसीब हुई. आंध्र प्रदेश में भी कांग्रेस को चंद्रबाबू नायडू की TDP ने बुरी तरह हराया और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई.
आंध्र प्रदेश ने अपनी रेवेन्यू राजधानी हैदराबाद को तेलंगाना के हाथों खो दिया था और उसके बाद से राज्य संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत स्पेशल केटेगरी स्टेटस (SCS) की मांग कर रहा है. SCS से राज्य को भारी करों से छूट के साथ-साथ केंद्र की मदद भी मिलती है.
कंडुला ने कहा, "पहले 2014 में लोगों को उम्मीद थी कि बीजेपी आंध्र प्रदेश को SCS दिलाने में मदद करेगी क्योंकि उसकी गठबंधन सहयोगी TDP की सरकार है. लेकिन बीजेपी ने TDP के पांच सालों के शासन में ऐसी कोई मदद नहीं दी."
आंध्र में बीजेपी-TDP के बीच विवाद
2019 लोकसभा चुनाव में TDP ने बीजेपी के साथ अपना गठबंधन तोड़ दिया और UPA में शामिल हो गई, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ. जबकि जगन की YSR कांग्रेस ने 25 में से 22 लोकसभा सीटें जीत लीं. पार्टी ने विधानसभा चुनाव में 175 में से 151 सीटों पर भी जीत हासिल की थी.
कंडुला ने कहा, "TDP और बीजेपी का रिश्ता हमेशा सहजीवी जैसा था. जब भी बीजेपी TDP के साथ गठबंधन में होती, तो वो आंध्र प्रदेश में अच्छा प्रदर्शन करती." दूसरी राजनीतिक एक्सपर्ट जी हरगोपाल ने कहा, "आंध्र प्रदेश में लोगों ने गठबंधन में बीजेपी को स्वीकार किया है, लेकिन उन्होंने पार्टी की सांप्रदायिक राजनीति को मंजूर नहीं किया. लोग कभी भी बीजेपी की जगह TDP को ही चुनेंगे."
आंध्र प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार के वेंकटेश्वरलु ने बताया, “तेलंगाना से उलट आंध्र प्रदेश के इतिहास में कभी सांप्रदायिक तनाव नहीं रहा है. ऐसे राज्य में बीजेपी के लिए अच्छा प्रदर्शन करना मुश्किल है.”
हालांकि, बीजेपी और TDP के बीच जल्दी ही कोई गठबंधन होने के आसार नहीं दिखते. 2019 में जब TDP सुप्रीमो नायडू ने NDA छोड़ा था तो गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि उन्हें 'कभी भी वापस स्वीकार नहीं किया जाएगा.'
बीजेपी के लिए आगामी तिरुपति उपचुनाव भी एक इम्तिहान हो सकते हैं.
क्या बीजेपी तिरुपति उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन करेगी?
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के धार्मिक विश्वासों पर बीजेपी के आरोप तिरुपति लोकसभा चुनाव में वोटरों को ध्यान में रखकर लगाए गए लगते हैं.
वेंकटेश्वरलु कहते हैं, "दिसंबर 2020 के अंत से आंध्र प्रदेश में कुछ मंदिरों को तोड़ने का काम हुआ था, बीजेपी हिंदू भावनाओं को अपने पक्ष में करना चाह रही है. पार्टी कह रही है कि हिंदुओं की धार्मिक जगहों पर हमले हो रहे हैं क्योंकि एक ईसाई सीएम है." जगन रेड्डी धार्मिक विश्वासों के मामले में ईसाई हैं.
हालांकि, हाल में हुए निकाय चुनावों में YSR कांग्रेस ने तिरुपति में भी जीत हासिल की है. पार्टी ने शहर के 59 में से 48 वॉर्ड्स जीते. चुनाव आयोग ने अभी लोकसभा उपचुनाव की तारीख का ऐलान नहीं किया है.
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