दशकों पुराने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले पर फैसले का दिन आ गया है. 40 दिनों तक सुनवाई करने के बाद सुरक्षित रखे गए फैसले को सुप्रीम कोर्ट सुनाने जा रहा है. एक ओर इस फैसले को लेकर प्रशासन ने कमर कस ली है और ऐहतियातन सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं, दूसरी तरफ लोगों में इस बात को लेकर उत्सुकता है कि ये ऐतिहासिक फैसला किसी एक समुदाय के पक्ष में जाएगा, या फिर विवादित जमीन के मालिकाना हक को लेकर किसी बीच के रास्ते के जरिए समाधान निकाला जाएगा.
फैसला जो भी आए, लेकिन ये फैसला महज जमीन के एक टुकड़े पर नहीं, बल्कि आस्था और राजनीति पर भी होगा.
हिंदुओं की अटूट आस्था
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की बुनियाद ही धार्मिक आस्था को लेकर है. हिंदू पक्ष के लिए अयोध्या और राम जन्मभूमि की अहमियत इसलिए है, क्योंकि यह उनके आराध्य भगवान राम जन्मस्थान से जुड़ी मान्यताओं को लेकर उनकी हजारों वर्ष पुरानी आस्था पर टिका हुआ है.
दूसरी तरफ, मुस्लिम पक्ष के लिए भी मस्जिद उनकी मजहबी आस्था का प्रतीक है.
कोर्ट में हिंदू पक्ष ने जो दलीलें दी हैं, उनमें वाल्मीकि रामायण में राम का जन्म स्थान अयोध्या बताया गया है. पीढ़ी-दर-पीढ़ी से हिंदुओं की अटूट आस्था है कि जिस जगह पर विवादित ढांचा था, वहीं भगवान राम का जन्म स्थान है. ये दलील भी दी गई है कि इतिहास में अयोध्या आने वाले कई विदेशी यात्रियों ने इस जगह पर हिंदू आस्था का जिक्र किया था, और जन्मस्थान के बारे में लिखा था.
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कोर्ट में दी गई दलीलों में ये भी कहा गया है कि विवादित ढांचे पर 1990 में ली गईं तस्वीरों में काले खंभों पर तांडव मुद्रा में शिव, कमल, हनुमान जैसी आकृतियां भी दिखी थीं. ASI की रिपोर्ट में जमीन के नीचे इसी तरह के सबूत मिले थे.
मुस्लिम पक्ष की दलीलें
हिंदू पक्षकारों की दलीलों के जवाब में मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि कोर्ट में मुकदमा सबूतों के आधार पर लड़ा जाना चाहिए, न कि धार्मिक ग्रंथों में लिखी गई बातों के आधार पर. उनका कहना है कि अयोध्या में 3 ऐसी जगहें हैं, जिनके जन्मस्थान होने का दावा किया जाता रहा है. उनका कहना है कि मुस्लिमों की भी मस्जिद को लेकर आस्था है.
इसी तरह हिंदू पक्षकारों की विदेशी यात्रियों को लेकर दी गई दलीलों के जवाब में कहा गया है कि स्थानीय लोगों ने विदेशी यात्रियों को जो बताया, उन्होंने (हिंदू आस्था के बारे में) लिख दिया. साथ ही ये दलील भी दी गई कि इमारत पर अरबी और फारसी में कई जगह अल्लाह लिखा गया था, जो मस्जिद की निशानी हैं.
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मुस्लिम पक्षकारों ने ये दलील भी दी है कि ASI की जिस रिपोर्ट से जमीन के नीचे एक ढांचे का पता चला. उनका मानना है कि वहां मस्जिद होने से पहले एक ईदगाह थी.
राम मंदिर को लेकर राजनीति
देश की राजनीति को अयोध्या के राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद ने काफी प्रभावित किया है. 1990 में राम मंदिर आंदोलन और लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा से बीजेपी को संजीवनी मिली. उसके बाद से आज तक बीजेपी ने राम मंदिर मुद्दे को हर चुनाव में सबसे ज्यादा भुनाने की कोशिश की और इसमें वे काफी हद तक कामयाब भी हुए. शिवसेना भी इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक रोटियां सेंकती रही.
कई चुनावों से पहले मंदिर को लेकर वादे किए गए. अब सुप्रीम कोर्ट में फैसले से अयोध्या जमीन विवाद पर विराम लगने की उम्मीद है.
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