अयोध्या जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब राम मंदिर के बाद मस्जिद का भी शिलान्यास होने जा रहा है. मुस्लिम पक्ष अयोध्या के धनीपुर में मस्जिद की नींव इस गणतंत्र दिवस पर रखने जा रहा है. कोर्ट ने अयोध्या विवाद में मुस्लिम पक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड को बाबरी मस्जिद से 25 किलोमीटर दूर अयोध्या की सोहावल तहसील के धनीपुर गांव में 5 एकड़ भूमि आवंटित की थी.
9 ट्रस्टी 9 पौधे लगाकर करेंगे शिलान्यास
बताया गया है कि 26 जनवरी को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से ट्रस्ट "इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन" (IICF) ये फैसला ले सकता है कि इस मस्जिद को महान स्वतंत्रता सेनानी मौलवी अहमदुल्ला शाह को के नाम पर रखा जाए.
आईआईसीएफ के सचिव अतहर हुसैन ने कहा है कि,
मस्जिद की शुरुआत 26 जनवरी को 9 ट्रस्टी 9 पौधे लगाकर करेंगे. गणतंत्र दिवस के दिन सुबह 8:30 बजे मस्जिद की जमीन पर ध्वजारोहण किया जाएगा और साथ ही वृक्षारोपण के साथ मस्जिद का शिलान्यास किया जाएगा.
हालांकि यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मस्जिद किसके नाम पर होगी इस पर अभी तक कोई अधिकारिक बयान नहीं दिया है. लेकिन ट्रस्ट के सचिव अतहर हुसैन के मुताबिक ट्रस्ट ने ये फैसला लिया है कि मस्जिद को किसी भी मुगल बादशाह के नाम से नहीं जोड़ा जाएगा. इसीलिए अब अहमदुल्ला शाह के नाम पर ये मस्जिद हो सकती है.
कौन हैं अहमदुल्ला शाह ?
भारत की पहली स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई (1857) में अवध का प्रतिनिधित्व करने वाले मौलवी अहमदुल्ला शाह ने भारत की अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में काफी अहम भूमिका निभाई थी. उन्हें हिन्दू-मुस्लिम एकता की अवध में नींव सींची थी. जब पूरा भारत अंग्रेजों की गुलामी से चुप था, तब भी अहमदुल्ला शाह अंग्रेजों से अकेले लोहा लेते थे.
जब 1857 में भारत अपनी स्वतंत्रता की पहली लड़ाई लड़ रहा था. तो अवध को जीत दिलाने के लिए अब्दुल्लाह शाह ने जिम्मा उठाया था. किताब-'भारत में अंग्रेजी राज' में प्रतिष्ठित लेखक सुंदरलाल ने लिखा है कि 'बगावत की जितनी अच्छी तैयारी अवध में थी, वो कहीं और नहीं देखी गई. जब भारत की बगावत के बाद ब्रिटिश सरकार ने बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार कर लिया था तब भी उसके अगले साल मार्च तक अब्दुल्लाह शाह लखनऊ में ब्रिटिश सेना का सामना कर रहे थे और उन्हें माकूल जवाब दे रहे थे.
मौलवी अहमदुल्ला शाह की कर्मभूमि फैजाबाद रही इसलिए कभी-कभी उन्हें अहमदुल्लाह शाह फैजाबादी भी बुलाते थे लेकिन वो कहां जन्मे थे ये कोई नहीं जानता था. कोई उन्हें दक्षिण से आया बताता था तो कोई उन्हें घूमता रहने वाला फकीर.
अंग्रेज उन्हें ‘फौलादी शेर’ कहते थे
कहते हैं कि कई मोर्चों पर जब भी अंग्रेजी हुकूमत को अब्दुल्ला शाह के खिलाफ आगे बढ़ना होता था, तो उन्हें उसके लिए लाशों पर से गुजरना पड़ता था. जिसके बाद से अंग्रेजों ने मौलवी अहमदुल्ला शाह को ‘फौलादी शेर' बुलाना शुरू कर दिया. अंग्रेजों को पता था कि दुर्भाग्यपूर्ण उनका यह शत्रु जनता का प्रिय आदमी है, जिसके कारण अंग्रेजों को मौलवी को परास्त करना बहुत भारी पड़ रहा था.
अंग्रेजों ने रखा था 50 हजार का इनाम
मौलवी अहमदुल्ला शाह ने परास्त होना कभी सीखा ही नहीं. अंग्रेजी बागियों से आमने-सामने की लड़ाई में भी उन्हें वह अपने करीब तक नहीं आने देते थे. जिससे परेशान होकर अंग्रेजी सरकार ने उनके सिर की कीमत 50 हजार का इनाम रख दिया. उन पर 1858 में इतना बड़ा इनाम रखा गया था.
अपनों के विश्वासघात ने ली जान
जब मौलवी अपने पीछे पूरी अंग्रेजी सेना को अवध में यहां से वहां घुमा रहे थे. तब इसी कीमत के लालच में शाहजहांपुर जिले के राजा जगन्नाथ सिंह के भाई बलदेव सिंह ने 15 जून 1858 को उन्हें धोखे से गोली चलाकर मार दिया था. बलदेव सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में मदद मांगने के बहाने उनकी जान ले ली थी.
सामाजिक भाईचारा और देश प्रेम को बढ़ाने को लेकर मौलवी अहमदुल्ला शाह के नाम पर इस मस्जिद का नाम रखा जा सकता है. माना जा रहा है कि मस्जिद का मौलवी अहमदुल्ला शाह नाम रखने से, इस देश में हिंदू और मुसलमान एकता को बढ़ावा मिलेगा जिससे ये दोनों धर्म एक दूसरे के और करीब आएंगे.
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