पीएम मोदी के साथ बातचीत में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने लोकतांत्रिक संस्थानों और मानकों को बचाने पर जोर दिया है. ये ऐसे समय में हुआ है जब भारत में चल रहे किसान आंदोलन की दुनियाभर में चर्चा में है और कई विदेशी हस्तियों ने इस आंदोलन पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया की आलोचना की है.
बाइडेन और पीएम मोदी के बीच सोमवार को हुई बातचीत को लेकर व्हाइट हाउस के बयान में बताया गया है, ‘’राष्ट्रपति (बाइडेन) ने दुनियाभर में लोकतांत्रिक संस्थानों और मानकों की रक्षा करने की अपनी इच्छा को रेखांकित किया और कहा कि लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए एक साझा प्रतिबद्धता अमेरिका-भारत के संबंधों का आधार है.’’
भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस बातचीत पर जो बयान जारी किया है, उसमें लोकतांत्रिक संस्थानों और मानकों की रक्षा जैसी टर्म शामिल नहीं है. इस बयान में बताया गया है- ''उन्होंने (दोनों नेताओं ने) नोट किया कि भारत-अमेरिका की साझेदारी लोकतांत्रिक मूल्यों और साझा रणनीतिक हितों के लिए एक साझा प्रतिबद्धता के तहत मजबूती से जुड़ी हुई है.''
बाइडेन ने कूटनीतिक सूझबूझ के साथ दिया बड़ा मैसेज
बाइडेन ने 20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली थी. इसके बाद उन्होंने सोमवार को पहली बार पीएम मोदी से बात की.
इस बातचीत से पहले यह सवाल उठ रहा था कि बाइडेन किसान आंदोलन के बीच भारत के मौजूदा हालात को लेकर क्या मैसेज देंगे. इस सवाल के उठने के पीछे की एक बड़ी वजह यह भी थी कि अमेरिका की राजनीति, मीडिया और यहां तक की एंटरटेनमेंट की दुनिया से भी किसान आंदोलन का मुद्दा अछूता नहीं रहा है.
हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस के शक्तिशाली इंडिया कॉकस के नेताओं ने भारत सरकार से लोकतांत्रिक नियमों का पालन सुनिश्चित करते हुए शांतिपूर्ण प्रदर्शनों की अनुमति देने और इंटरनेट तक पहुंच मुहैया कराने का अनुरोध किया था.
अमेरिकी पॉप स्टार रिहाना, जो दुनियाभर में काफी मशहूर हैं, ने भी किसान आंदोलन को लेकर सीएनएन का एक आर्टिकल ट्विटर पर शेयर करते हुए लिखा,‘‘हम इसके बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं?''
जानेमाने ब्रिटिश-अमेरिकी पत्रकार मेहदी हसन ने विरोध प्रदर्शनों को 5:20 मिनट लंबा एक सेगमेंट समर्पित करते हुए न केवल किसान आंदोलन के मुख्य मुद्दों की बात की, बल्कि इस पर भी जोर दिया कि “प्रदर्शनों पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया से हमें चिंतित होना चाहिए.’’
यह याद दिलाते हुए कि अमेरिकी कूटिनीति आजादी को बचाने और यूनिवर्सल राइट्स को बरकरार रखने के बारे में होनी चाहिए, हसन ने पूछा था, ‘’सवाल यह है कि बाइडेन क्या करेंगे. क्या होगा जब भारत जैसे करीबी सहयोगी का मामला हो.’’
हसन के इस सवाल की अहमियत इसलिए बहुत ज्यादा थी क्योंकि खुद को हमेशा ग्लोबल लीडर के तौर पर बरकरार रखने की कोशिश में रहने वाले अमेरिका का लोकतांत्रिक और मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर बोलने का इतिहास रहा है. राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद बाइडेन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को लेकर यह तक कह चुके हैं कि उनकी शरीर में ''लोकतांत्रिक हड्डी'' नहीं है.
मगर एक ऐसे वक्त में जब चीन जैसी महाशक्ति को रोकने के लिए अमेरिका को भारत जैसे सहयोगी की जरूरत है, बाइडेन के सामने मजबूरी थी कि वह एकदम सीधा और बहुत सख्त मैसेज नहीं दे सकते थे.
इस सबके बीच बाइडेन ने किस तरह कूटनीतिक सूझबूझ दिखाई, इसे समझने के लिए व्हाइट हाउस के बयान को फिर से देखिए- ''राष्ट्रपति ने दुनियाभर में लोकतांत्रिक संस्थानों और मानदंडों की रक्षा करने की अपनी इच्छा को रेखांकित किया और कहा कि लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए एक साझा प्रतिबद्धता अमेरिका-भारत संबंधों का आधार है.'' यहां दुनियाभर में जैसी टर्म का जिक्र कर दिया गया, जिससे भारत को कोई आपत्ति भी न हो और बाइडेन को जो मैसेज देना था, वो भी चला जाए.
बता दें कि पीएम मोदी से बात करने से पहले और शपथ लेने के बाद बाइडेन कनाडा के प्रधानमंत्री, मैक्सिको के राष्ट्रपति, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री, फ्रांस के राष्ट्रपति, जर्मनी की चांसलर, रूसी राष्ट्रपति, जापान के प्रधानमंत्री और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री से भी बात कर चुके थे. मगर इन नेताओं के साथ बातचीत को लेकर व्हाइट हाउस ने जो बयान जारी किए हैं, उनमें से सिर्फ जर्मन चांसलर अंगेला मर्केल के साथ बाइडेन की बातचीत में लोकतंत्र से जुड़ी किसी टर्म (लोकतांत्रिक मूल्यों) का इस्तेमाल किया गया है.
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