बिहार में सुशील मोदी की जगह रेणु देवी और तारकिशोर प्रसाद को डिप्टी सीएम बनाकर बीजेपी ने अपनी प्राथमिकता साफ कर दी है. सुशील मोदी इस पद पर 2005 से 2013 तक और फिर 2017 से 2020 तक रहे थे.
सबसे साफ संदेश बीजेपी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दे रही है और बता रही है कि गठबंधन में बड़ा भाई कौन है. ये पहली बार है जब बीजेपी को अपनी गठबंधन सहयोगी जेडीयू से ज्यादा सीटें आई हैं.
लेकिन और भी बाते हैं और रेणु देवी और तारकिशोर प्रसाद को चुने जाने से बिहार के लिए बीजेपी की योजनाओं का पता चलता है.
मोदी-शाह ने फिर लो-प्रोफाइल नेता चुने
रेणु देवी और तारकिशोर प्रसाद सही मायनों में छोटे नेता नहीं हैं. दोनों चार बार विधायक रह चुके हैं. देवी मंत्री भी रह चुकी हैं. लेकिन दोनों ही नेताओं ने हमेशा लौ प्रोफाइल रखा है और मजबूत संगठनात्मक बैकग्राउंड रखते हैं. जहां प्रसाद आरएसएस के छात्र विंग ABVP की सीढ़ियां चढ़ते हुए आए हैं, वहीं देवी 80 के दशक में बीजेपी के महिला मोर्चा से जुड़ी हुई थीं.
दोनों को बिहार सरकार में पद मिलना उस पैटर्न में फिट बैठता है, जिसमें पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी ने मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम चुने हैं. उदाहरण के लिए, हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर, झारखंड के पूर्व सीएम रघुबर दास, हिमाचल प्रदेश के सीएम जयराम ठाकुर. ये सभी लो-प्रोफाइल नेता रहे हैं और संगठन से जुड़े थे.
यूपी में योगी आदित्यनाथ, कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा और एमपी में शिवराज चौहान को छोड़ दिया जाए तो सीएम पद के लिए लो-प्रोफाइल नेता चुने गए हैं.
साफ है कि मोदी-शाह की जोड़ी ऐसे नेताओं को चुनते हैं, जो वफादार हैं और अपना काम शांति से करते हैं.
जाति और क्षेत्र का बैलेंस
रेणु देवी और तारकिशोर प्रसाद की नियुक्ति से बीजेपी जाति और क्षेत्रीय समीकरण भी बैलेंस करने की कोशिश कर रही है. देवी नोनिया जाति से हैं, जो EBC केटेगरी में आती है. एक EBC महिला को डिप्टी सीएम बनाने से बीजेपी नीतीश कुमार के दो वोट बैंक (EBC और महिलाएं) में सेंध मारने की कोशिश कर रही है.
वहीं, तारकिशोर प्रसाद करवाल वैश्य समुदाय से आते हैं और ये OBC केटेगरी में आते हैं. वैश्य बीजेपी के सबसे मजबूत वोटबैंक में से एक है.
ये महत्वपूर्ण है कि बीजेपी ने डिप्टी सीएम अपर कास्ट से नहीं चुना, जबकि इस वर्ग से पार्टी को भारी समर्थन मिला है.
इसके पीछे ये सोच हो सकती है कि बीजेपी की छवि डोमिनेंट कास्ट की पार्टी नहीं बन जाए, जिससे कि EBC और महादलित का दूर जाने का खतरा है. इन दोनों ही वोटबैंक में बीजेपी अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है.
एक EBC महिला और एक OBC डिप्टी सीएम नीतीश कुमार की नॉन-डोमिनेंट जातियों के मसीहा बनने की कोशिशों को भी बाधित कर सकते हैं. तीसरी अहम नियुक्ति वरिष्ठ नेता नंद किशोर यादव की विधानसभा स्पीकर के तौर पर हो सकती है. पिछली NDA सरकारों में ये पद JDU के पास रहा है.
विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश साहनी को मंत्री पद देने के पीछे बीजेपी की केवट/मल्लाह समुदाय में सेंध लगाने की मंशा हो सकती है.
क्षेत्र के मामले में भी बीजेपी ने बैलेंस करने की कोशिश की है. जहां तारकिशोर प्रसाद बिहार के उत्तरपूर्वी इलाके सीमांचल के कटिहार से आते हैं, वहीं रेणु देवी उत्तरपश्चिमी इलाके के बेतिया से हैं और नंद किशोर यादव पटना से हैं.
बदलती हुई पार्टी
ये नियुक्तियां बताती हैं कि बिहार में बीजेपी को एक बदलती हुई पार्टी के तौर पर देखा जाना चाहिए. ये बदलाव दो स्तरों पर हो रहा है.
एक स्तर पर पार्टी उस नेतृत्व से दूर जा रही है, जिसने अपनी शुरुआत इमरजेंसी युग के दौरान की थी. अब पार्टी उस नेतृत्व की तरफ बढ़ रही है, जिसके शुरुआती साल राम जन्मभूमि आंदोलन के थे.
ऐसे में मतलब ये होगा कि वैचारिक रूप से कठोर रुख रखा जाएगा और सोशलिस्ट पार्टियों के साथ सहयोग कम से कम होगा.
दूसरा बदलाव है कि बीजेपी नीतीश कुमार के बाद की सच्चाई के लिए तैयार हो रही है. मतलब कि एक ऐसा समय जब बीजेपी की अपनी सरकार होगी.
इस बदलाव के दौर में पार्टी की प्राथमिकता होगी कि वो नीतीश कुमार के EBC और महादलित के वोट बेस में ज्यादा से ज्यादा सेंध लगा सके.
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