उत्तर प्रदेश को लेकर पीएम मोदी और अमित शाह की परेशानियां बढ़ती जा रही हैं. यूपी के दलित सांसद राज्य में दलितों के साथ भेदभाव और उत्पीड़न पर नाराजगी जता रहे हैं अब पांचवे सांसद श्यामाचरण गुप्ता ने वैश्य समुदाय के लिए बगावती रुख अपना लिया है. गुप्ता का कहना है कि वैश्य समाज के साथ अन्याय हो रहा है.
इसके पहले पार्टी के दलित सांसद यशवंत सिंह, सावित्रा बाई फुले, छोटे लाल और अशोक कुमार दोहरे ने उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार के दौरान दलितों के साथ हो रहे उत्पीड़न पर नाराजगी जताई है. यही नहीं दिल्ली के सांसद उदित राज भी इस मुद्दे पर बैचेनी और गुस्सा जता चुके हैं.
इलाहाबाद से सांसद श्याम चरण गुप्ता के बगाबती सुर
इलाहाबाद से बीजेपी सांसद श्यामा चरण गुप्ता ने कहा बीजेपी वैश्य समाज को बंधुआ मजदूर समझती है लेकिन, बंधुआ मजदूर जब आरी चलाता है तो खूंटा भी उखाड़ ले जाता है. गुप्ता ने रविवार को कालपी में एक कार्यक्रम में अपनी ही पार्टी को खूब खरी खरी सुनाई.
गुप्ता ने कहा कि वैश्य समाज के लोग भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं. ऐसे में उन्हें भी आरक्षण मिलना चाहिए. सांसद ने कहा कि अगर वैश्यों को आरक्षण नहीं दिया गया तो वैश्य समाज भी सड़कों पर उतरना जानता है.
श्यामाचरण गुप्ता ने कहा
देश को आजादी दिलाने में महात्मा गांधी ने मेहनत की और लाभ नेहरू ने लिया. वहीं, राम नाम का बीज अशोक सिंघल ने बोया और फसल अटल बिहारी वाजपेयी ने काट ली.
दलितों की अनदेखी से नाराज सांसद
दलितों के उत्पीड़न के मसले पर बीजेपी लगातार घिरती जा रही है. भारत बंद के दौरान हुई हिंसा के बाद से विपक्ष लगातार बीजेपी को निशाना बना रहा है. अब बीजेपी के अपने ही उस पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. अब तक पार्टी के पांच दलित सांसद बीजेपी को दलितों के उत्पीड़न के लिए चेतावनी दे चुके हैं.
1. यूपी के नगीना से सांसद यशवंत सिंह
उत्तर प्रदेश के नगीना से सांसद डॉ. यशवंत सिंह ने पीएम मोदी को खत लिखकर नाराजगी जताई. उन्होंने सरकार पर दलितों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए कहा कि पिछले चार सालों में सरकार ने देश के 30 करोड़ दलितों के लिए कोई काम नहीं किया. उन्होंने कहा कि दलित होने की वजह से उनकी क्षमताओं का इस्तेमाल नहीं किया गया. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि वो सिर्फ दलित होने की वजह से सांसद बने हैं.
2. यूपी के बहराइच से सांसद सावित्री बाई फुले
बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले भी अपनी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल चुकी हैं. फुले ने आरक्षण के मुद्दे पर अपनी ही सरकार के खिलाफ बिगुल फूंकते हुए कहा था, 'मैं सांसद रहूं या न रहूं, लेकिन आरक्षण से छेड़छाड़ नहीं होने दूंगी. यह मुझे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं है.'
आरक्षण को बाबा साहब और संविधान की देन बताते हुए उन्होंने कहा कि यह प्रतिनिधित्व का मामला है. इसे भीख कहना संविधान का अपमान है. फुले पहले भी अपनी ही पार्टी के नेताओं पर आरक्षण को लेकर कई गंभीर आरोप लगा चुकी हैं.
3. रॉबर्ट्सगंज के सांसद छोटे लाल को भी शिकायत
यूपी के रॉबर्ट्सगंज से बीजेपी के दलित सांसद छोटेलाल ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर सीएम योगी की शिकायत की थी. दलित सांसद छोटेलाल खरवार ने अपनी ही पार्टी की सरकार पर उन्हें प्रताड़ित करने के आरोप लगाए थे. उन्होंने यहां तक कहा कि वह दलित होने का खामियाजा उठा रहे हैं और हर जगह गुहार लगाने पर भी कहीं भी सुनवाई नहीं हो रही है. इसलिए जब कोई विकल्प नहीं बचा तो वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शरण में आए.
खरवार ने जो प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी, उसमें सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, संगठन मंत्री सुनील बंसल और प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडे पर कई संगीन आरोप लगाए.
4. इटावा से सांसद दोहरे ने अपनी ही पार्टी पर लगाए आरोप
यूपी के इटावा से बीजेपी सांसद अशोक दोहरे ने अपनी ही सरकार पर भारत बंद के बाद पुलिस के जरिए दलितों के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज कराने का आरोप लगाया. दोहरे ने कहा कि यूपी पुलिस भारत बंद के बाद से एससी और एसटी समुदाय के लोगों को जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए उन्हें घर से बाहर निकालकर पीट रही है, इससे अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों में असुरक्षा की भावना पैदा हो गई है.
दोहरे ने पीएम मोदी को लिखी चिट्ठी में लिखा है कि वह दलित उत्पीड़न से आहत हैं.
5. सांसद उदित राज का आरोप, नहीं पूछती सरकार
भारत बंद के बाद बीजेपी के दलित सांसद डॉ. उदित राज का भी दर्द छलक कर बाहर आया. उन्होंने कहा कि मामला रोहित वेमुला की घटना से बिगड़ा. उसके बाद लगातार ऊना, सहारनपुर, कोरेगांव, मूंछ काटने की घटना, दलितों को घोड़ी न चढ़ने देने की बात जैसी कई वजह हैं. SC-ST एक्ट तो चिंगारी बन गया, गुस्सा पहले से ही भरा हुआ था.
उदित राज ने कहा, “4 साल से तो मुझसे कुछ पूछा नहीं गया. मैं खुद जरूर बताता रहा था कि दलित गुस्से में हो रहे हैं. कोई कुछ पूछे तो बताऊं. वो व्यस्त रहे होंगे. किसी ने पूछा नहीं तो किसको बताएं, कहां बताएं, कैसे बताएं. एक दलित प्रतिनिधि के तौर पर 20 साल इनके बीच रहा लेकिन कभी पूछा नहीं गया.”
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