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येदियुरप्पा ने कभी किया था BJP से किनारा आज फिर बने कर्नाटक के CM

कहते हैं कि कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा एक ऐसा नाम है जिसके बिना बीजेपी का अस्तित्व अधूरा है. 

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कर्नाटक के रण में बीजेपी ने एक बार फिर बाजी मार ली है और बीजेपी की इस ‘सत्ता रेस’ में एक नाम है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. वो नाम है बुकंकरे सिद्दालिंगप्पा येदियुरप्पा.

जी हां, वही बीएस येदियुरप्पा जिन्होंने 2012 में बीजेपी छोड़कर अपनी अलग राजनीतिक पार्टी बना ली थी. वही येदियुरप्पा जिसने दक्षिण भारत में पहली बार बीजेपी का कमल खिलाया था. पहली बार बीजेपी को कर्नाटक में सत्ता की स्वाद चखाया था. तमाम अटकलों के बाद आज मतलब 17 मई 2018 को येदियुरप्पा दोबारा कर्नाटक के सीएम बन गए हैं.

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कहते हैं कि कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा एक ऐसा नाम है जिसके बिना बीजेपी का अस्तित्व अधूरा है. कर्नाटक चुनाव में बीजेपी ने बिना देरी किए येदियुरप्पा को अपना सीएम कैंडिडेट बना दिया था. सिर्फ सीएम उम्मीदवार ही नहीं बल्कि अमित शाह ने भी येदियुरप्पा की उम्मीदवारी का एेलान करते हुए कहा था कि येदियुरप्पा अगले पांच साल तक सीएम बने रहेंगे. एेसे में आइए जानते हैं 75 साल के येदियुरप्पा की पूरी कहानी.

जमीन से सिंहासन तक की कहानी

बीएस येदियुरप्पा अपने मजबूत किले शिकारीपुरा से चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं. वो अबतक 7 बार शिकारीपुरा से चुनाव जीत चुके हैं.

येदियुरप्पा ने पहली बार 1983 में कर्नाटक विधानसभा में कदम रखा था. येदियुरप्पा इस सीट से 1983 से जीतते आ रहे हैं. सिर्फ एक बार ही 1999 में उन्हें कांग्रेस के महालिंगप्पा से हार का सामना करना पड़ा था.

राइस मिल में थे क्लर्क

बता दें कि लिंगायत समाज से आने वाले येदियुरप्पा का जन्म 27 फरवरी 1943 को मांड्या जिले के बुक्कनकेरे में हुआ था. कर्नाटक के तुमकुर जिले में एक जगह है येदियुर. वहीं संत सिद्ध लिंगेश्वर का बनाया हुआ शैव मंदिर है जिसके पर नाम येदियुरप्पा का नाम रखा गया था. उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई मांड्या के पीईएस कॉलेज से की. जिसके बाद 1965 में वो मांड्या से शिकारीपुरा आ गए, जहां उन्होंने वीरभद्र शास्त्री राइस मिल में नौकरी कर ली. यहीं उन्होंने वीरभद्र शास्त्री की बेटी मैत्रादेवी से शादी कर ली. येदियुरप्पा आरएसएस से भी अपने जवानी के दिनों से जुड़े रहे हैं.

आपातकाल में जाना पड़ा जेल

साल 1972 में येदियुरप्पा को शिकारीपुरा तालुका जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया. लेकिन उसके बाद 1975 में आपातकाल के दौरान उन्हें शिमोगा और बेल्लारी में करीब 45 दिनों तक जेल में रहना पड़ा. यहीं से उनकी राजनीति में नया मोड़ आया और फिर 1977 में उन्हें जनता पार्टी का सचिव बनाया गया. साल 1983 में वह पहली बार विधानसभा पहुंचे. साल 1988 में येदियुरप्पा कर्नाटक बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बने. 1994 में कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में उभरे.

पहली बार दक्षिण में खिला कमल

येदियुरप्पा चुनाव दर चुनाव लिंगायत समाज से लेकर कर्नाटक की जनता पर पकड़ बनाते गए. साल 2007 में कर्नाटक में राजनीतिक उलटफेर हुआ. कांग्रेस की सरकार गिरा दी गई और सत्ता में जेडीएस-बीजेपी गठबंधन आ गया. समझौते के तहत पहले कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने, लेकिन जब उनके हटने और येदियुरप्पा के सीएम बनने की बारी आई तो वो अड़ गए. और वहां राष्ट्रपति शासन लग गया.

12 नवंबर 2007 को वह कर्नाटक के मुख्यमंत्री बन गए. लेकिन येदियुरप्पा की ये खुशी सिर्फ 7 दिन तक ही रह सकी. जेडीएस से मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर बढ़े विवाद से 19 नवंबर 2007 को ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. साल 2008 में विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी ने जबरदस्त जीत हासिल की और सरकार बनाई. इस बार फिर येदियुरप्पा बीजेपी के चेहरे के तौर पर सीएम बने.

फिर सत्ता में वापसी लेकिन फिर जाना पड़ा जेल

लेकिन सीएम बनने के तीन साल दो महीने में ही उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा. जमीन घोटाले से लेकर खनन घोटाले तक में उनका नाम आया.

लोकायुक्त की रिपोर्ट में उनका नाम आने के बाद भ्रष्टाचार के आरोप में उन्हें 20 दिनों के लिए जेल भी जाना पड़ा. सीएम की कुर्सी जाने के बाद येदियुरप्पा बीजेपी से अलग हो गए. और 2012 में खुद की पार्टी कर्नाटक जनता पक्ष बनाई. लेकिन 2013 में मोदी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने के बाद जनवरी 2014 में पार्टी में दोबारा उनकी वापसी हुई. जहां 2013 के विधानसभा चुनावों में येदियुरप्पा के अलग होने का खामियाजा बीजेपी को सत्ता गंवाकर भुगतना पड़ा वहीं 2014 में बीजेपी में वापसी के बाद लोकसभा चुनाव में अच्छे खासे वोट बटोरे. 
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2018 में बीजेपी ने दोबारा येदियुरप्पा पर ही दांव खेला और उन्हें सीएम पद का उम्मीदवार बनाया. येदियुरप्पा एक बार फिर कर्नाटक में बीजेपी का कमल खिलाने में कामयाब हुए हैं.

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