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Budget ओपिनियन पोल: खुश नहीं भारतीय, भविष्य को लेकर चिंता में

बजट की रेटिंग सबसे कम यूथ के बीच रही

Published
भारत
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आम तौर पर ऐसा होता है कि एक्सपर्ट्स किसी संकट को संभालने को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करते हैं लेकिन सर्वों में उसकी पॉपुलैरिटी बरकरार रहती है.

हालांकि, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को जो बजट 2021-22 पेश किया, वो इस मामले में थोड़ा अलग रहा. एक्सपर्ट्स ने इसके बारे में स्टूडियो और कॉलम्स में जो लिखा और कहा, उससे उलट सर्वों में कहीं ज्यादा नकारात्मक तस्वीर उभर कर आई.

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सबसे ज्यादा नेगेटिव सेंटीमेंट

1200 सैंपल साइज वाले CVoter के एक बजट ओपिनियन पोल के मुताबिक, 36.4 फीसदी लोगों ने कहा कि पीएम और वित्त मंत्री की टीम ने 'उम्मीद से ज्यादा खराब' बजट पेश किया है. सर्वे का कहना है कि 25.1% लोगों को लगता है कि बजट 'उम्मीद से बेहतर' था और 27.6% लोगों ने कहा कि ये 'उम्मीद के मुताबिक' ही था.

2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने बाद से ये सबसे ज्यादा नेगेटिव सेंटीमेंट है. इससे पहले 2018 में 34.9% लोगों ने इसे 'उम्मीद से ज्यादा खराब' बताया था. ये तब हुआ था, जब GST का नकारात्मक प्रभाव सबसे ज्यादा महसूस किया गया था.

मोदी सरकार के लिए परेशान करने वाली बात ये है कि नेगेटिव सेंटीमेंट 2013 के UPA बजट से भी ज्यादा है. उस समय 29.3 फीसदी लोगों ने इसे ‘उम्मीद से ज्यादा खराब’ बताया था. 

जब लोगों से पूछा गया कि क्या वो 'बजट से संतुष्ट हैं', तो 45.1 फीसदी ने 'नहीं' कहा और 35.8 फीसदी ने 'हां' कहा. 2020 में 64 फीसदी लोग संतुष्ट थे और असंतुष्ट लोगों की तादाद 25.7 फीसदी से करीब 20 फीसदी बढ़ गई है.

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यूथ सबसे ज्यादा निराश

बजट को 1 से 10 के स्केल पर रेट करने को जब कहा गया, तो बजट 2021 की औसत रेटिंग 5.3 रही. पिछले साल की औसत रेटिंग 7.1 से ये 1.8 पॉइंट की गिरावट थी. हालांकि, ये 2018 की 4.7 और 2017 की 5.2 रेटिंग से ज्यादा है. ये दोनों बजट नोटबंदी और GST के बाद के बजट थे.

मौजूदा बजट की रेटिंग सबसे कम 4.97 यूथ (25 साल से कम) और 10,000 से 20,000 मासिक इनकम ब्रैकेट वालों के बीच 4.94 रही. रेटिंग सबसे ज्यादा 20,000 से 50,000 मासिक इनकम ब्रैकेट वालों के बीच 6.39 और 46-55 साल उम्र वालों के बीच 5.95 पॉइंट रही.  

पिछले सालों के मुकाबले खराब रेटिंग और नेगेटिव सेंटीमेंट इकनॉमी को लेकर निराशा की ओर इशारा करता है. यही निराशा बजट के दूसरे डेटा पॉइंट्स में भी देखने को मिलती है.

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घर के खर्चों पर चिंता

सबसे ज्यादा डर महंगाई और घर के खर्चों को संभालने को लेकर दिखा.

सर्वे में लोगों से पूछा गया कि 'वो अपने अगले एक साल के रोजाना के खर्चों के बारे में क्या अनुमान लगाते हैं?' इसके जवाब में 49.7% लोगों ने कहा कि 'भविष्य में खर्चे संभालना मुश्किल होगा'. ये 2020 के मुकाबले 11.7 परसेंटेज पॉइंट की बढ़त है.

जब लोगों से पूछा गया कि अगला एक साल उनके लिए कैसा रहेगा, तो 29 फीसदी लोगों ने कहा कि ‘ये खराब होगा’, 30.4 फीसदी लोगों ने कहा कि ये ऐसा ही रहेगा और 27.6 प्रतिशत लोगों ने कहा कि इसमें ‘सुधार’ होगा.  

2014 के बाद से ये सबसे ज्यादा निराशावादी आकलन है. 2018 में भी 29.3 फीसदी लोगों ने कहा था कि उनका स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग खराब होगा लेकिन उस समय इस बारे में सकारात्मक सोचने वालों की तादाद 40.4% थी.

ये साफ है कि कोरोना महामारी की वजह से आर्थिक रूप से निराशावादी माहौल बन गया है और मोदी सरकार सेंटीमेंट को सुधारने में नाकामयाब दिखती है.

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