इतिहास उठाकर देख लीजिए. किसी भी समुदाय और समाज की व्याख्या उसके नायकों के आधार पर ही की गई है. पहले राजे-रजवाड़े, नवाब होते थे. अब लोकतंत्र है, इसलिए चुनकर जो आ जाए, वो नायक होता है.
चुनकर कैसे आया ये सब महत्वहीन हो जाता है. कितने लोगों ने उसे चुना, ये भी महत्वहीन हो जाता है. लेकिन चुनकर आया, तो लोकतंत्र में वही पूरे समुदाय, समाज, राज्य और देश का नायक होता है. इसलिए उसी के चरित्र से पूरे समुदाय, समाज, राज्य और देश का चरित्र तय होता है.
कितनी बार शर्मसार होगा यूपी?
आज उत्तर प्रदेश का चरित्र तय हो रहा है. अभी के संदर्भ में उत्तर प्रदेश का चरित्र तय करने का पैमाना बुलंदशहर से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 91 का वो किनारा है, जहां मानवता शर्मसार हो गई. हालांकि उत्तर प्रदेश में ऐसा किनारा खोजने की जरूरत नहीं है. वो हर जगह मिल जाएगा. बरेली हो या बुलंदशहर इससे फर्क कहां पड़ता है. चरित्र गिराने के लिए जगह कहां कम पड़ती है और वो उत्तर प्रदेश में तो कतई नहीं.
उत्तर प्रदेश शर्मसार तो खूब हुआ लेकिन, क्या करें. लोकतंत्र में नायक 5 साल बाद ही बदलते हैं. भले ही जनता इस बीच अपना नया नायक चुन ले. ऐसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश अपने इस ‘चरित्र निर्माण’ पर प्रतिक्रिया नहीं देना चाहता. उत्तर प्रदेश अपने इस चरित्र चित्रण से चिंतित है. वो चिंता की प्रतिक्रिया ही थी कि 16 मई 2014 को उत्तर प्रदेश ने नतीजा दे दिया. वो नतीजा उत्तर प्रदेश के यादव परिवार द्वारा किए गए ‘चरित्र निर्माण’ की तगड़ी प्रतिक्रिया ही थी. लेकिन इस प्रतिक्रिया के बावजूद यादव परिवार के चरित्र के लिहाज से ही पूरे उत्तर प्रदेश का चरित्र तय होगा. इसके बावजूद की अब यादव परिवार उत्तर प्रदेश का नायक भी नहीं रहा.
लेकिन लोकतंत्र में चुनने के हक के साथ ये मजबूरी भी शामिल होती है कि पांच साल तक तो चरित्र वही चुना हुआ नायक ही तय करेगा. वो कर रहे हैं.
मुलायम सिंह यादव और उनका पूरा कुनबा खुद को लोहियावादी कहे और वही राममनोहर लोहिया कह गए हैं कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करतीं.
लेकिन उत्तर प्रदेश को अपना चरित्र सुधारने के लिए पांच साल इंतजार करना ही पड़ रहा है. तब तक उत्तर प्रदेश को इस तरह से अपने चरित्र की व्याख्या की आदत डालनी होगी.
जरा इनके बयानों पर गौर कीजिए
अभी उत्तर प्रदेश के चरित्र की ताजा व्याख्या आजम खान ने की है. बड़ा नफासत भरे अंदाज में कह दिया कि सत्ता पाने के लिए ये राजनीतिक साजिश भी हो सकती है. अब ये मत समझ लीजिएगा कि ऐसे उत्तर प्रदेश के चरित्र चित्रण का काम बेचारे आजम खान अकेले कर रहे हैं. आजम खान बुलंदशहर पर बोले हैं. बदायूं पर नौजवान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी बोले थे. इसीलिए उत्तर प्रदेश को अपने चरित्र की ऐसी व्याख्या की आदत बन गई होगी.
बरेली और बुलंदशहर से पहले बदायूं भी हुआ था, जिसमें अंत में सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, पेड़ से लटकने वाली लड़कियों के साथ कहीं कोई जबर्दस्ती नहीं हुई. बदायूं में दो लड़कियों की पेड़ से लटकी तस्वीरों ने उत्तर प्रदेश का चरित्र दिखाया था. उत्तर प्रदेश के चरित्र का संकेत भर उस समय पेड़ से लटकी लड़कियों की तस्वीर से मिला था. उस पर पक्की मुहर लगाई नौजवान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने. अखिलेश यादव ने बदायूं के मामले में प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल किया, तो उत्तर प्रदेश का चरित्र उजागर हो गया.
अखिलेश यादव ने कहा- आप तो सुरक्षित हैं. अब ये सुरक्षित होने का आश्वासन था या फिर आप सुरक्षित हैं ये क्या कम है. और क्या आप चाहते हैं कि आप भी सुरक्षित न रहें, इस तरह की धमकी थी. उत्तर प्रदेश का चरित्र तय हो रहा है.
ऐसा पहली बार तो नहीं हुआ है
ऐसा नहीं है कि ये अभी हो रहा है. ये हर बार हुआ है और इसीलिए कई बार होने के बाद भी जब उत्तर प्रदेश को अपने नायक के तौर पर समाजवादी यादव परिवार ही नजर आता है, तो ये गलत भी नहीं है कि यादव परिवार के चरित्र को पूरे उत्तर प्रदेश का चरित्र मान लिया जाए. ऐसा नहीं है कि किसी राज्य में या कितने भी सख्त प्रशासन में ऐसी विकृत मानसिकता वाले आततायी न हों और वो इस तरह का व्यवहार न करें.
लेकिन अंग्रेजी में एक शब्द कहा जाता है जीरो टॉलरेंस, यानी किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं है. जब नायक वो आचरण दिखाता है. तो अपने चरित्र से पूरे समुदाय, समाज, राज्य और देश का चरित्र बना देने वाले अपना वो चरित्र सार्वजनिक तौर पर जाहिर करने में डरते हैं. लेकिन जब राज्य का घोषित नायक अखिलेश यादव इस तरह का चरित्र दिखा रहा हो. समाजवाद के सबसे बड़े स्वघोषित लंबरदार मुलायम सिंह यादव को बलात्कार लड़कों की गलतियां लगता हो. बलात्कार कोई ऐसा अपराध न लगता हो जिसमें फांसी हो.
जब मुलायम सिंह यादव को मुजफ्फरनगर के दंगे सिर्फ साजिश लगती हो. जब मुलायम सिंह यादव को दंगों के बाद बेघर मुसलमान कैंप में रहें, तो वो मुआवजे और उनकी समाजवादी सरकार की छवि खराब करने के लिए किराए पर लाए मुसलमान लगते हों. तो उत्तर प्रदेश के साथ हर कोई बलात्कार करने के लिए स्वतंत्र हो जाता है. फिर कैसे एक परिवार का चरित्र पूरे प्रदेश का चरित्र बना-बिगाड़ देता है वो भी देखिए.
इस तरह बनता-बिगड़ता रहा यूपी का चरित्र
इसी उत्तर प्रदेश के चरित्र को एक अधिकारी के बयान ने और पुख्ता कर दिया था. भूल गए होंगे. इसीलिए उत्तर प्रदेश का ये चरित्र बार-बार बनता (बिगड़ता) है. अधिकारी का मानना था कि ठंड से कोई मर कैसे सकता है. उसके आगे का ये है कि भूख से भी भला कोई कैसे मर सकता है. लेकिन फिर सवाल यही उठता है कि आखिर जब इतना ‘चरित्र निर्माण’ उत्तर प्रदेश में हो रहा है, तो फिर इसे पूरे प्रदेश का चरित्र कैसे न माना जाए.
आखिर हम उत्तर प्रदेश के लोगों ने ही तो इस ‘चरित्र निर्माणी’ परिवार को अपना नायक बनाया. इस कदर कि उन्हें लगा कि इस परिवार के अलावा किसी और में उत्तर प्रदेश के लोगों को भरोसा ही नहीं है. यादव परिवार के नाते और मुसलमान बीजेपी से डरे होने के कारण मुलायम सिंह यादव परिवार को पूरे वोटों का भरोसा देते रहे हैं. उन्हें इससे रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ता कि यादव परिवार का चरित्र कैसे पूरे यादवों, मुसलमानों और पूरे राज्य का चरित्र तय कर रहा है.
हालांकि, लोकसभा चुनावों के आधार पर देखें तो उत्तर प्रदेश का नायक बदल चुका है. यादव परिवार में ही सीमित हो गया है. यादवों ने भी अपने इस चरित्र चित्रण के खिलाफ तगड़ी प्रतिक्रिया दी. और मुसलमान भी भारतीय जनता पार्टी से पहले जैसा डरकर यादव से मौलाना हो गए मुलायम के पास नहीं गया. अब सवाल लोकतांत्रिक तौर पर राज्य का नायक चुनने का होगा तो इस बार हमें यानी उत्तर प्रदेश के लोगों को ज्यादा सावधान रहना होगा. क्योंकि, हर उत्तर प्रदेश वासी का चरित्र वही तय करेगा जो उत्तर प्रदेश का नायक होगा. लोकतांत्रिक भाषा में मुख्यमंत्री होगा.
उत्तर प्रदेश की ये वही स्थिति है जो, लालू प्रसाद यादव के एक परिवार के चरित्र से पूरे बिहार के चरित्र चित्रण वाली थी.
अरे इस लोकसभा चुनाव में भी तो पाटलिपुत्र की प्रतिष्ठित लड़ाई लालू यादव के पारिवारिक चरित्र की वजह से ही सुर्खियों में रही थी. लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, मीसा भारती, तेजस्वी, तेज प्रताप, साधु, सुभाष यादव ऐसे ही उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव, रामगोपाल, शिवगोपाल, अखिलेश, धर्मेंद्र, अक्षय, डिंपल .... इसीलिए लोकतंत्र में नायक चुनने का महत्व और बढ़ जाता है. क्योंकि, राजे-रजवाड़े, नवाबों के समय वही अच्छे या खराब होते थे. यानी नायक का ही चरित्र बनता-बिगड़ता था.
लेकिन लोकतंत्र में चुनने का अधिकार लोगों को है, तो चुन लेने के बाद भले ही नायक का चरित्र बने-बिगड़े लेकिन, वो बना-बिगड़ा चरित्र माना उन सभी चुनने वालों का माना जाएगा. देखिए ना, एक नरेंद्र मोदी के चरित्र को पूरे गुजरात का चरित्र मान लिया गया है. कमाल तो कभी-कभी ये भी हो जाता है कि लोकतंत्र में हम नायक न भी चुनें तो भी कई बार चरित्र हमारा बिना चुने नायक के आधार पर भी हो जाता है. राज ठाकरे उसका अद्भुत उदाहरण है.
इसलिए उत्तर प्रदेश के लोगों बदायूं, मुजफ्फरनगर से लेकर बुलंदशहर, बरेली तुम्हारा चरित्र बन गया है. लेकिन, इस पर खोपड़भंजन करने से कुछ नहीं होगा. लोकतंत्र में चरित्र लोकतंत्र में चुने गए नायकों के आधार पर तय होता है. इसलिए नायक चुनते वक्त अपना चरित्र मजबूत कीजिए नहीं तो ये लोकतंत्र के नायक जाति, धर्म, समाज, राज्य और देश का चरित्र ऐसे ही बिगाड़कर हमें शर्मिंदा करते रहेंगे.
(हर्षवर्धन त्रिपाठी वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने हिंदी ब्लॉगर हैं)
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