मशहूर शायर राहत इंदौरी साहब का एक शेर है...
सरहदों पर बहुत तनाव है क्या,
पता तो करो चुनाव है क्या!
चुनावों से पहले अगर कहीं कोई सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा होती है, तो इस शेर का जिक्र जरूर होता है. सोमवार को भी सोशल मीडिया पर इस शेर की खूब चर्चा हुई. वजह थी बुलंदशहर में तनाव, राजस्थान में चुनाव.
यह आशंका कोई हवा-हवाई नहीं है. दरअसल, पहले भी सांप्रदायिकता के सहारे वोटों के ध्रुवीकरण का खेल खेला जाता रहा है. ऐसे में राजस्थान में वोटिंग से ठीक तीन दिन पहले गोवध का मामला उछलना शक तो पैदा करता ही है.
बुलंदशहर में क्या हुआ?
उत्तर प्रदेश का बुलंदशहर सोमवार को सांप्रदायिकता की आग भड़काने वाली एक चिंगारी से सुलग उठा. बुलंदशहर के चिंगरावठी चौकी क्षेत्र के जंगलों में गोवंश को काटे जाने की खबर आग की तरह फैली. तीन गांवों के करीब चार सौ से भी ज्यादा लोगों ने चौकी को घेर लिया. पुलिस पर पथराव हुआ, सरकारी वाहन फूंक दिए गए. इस हिंसा में पुलिस के एक इंस्पेक्टर और एक अन्य व्यक्ति की मौत हो गई.
उत्तर प्रदेश में जब ये उपद्रव हो रहा था, उस वक्त राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में एक चुनावी जनसभा को संबोधित कर रहे थे. योगी आदित्यनाथ राजस्थान में बीजेपी के स्टार कैंपेनर हैं और उन्हें हिंदुत्व और गोरक्षा जैसे मसलों पर वोटों के ध्रुवीकरण के खेल का माहिर खिलाड़ी माना जाता है. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनाव प्रचार के दौरान दिए गए हालिया बयान इसकी मिसाल हैं.
शक की वजह?
रविवार को बुलंदशहर से ही एक तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई. इस तस्वीर के साथ दिए गए कैप्शन में लिखा था कि मुसलमान जब जाम में फंस गए तो उन्हें नमाज अता करने के लिए सड़क किनारे बने शिव मंदिर में जगह दी गई.
दरअसल, बुलंदशहर के एक गांव दरियापुर-अढौली में शनिवार से तीन दिन तक तब्लीगी इज्तमा का आयोजन किया गया था. इस इज्तमा में आस-पास के जिलों के करीब 10 लाख लोग शामिल हुए. इज्तमा में शामिल होने के लिए भारी संख्या में लोगों के आने से सड़क पर जाम की स्थिति हो गई. लोग जाम में फंस गए.
नमाज का वक्त हो रहा था, लेकिन जाम खुलने का नाम नहीं ले रहा था. न नमाज पढ़ने के लिए जगह थी, न ही वजू करने के लिए पानी. सड़क किनारे शिव मंदिर था. ऐसे में कुछ लोग शिव मंदिर में गए. मंदिर की देखरेख करने वालों ने उन्हें मंदिर में नमाज अता करने की इजाजत दे दी और वजू के लिए पानी का इंतजाम भी कर दिया.
कुल मिलाकर गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करने वाली इस तस्वीर को सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया गया. लेकिन राजनीति में वोट विकास के बजाय ध्रुवीकरण के जरिए जल्दी आता है. ऐसे में चर्चा ये भी है कि बुलंदशहर में लाखों की तादाद में जुटे मुसलमानों को लेकर और प्रेम की मिसाल पेश करने वाली तस्वीर को बिगाड़ने के लिए साजिश रची गई.
‘जनता साजिशों को कामयाब नहीं होने देगी’
चुनाव से ठीक पहले हुई बुलंदशहर हिंसा को कांग्रेस ने भी ध्रुवीकरण की राजनीति बताया है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने क्विंट हिंदी से खास बातचीत में कहा कि बुलंदशहर में हिंदू-मुस्लिम एकता के उदाहरण को देखकर बीजेपी डर गई, जिसकी वजह से सांप्रदायिकता बढ़ाने के लिए साजिश रची गई.
हालांकि उन्होंने साफ किया कि ध्रुवीकरण के जरिए वोट हासिल करने की इन कोशिशों को जनता कामयाब नहीं होने देगी. उन्होंने कहा, '‘षड्यंत्रकारी ताकतें कितनी भी कोशिशें कर लें, लेकिन हमारी गंगा-जमुनी एकता सारे षड्यंत्रों को नाकाम कर देगी.’'
‘’कल (रविवार) जिस तरीके से बुलंदशहर में हिंदू-एकता का परिचय दिया गया, उससे बीजेपी और संघ के लोग परेशान हो गए. वहां के स्थानीय लोगों ने मंदिर में नमाज अदा करा दी, इससे ये लोग परेशान हो गए. उस घटना की वजह से ही इन्हें किसी घटना को सांप्रदायिक रूप देना था, वही इन्होंने किया. जो सरकार अपने ग्रामीणों और पुलिस का बचाव नहीं कर सकती, उसे सत्ता में रहने का अधिकार नहीं है. जिस तरह से उन्मादी भीड़ ने बहादुर पुलिस वाले की हत्या की है, वो सांप्रदायिकता की ओर इशारा करता है.’’सुरेंद्र राजपूत, प्रवक्ता, उत्तर प्रदेश कांग्रेस
‘गोवंश के नाम पर आपसी ताने-बाने को बिगाड़ने की कोशिश’
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल सिंह ने भी इस घटना को सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने की कोशिश करार दिया है.
इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या कहीं साजिश तो नहीं?
इस मामले में एक और कनेक्शन सामने आया. दरअसल, इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह नोएडा के दादरी में हुए अखलाक हत्याकांड के भी जांच अधिकारी थे. सुबोध कुमार ने 28 सितंबर, 2015 से 9 नवंबर, 2015 तक इस केस की पड़ताल की थी. हालांकि इस केस की चार्जशीट मार्च, 2016 में दूसरे जांच अधिकारी ने दाखिल की थी.
चुनावों के दौरान होने वाले वोटों के ध्रुवीकरण के लिए सांप्रदायिकता का सहारा लिए जाने का खेल नया नहीं है. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम पांच राज्यों में चुनाव होना है. इसके बाद अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं.
राम मंदिर मुद्दे को लेकर लोग पहले सजग हो चुके हैं. गाहे-बगाहे लोग मिसाल देते मिल जाते हैं कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ने वाली. ऐसे में अब ये फॉर्मूला लगभग फेल हो चुका है.
चुनावों को देखते हुए देश के विभिन्न हिस्सों में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं बढ़ने की आशंका पहले से ही जताई जा रही थी. ऐसे में ये सवाल उठना लाजमी है कि बुलंदशहर में बुना गया ये 'खेल' कहीं किसी साजिश का हिस्सा तो नहीं?
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