तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल के बीच अकसर हिंसक विवादों का विषय बनने वाले कावेरी नदी के पानी पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. इस फैसले से कर्नाटक को फायदा पहुंचेगा वहीं तमिलनाडु को मिलने वाले पानी को घटाया गया है. फैसले में तमिलनाडु का हिस्सा 192 से 177.25 टीएमसी फीट कर दिया गया. कर्नाटक को अब 14.75 टीएमसी फिट ज्यादा दिया जाएगा.
ऐसे में जानते हैं इस पूरे विवाद की शुरुआत से लेकर अबतक की 10 बड़ी बातें.
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- कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच चल रहे इस विवाद का बैकग्राउंड करीब 125 साल पुराना है. कावेरी नदी को लेकर साल 1892 और 1924 में मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर रियासत के बीच समझौता हुआ था.
- मद्रास प्रेसीडेंसी- मैसूर रियासत के बीच हुआ ये समझौता 1974 में खत्म हो गया. साथ ही नए सिरे से विवाद की शुरुआत हो गई. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दखल देते हुए मई 1990 में कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल ( Cauvery Water Disputes Tribunal) गठित करने के निर्देश दिए. फैसले के कुछ ही दिनों बाद केंद्र ने CWDT का गठन कर दिया.
- करीब 16 साल तक चले इस मामले में साल 2007 में CWDT ने अपना फैसला सुनाया. ट्रिब्यूनल ने मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसूर रियासत के बीच 1892 और 1924 के दो समझौतों को मान्य करार दिया.
- ट्रिब्यूनल का ये फैसला कर्नाटक को पसंद नहीं आया और वहां भारी विरोध प्रदर्शन हुए. ध्यान देने की बात ये है कि इस मामले में कुल 3 राज्य और 1 केंद्रशासित प्रदेश का दखल है, फैसले में तमिलनाडु में 192 टीएमसी फीट कर्नाटक को 270 टीएमसी फीट, केरल को 30 टीएमसी, पुडुचेरी को 6 टीएमसी पानी आवंटित किया गया था. तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और पुड्डुचेरी.
- ट्रिब्यूनल के फैसले पर तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल तीनों को ऐसा लग रहा था कि उनके हिस्से कम पानी आया है. बता दें कि ये जल विवाद हिंसक विवादों की वजह बनी है, कई बार कर्नाटक और तमिलनाडु में एक दूसरे राज्यों के नागरिकों के लिए नफरत भरी हिंसा की खबरें भी आईं. हजारों लोगों का पलायन भी इस विवाद की वजह से हुआ. ऐसे में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.
- सुप्रीम कोर्ट ने 5 सितंबर 2016 को कर्नाटक सरकार को तमिलनाडु के लिए 15,000 क्यूसिक पानी दिए जाने का आदेश दिया. कोर्ट के इस फैसले का कर्नाटक में हिंसक विरोध हुआ. राज्य के कई इलाकों में तोड़फोड़ और आगजनी जैसी घटनाएं हुईं. इस हिंसा में करीब 25 हजार करोड़ रुपये के आर्थिक नुकसान होने का अनुमान लगाया गया.
- तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे राज्यों की एक ही समस्या है, खराब मॉनसून के वक्त सिंचाई के लिए किसानों को ज्यादा पानी की जरूरत. कर्नाटक का कहना है उसके पास कावेरी नदी बेसिन में पर्याप्त पानी नहीं होता कि वो तमिलनाडु को हिस्सा दे. साथ ही कावेरी नदी का उद्गम स्थल भी कर्नाटक के कुर्ग में है, ऐसे में कर्नाटक मानता है कि उसे ज्यादा पानी मिलना चाहिए.
- कावेरी नदी करीब 700 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए तमिलनाडु के रास्ते बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है. तमिलनाडु का कहना है कि उसे कर्नाटक के मुकाबले कावेरी के पानी की ज्यादा जरूरत है.
- अब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व में जो फैसला सुनाया गया है उसमें कहा गया कि कर्नाटक को दिए गए अतिरिक्त 14.75 टीएमसी फीट पानी का इस्तेमाल राज्य सिंचाई के मकसद और औद्योगिक कार्यों में कर सकता है.
- फैसले में केरल और पुडुचेरी के लिए आवंटित पानी में कोई बदलाव नहीं किया गया है.
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