सीबीआई बोफोर्स केस की जांच को दोबारा खुलवाना चाहती है. हिंदुजा ब्रदर्स और बोफोर्स कंपनी को 2005 में दिल्ली हाइकोर्ट ने इस मामले में बरी कर दिया था.
द हिंदू की खबर के मुताबिक, सीबीआई ने डीओपीटी को लिखे लेटर में खारिज की गई FIR के खिलाफ एसएलपी दायर करने की परमीशन मांगी है. एसएलपी लोवर कोर्ट के दिए गए फैसले के खिलाफ हायर कोर्ट में दायर की जाती है.
रिपोर्ट के मुताबिक, सीबीआई 2005 में भी एसएलपी दायर करना चाहती थी. लेकिन उस वक्त सरकार से परमीशन नहीं मिली.
प्राइवेट डिटेक्टिव ने दिए कुछ नए तथ्य
बुधवार को सीबीआई ने कहा कि वो अमेरिका के प्राइवेट डिटेक्टिव माइकल हर्शमैन के दिए गए तथ्यों की जांच करना चाहती है. हर्शमैन ने दावा किया है कि राजीव गांधी सरकार ने उनकी जांच को दबा दिया था.
पिछले हफ्ते हर्शमैन ने कहा था कि बोफोर्स स्कैंडल की रिश्वत का पैसा एक स्विस बैंक अकाउंट में जमा किया गया था.
क्या है मामला
दिल्ली हाइकोर्ट के जज आर एस सोढ़ी ने 31 मई 2005 को हिंदुजा ब्रदर्स (गोपीचंद, श्रीचंद, और प्रकाशचंद) और बोफोर्स कंपनी के खिलाफ सभी मामले खारिज कर दिए थे.
इस फैसले के पहले दिल्ली हाइकोर्ट के ही एक दूसरे जज, जस्टिस जे डी कपूर ने 4 फरवरी 2004 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भी मामले में बरी कर दिया था. राजीव गांधी पर IPC की धारा 465 के तहत धोखाधड़ी का केस दर्ज किया गया था.
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