दिक्कत यही है. जब देश हकीकत जानना चाहता है तो हेडलाइन दी जाती है. फिल्डिंग सजा कर खड़ा किए गए लोग गेंद लपक भी लेते हैं. प्राइम टाइम की पिच पर खड़े हो कर दर्शकों को थ्रो करने लगते हैं. लेकिन थोड़ी देर/दिन में गेंद गुब्बारा बन जाती है. हवा निकल जाती है.
कोरोना से त्राहिमाम करता देश जानना चाहता है कि वैक्सीन कब मिलेगी? नीति आयोग की स्वास्थ्य समिति के सदस्य और वैक्सीन प्लान के चीफ वीके पॉल ने एक बॉल फेंकी है. दिसंबर तक वैक्सीन की 216 करोड़ डोज मिल सकती है. डर लगता है कहीं ये ‘नो बॉल’ तो नहीं?
दिसंबर तक सबको वैक्सीन, अब रुलाकर मानोगे?
पॉल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि अगस्त से दिसंबर 2021 तक हमें 216 करोड़ डोज वैक्सीन मिलने की उम्मीद है. 18 साल से ऊपर की हमारी आबादी करीब 95 करोड़ है. तो हमें दो डोज और बर्बादी को मिलाकर करीब 200 करोड़ वैक्सीन चाहिए ताकि पूरी आबादी वैक्सीनेट हो सके. तो पॉल साहब कह ये रहे हैं कि दरअसल दिसंबर तक सबको वैक्सीन मुमकिन है. लेकिन उनके हिसाब में दिक्कत ये है कि सबकुछ उम्मीद पर टिका है. उम्मीद अच्छी बात है लेकिन उम्मीद और हकीकत में जिंदगी और मौत का फर्क हो सकता है.
कोविशील्ड के बारे में कहा गया कि अगस्त से दिसंबर के बीच सीरम से 75 करोड़ डोज मिलने की उम्मीद है. हो सकता है. लेकिन सीरम की तरफ से पब्लिक स्पेस में यही जानकारी है कि जुलाई तक वो दस करोड़ डोज प्रति माह की क्षमता तैयार कर सकते हैं. अगस्त से दिसंबर मतलब पांच महीने, यानी 50 करोड़. सीरम को बाहर भी भेजना है. दबाव बढ़ता जा रहा है.
कोवैक्सीन से 55 करोड़ डोज की उम्मीद है. वाकई सिर्फ उम्मीद ही है. अब तक रिकॉर्ड बहुत खराब रहा है. जो 35 करोड़ डोज खरीदे गए हैं उसमें से कोवैक्सीन के महज 8 करोड़ हैं. हाल ही में भारत बायोटेक ने सरकार को बताया है कि वो जुलाई के अंत तक सवा तीन करोड़ और अगस्त तक करीब 8 करोड़ डोज बनाने में सक्षम होंगे. इस डेटा को मान भी लें तो पांच महीने के हिसाब से 40 करोड़ डोज हुए. पॉल ने बताया कि तीन और PSU भी कोवैक्सीन बनाएंगे. हो जाए तो अच्छा है.
Bio E सब यूनिट वैक्सीन से पॉल साहब को 30 करोड़ डोज मिलने की उम्मीद है. समस्या ये है कि अभी ये फेज 3 ट्रायल पर है. वीके पॉल ने खुद बताया कि वो आशावादी हैं लेकिन रिस्क भी है.
जाइडस कैडिला डीएनए वैक्सीन - 5 करोड़ डोज मिलने की उम्मीद है. लेकिन ये भी फेज थ्री ट्रायल में है.
सीरम नोवावैक्स यहां कोवावैक्स नाम से बननी है. 20 करोड़ डोज बनने की उम्मीद है.
भारत बायोटेक की नेसल वैक्सीन से भी 10 करोड़ डोज मिलने की उम्मीद है. मगर ये तो अभी ट्रायल के फेज 1 और 2 में ही है.
इसी तरह जीनोवा mRNA वैक्सीन के 6 करोड़ डोज की उम्मीद है लेकिन ये भी ट्रायल मोड में ही है.
अब आते हैं स्पुतनिक वैक्सीन पर. पॉल ने बताया कि अगले हफ्ते से ये मार्केट में मिलने लगेगी. पहली खेप में 1.5 लाख आई थी. सही सुना आपने मात्र डेढ़ लाख. दूसरी खेप भी लिमिटेड है. 14 मई को आनी है. बताया गया कि जुलाई से देश में इसका उत्पादन शुरू हो जाएगा. उम्मीद जताई गई कि अगस्त से दिसंबर के बीच 15.6 करोड़ डोज बनेंगे. लेकिन पॉल ने कॉन्फ्रेंस में इसकी डिटेलिंग नहीं बताई.
कौन बनाएगा? क्या करार हो गया है. क्या बुकिंग हो गई है? स्पुतनिक वाले यहां बनाएंगे तो हमें देंगे या बाहर भी भेजेंगे. क्योंकि उनके 60 देशों में करार हमसे पहले से हैं. ये सारे सवाल इसलिए हैं क्योंकि इससे पहले यही खबर आई थी कि स्पुतनिक ने पांच भारतीय कंपनियों ने 8.5 करोड़ डोज उत्पादन का करार किया है. सफाई नहीं है कि यहां बनी सारी वैक्सीन सारी हमें ही मिलेगी.
लेकिन ठीक है, उम्मीद है. वीके पॉल की 216 करोड़ डोज की उम्मीद में 139 करोड़ भारतीयों (जिनकी संख्या घट रही है कोरोना के कारण) की उम्मीद और दुआ भी जोड़ देते हैं, ताकि पूरी हो ही जाए.
विज्ञान- गणित और उम्मीद अलग विषय
विज्ञान और सरल गणित के सवालों को सही जवाब के लिए दुआओं की जरूरत इसलिए पड़ती है क्योंकि विज्ञान के मंच से राजनीति शास्त्र के व्याख्यान आने लगते हैं. नीति आयोग की स्वास्थ्य समिति के सदस्य और वैक्सीन अभियान के कमांडर से 'कौन बनेगा वैक्सीनपति' में रोज सुबह फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट खेलता देश, वैक्सीन सेंटरों पर कतारों में टंगा देश, अस्पतालों में एड़ियां रगड़ता देश और श्मशानों में बुझकर गम होता देश जानना चाहता है कि वैक्सीन में देर क्यों हो रही है, कब आएगी, जल्दी लाने के लिए क्या कर रहे हो, लेकिन जवाब में वो उम्मीद का टोकरा पकड़ाते हैं. सियासी गीत दोहराते हैं - थिंक पॉजिटिव. आग्रह करते हैं कि बुरा ही न देखिए, अच्छे पर गर्व कीजिए.
गर्व करने के लिए वो गिनाते हैं- देश में 18 करोड़ डोज वैक्सीन लगी है. चीन और अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा यही लगी है. गर्व कीजिए. पूरी दुनिया में लगी कुल वैक्सीन का 13% हमारे देश में लगी है. गर्व कीजिए. 17 करोड़ डोज का मार्क किसी भी देश से जल्दी हमने छुआ है. गर्व कीजिए. 45 साल से ऊपर की एक तिहाई आबादी को सिंगल या डबल डोज वैक्सीन दे चुके हैं. गर्व कीजिए.
आपकी आलोचना में रुचि नहीं, वैक्सीन में है
बहुत गर्व है. शाबाश. भगवान के लिए यकीन कीजिए-सबकुछ आपके और सत्ताधीशों के बारे में नहीं है. यहां आपकी आलोचना नहीं कर रहे. मौत सामने खड़ी है. वैक्सीन मांग रहे हैं. उम्मीद का सिरिंज मत घोंपिए. एक ही आंकड़े को तरह-तरह के पैकेट में पैक करके मत परोसिए. इससे तथ्य नहीं बदलेगा.
कोरोना सुपरफास्ट है और वैक्सीन सप्लाई बेहद स्लो. जुलाई तक के लिए आपके ही शब्दों में आपने 51 करोड़ डोज वैक्सीन का इंतजाम किया है. बुक किया है, मिला नहीं है. मिल गया तो 25 करोड़ लोग को वैक्सीन दे पाएंगे. यानी जुलाई तक आप कुल आबादी का महज 18% वैक्सीनेट करेंगे. सिंगल डोज भी जोड़िएगा तो 36% आबादी. विशेषज्ञ कहते हैं कि कोरोना को रोकने के लिए कम से कम 60-70% आबादी को टीका लगना जरूरी है. सरकार को नहीं देश को बचाइए.
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