‘’नौकरियों में छंटनी होना तय है. हर स्तर पर और हर सेक्टर में ऐसा होने वाला है. मुझे नहीं लगता कि कंपनियों के पास कोई और विकल्प मौजूद है. हमें नहीं पता ये कैसे और कितने बुरे तरीके से होने वाला है, लेकिन होगा जरूर. इसके अलावा अभी कोई बड़ी भर्ती होने की संभावना भी नहीं दिखती.’’प्रबीर झा, मानव संसाधन रणनीतिकार
कोरोना वायरस संकट से जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बिगड़ती जा रही है, भारत के अर्थशास्त्री - असल में पूरी दुनिया के अर्थशास्त्री – आर्थिक मंदी की चेतावनी दे रहे हैं, जिसकी वजह से हर सेक्टर में बड़ी छंटनी हो सकती है और बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ सकती है.
हमने प्रबीर झा से बात की, जो कि मानव संसाधन के क्षेत्र में भारत के जाने-माने नाम हैं, और उनसे समझने की कोशिश की कि इस संकट के बढ़ने पर कर्मचारियों, मालिकों और छंटनी झेलने वाले लोगों को क्या कदम उठाना चाहिए.
पूर्व प्रशासनिक अधिकारी प्रबीर झा टाटा मोटर्स, रिलायंस और सिप्ला जैसी कंपनियों में HR विभाग के प्रमुख रह चुके हैं, जिसके बाद उन्होंने प्रबीर झा पीपुल एडवायजरी नाम की अपनी कंसल्टेंसी शुरू की है.
उनसे बातचीत के अंश यहां मौजूद हैं.
कंपनी मालिकों को क्या करना चाहिए?
क्या आपको लगता है कि हर सेक्टर में छंटनी होने वाली है? और ऐसे किसी फैसले को अंजाम देने से पहले वो कौन सी बातें हैं जिनका कंपनी के मालिकों को ध्यान रखना चाहिए?
प्रबीर झा: किसी ना किसी तरह की छंटनी तो होगी, ये पक्का है. ऐसा हर सेक्टर में होगा और हर स्तर पर होगा. कंपनियां हर हाल में कर्मचारियों की तादाद कम करेंगी, उनके पास कोई और विकल्प नहीं है.
मिसाल के तौर पर छोटी कंपनियों की बात करें, जहां 5 से 100 लोग काम करते हैं. अगर ये कंपनियां मंदी को नहीं झेल पाएंगी तो इनके पास क्या विकल्प रह जाएगा? लिहाजा इन्हें छंटनी करनी ही होगी.
इनमें से कई कंपनियां पूरी तरह तबाह हो जाएंगी. मुझे लगता है MSMEs कंपनियों पर असर सबसे बुरा होगा.
बड़ी कंपनियों में भी कुछ ना कुछ छंटनी जरूर होगी. मुझे उम्मीद है ऐसा करने से पहले ये कंपनियां समझदारी और न्यायसंगत तरीके से इन बातों पर जरूर गौर कर लें:
- कर्मचारियों की सैलरी की समीक्षा
- उन्हें मिलने वाली सुविधाओं की समीक्षा
- कंपनी से मिलने वाले बोनस की समीक्षा
- वेतन वृद्धि की समीक्षा
क्योंकि मैं कंपनियों को भी सलाह देता हूं और पिछले दिनों कई मालिकों से मेरी बातचीत हुई, उनमें से कुछ ने मुझे बताया, ‘आपको पता है, मेरी सीनियर टीम कह रही है कि उसे इस बार कम-से-कम 10-15% बढ़ोतरी जरूर मिलनी चाहिए.’ मेरा मतलब है, आखिर वो किस दुनिया में जी रहे हैं?
अभी अगर आपके पास नौकरी है, तो खुद को भाग्यशाली समझिए. लोगों को यह समझना चाहिए कि उनके पास नौकरी है तो साथ में मेडिकल कवर, बीमा और दूसरे फायदे भी मिल रहे हैं. वो दूसरों से बेहतर हालात में हैं. अभी जो हो रहा है वो एक वैश्विक समस्या है, इसलिए हमें अभी सीट बेल्ट को बांधकर रखना होगा.
मुझे लगता है कि कंपनियों के मालिक ऐसा करने की कोशिश करेंगे. जहां तक सीनियर लेवल की बात है, तो सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें ही होने वाला है.
छंटनी से पहले, मुझे लगता है कई दूसरे आर्थिक कदम उठाए जाएंगे – जो कि हर उद्योग और अलग-अलग कंपनियों के लिए अलग-अलग हो सकता है, लेकिन इतना तो साफ है कि बोनस या तो नहीं मिलेंगे या पार्ट बोनस मिलेंगे, सैलरी या तो नहीं बढ़ेगी या बहुत कम बढ़ेगी, और हो सकता है कि सैलरी में कटौती भी हो. बेसिक सैलरी में कोई बदलाव ना भी हो तो दूसरे भत्तों पर असर पड़ेगा.
हालांकि कुछ कंपनियां यह दावा कर रही हैं कि वो अगले तीन या छह महीने या फिर एक साल तक किसी तरह की छंटनी नहीं करेंगी, लेकिन ऐसी कंपनियों में भी इसके बाद छंटनी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
इस संकट के बाद, उम्मीद है कंपनियों के मालिक और ज्यादा सहानुभूति और संवेदना से काम लें. आप कम-से-कम अपने कर्मचारियों से जुड़ें, उनकी सुनें और उन्हें समझने की कोशिश करें. उन्हें खुलकर अपनी बात कहने दें.
आम तौर पर कंपनियों के लीडर्स कहते हैं, ‘ओह, यह बहुत मुश्किल कर्मचारी है, यह हर बात पर असंतोष जताता है.’ लेकिन उन्हें यह बात समझनी होगी कि हर कर्मचारी की मनोभावना अलग होती है और वो दफ्तर से अलग-अलग तरह की चिंताएं लेकर घर जाते हैं.
कंपनियों को अपनी नेतृत्व क्षमता और कर्मचारियों को प्रेरित करने के तरीकों को और दुरुस्त करना होगा. इसकी शुरुआत कर्मचारियों को सुनने और उनसे जुड़ने से होती है, क्योंकि अपने पद और जिम्मेदारियों के अलावा वो इंसान भी हैं. ऐसे वक्त में जब आप उन्हें प्रमोशन या कोई बढ़ोतरी नहीं दे रहे हैं, उनसे और ज्यादा जुड़ना बेहद जरूरी है.
इस संकट से उबरने के लिए कंपनियों को मेरी सलाह:
- ज्यादा समझदारी और सहानुभूति से काम लें
- नौकरी से निकालने से बेहतर है सैलरी/बोनस/सुविधाओं में कटौती करें
- निकट भविष्य की कोराबारी चुनौतियों को कंपनी के ब्रैंड और संस्कृति से संतुलित करें
- याद रखें, जब अच्छे दिन लौटेंगे तब आपकी परख आपके आज के व्यवहार से होगी
कर्मचारियों को क्या करना चाहिए?
अब जरा कर्मचारियों के हिसाब से चीजों को समझते हैं. मौजूदा वक्त में, जब कोरोना संकट से आर्थिक माहौल बिगड़ चुका है, कर्मचारियों को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
प्रबीर झा: बतौर कर्मचारी आप गैरजरूरी उम्मीदें ना लगाएं. हकीकत को समझने की कोशिश करें. अब वो वक्त नहीं रह गया कि आप दो अंकों वाली वेतन वृद्धि की उम्मीद रखें. यह समझने की कोशिश करें कि आपकी कंपनी और आपका प्रबंधन भी मुश्किलों से गुजर रहा है.
मुश्किल घड़ी में कर्मचारियों को मेरी सलाह:
- वक्त की असलियत को पहचानिए और इन्क्रीमेंट या बोनस की उम्मीदें मत बांधें.
- इस बात के आभारी रहें कि आपकी नौकरी सुरक्षित है.
- आप जो काम करते हैं उसे और असरदायक बनाएं ताकि आप कभी छंटनी की लिस्ट में ना आएं.
- खुद को और तैयार करें. नया हुनर सीखें. ताकि आपको और बड़ी जिम्मेदारियां दी जा सके.
छंटनी झेलने वाले कर्मचारी क्या करें?
ऊपर जिक्र की गई बातों के बावजूद, हर सेक्टर में छंटनी होना लगभग लाजमी है, जैसा कि आपने बताया भी है. आप उन कर्मचारियों को क्या सलाह देंगे जिनकी नौकरी चली गई है? अब उन्हें क्या करना चाहिए?
प्रबीर झा: सबसे पहले आपको खुद को मानसिक और भावनात्मक तौर पर तैयार करना होगा.
- खुद को लंबे समय की मुश्किलों के लिए तैयार रखिए: अपने आपको यह भरोसा देकर मूर्ख मत बनाइए कि कल सुबह आपको कोई नौकरी मिल जाएगी. नौकरी दिलाने वाली कंपनियों और कंसल्टेंट्स के पास लोगों के बायोडाटा की भरमार लगने वाली है.
- मनोवैज्ञानिक तौर पर अपना ख्याल रखें और अपने खर्च पर ध्यान दें: अपने आपको समझाएं कि इस वक्त अपनी मनोवैज्ञानिक सुरक्षा का ध्यान रखना निहायत जरूरी है और खुद को आर्थिक मुश्किलों से निपटने के लिए तैयार रखें. नवयुवकों के लिए यह परेशानी ज्यादा बड़ी है क्योंकि वो EMI और दूसरे तरह के कर्ज से दबे होते हैं. ये उनके लिए बड़ा झटका साबित होने वाला है. इसलिए अपने खर्च पर लगाम लगाएं.
- नए हुनर सीखें: आपके लिए यह जरूरी है कि जो वक्त मिला है उसमें आप नए तरह के वैकल्पिक हुनर सीखें. अपने समय का नई योग्यता हासिल करने में भी इस्तेमाल करें.
- स्वरोजगार और पार्ट-टाइम रोजगार के मौके तलाश करें: नई चीजें आजमाएं और ढूंढें. कई लोग अब तक हासिल की गई शिक्षा के गुलाम बनकर रह जाते हैं. लेकिन जरूरी यह है कि आप इस दौरान अपने आपको व्यस्त रखें, अगर कोई पार्ट-टाइम नौकरी मिलती है या स्वरोजगार का कोई अवसर दिखता हो तो उसे जरूर आजमाएं.
- बाजार में अपने लिए अवसर ढूंढते रहें: आखिर में सलाह यह है कि आप बाजार को जरूर टटोलते रहें, इसके बावजूद कि कंपनियां अभी आपके स्वागत के लिए बाहें फैलाकर खड़ी नहीं हैं.
सरकार क्या कर सकती है?
कर्मचारियों और कंपनियों की जो चिंताएं हैं उनसे निपटने के लिए सरकार क्या कदम उठा सकती है?
प्रबीर झा: सरकार व्यापक तौर पर असंगठित क्षेत्र से जुड़े लोगों की चिंताओं का निवारण कर सकती है, क्योंकि यह तबका राजनीतिक और सामाजिक तौर पर बहुत अहमियत रखता है.
असंगठित क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं से निपटना सबसे बड़ी चुनौती है. कपड़ा उद्योग से लेकर निर्माण क्षेत्र तक, रियल एस्टेट से लेकर रीटेल तक सभी सेक्टर में ज्यादातर कर्मचारी ऐसे होते हैं जिनकी भर्ती थर्ड-पार्टी के जरिए होती है. यह तबका बहुत बड़ा है. और संकट की इस घड़ी में सबसे पहला झटका इनको ही लगने वाला है.
मंदी में इनके पास किसी दूसरे रोजगार का विकल्प भी नहीं होगा क्योंकि इनके हुनर सीमित होते हैं. हम सभी के लिए इस बात को समझना बेहद जरूरी है. क्योंकि इस संकट का उनकी माली हालत, रोजी रोटी और परिवार पर बड़ा असर होने वाला है. इसमें प्रवासी मजदूर भी शामिल हैं, लेकिन यह सिर्फ प्रवासी मजदूरों तक सीमित नहीं है.
सरकार की प्राथमिकता होगी कि मनरेगा जैसी योजनाओं के जरिए असंगठित क्षेत्र के लोगों की मुश्किलें दूर की जाएं.
सरकार उद्योग क्षेत्र की क्षतिपूर्ति के लिए नई योजनाओं की भी घोषणा कर सकती है, प्रोत्साहन पैकेज के जरिए उन्हें दोबारा पटरी पर लाने में मदद कर सकती है. वहीं संगठित क्षेत्र के लोगों के लिए, RBI के साथ मिलकर सरकार ऋण स्थगन और कम ब्याज दर जैसी आर्थिक राहत के ऐलान कर सकती है. कर राहत और कर्ज चुकाने या कर्ज आसान करने से जुड़े फैसलों के अलावा कर्मचारियों के लिए सीधे तौर पर किसी और राहत की उम्मीद मुझे नहीं है.
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