कोरोना वायरस के चलते किया गया लॉकडाउन भारत के गरीबों और मजदूरों पर बहुत भारी पड़ेगा. NGO जन साहस के एक सर्वे के मुताबिक, करीब 90% मजदूरों ने पिछले तीन हफ्तों में अपना कमाई का जरिया खो दिया है. भारत सरकार ने कंस्ट्रक्शन मजदूर लोगों के लिए राहत पैकेज का ऐलान किया है, लेकिन इनमें से ज्यादातर मजदूरों तक इस राहत का पहुंचना मुश्किल है.
सर्वे देशभर के 3196 कंस्ट्रक्शन मजदूरों के बीच कराया गया था. सर्वे कहता है कि 94% कामगारों के पास बिल्डिंग एंड कंस्ट्रक्शन वर्कर्स आइडेंटिटी कार्ड नहीं है, जो सरकार की तरफ से दी गई 32000 करोड़ की राहत पाने के लिए जरूरी है.
सर्वे का कहना है कि राहत पाने से वंचित रहने वाले मजदूरों की संख्या 5 करोड़ से ज्यादा हो सकती है.
सर्वे में शामिल हुए 17 प्रतिशत मजदूरों के पास बैंक अकाउंट नहीं है. इससे सरकार की तरफ से दी गई राहत का उन तक पहुंचना मुश्किल हो जाएगा.
जन साहस का सुझाव है कि इन लोगों तक ‘आधार से पहचान करके ग्राम पंचायत और पोस्टल ऑफिस के जरिए इनके दरवाजे तक कैश पेमेंट’ किया जाए.
इन मजदूरों को राहत मिलने में एक और दिक्कत जानकारी की कमी की है. सर्वे के मुताबिक, 62 फीसदी मजदूरों को पता ही नहीं था कि आपातकालीन सरकारी राहत कैसे ली जाए, वहीं 37 प्रतिशत को नहीं पता था कि मौजूदा सरकारी स्कीमों की मदद कैसे ली जा सकती है.
जिंदा रहने का संकट
कोई इनकम न होने से कई मजदूरों के पास एक दिन काटने के लिए भी संसाधन नहीं है. 21 दिन का लॉकडाउन वो कैसे काट पाएंगे, ये उन्हें भी नहीं पता.
सर्वे के मुताबिक, 42 फीसदी मजदूरों ने कहा कि उनके पास एक दिन का भी राशन बाकी नहीं है. लेकिन पैसे की कमी ही सिर्फ दिक्कत नहीं है.
सर्वे बताता है कि 33% मजदूरों के पास राशन खरीदने के लिए पैसा नहीं है, तो वहीं 14% के पास राशन कार्ड नहीं है. 12 फीसदी लोग ऐसे हैं जो अपनी मौजूदा जगह राशन ले नहीं सकते क्योंकि वो प्रवासी हैं.
एक और बड़ी दिक्कत कर्जे की है. सर्वे में पता चला कि 31% कामगारों पर कर्जा है और बिना रोजगार के इसका भुगतान करने में उन्हें परेशानी होगी.
कोरोना वायरस महामारी का मेडिकल प्रभाव एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन इसके चलते हुआ लॉकडाउन का आर्थिक प्रभाव उससे भी ज्यादा लग रहा है. कई जगहों से भूख के चलते मौत और प्रवासी मजदूरों के पैदल घर जाते हुए दम तोड़ने की खबरें आ चुकी हैं.
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