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कोरोना लॉकडाउन से कैसे बाहर निकले देश? 5 विशेषज्ञों की राय

महामारी से बचाव के साथ-साथ सामान्य स्थिति की तरफ कैसे लौटा जाए?

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भारत में कोरोना वायरस से निपटने के लिए लागू लॉकडाउन में सरकार ने हाल ही में कुछ ढील दी हैं. मगर 3 मई को जब लॉकडाउन का मौजूदा फेज खत्म होगा, उसके बाद की स्थिति क्या होगी, इसे लेकर अभी तक सरकार का कोई प्लान सामने नहीं आया है.

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आर्थिक दृष्टि से लंबे समय तक लॉकडाउन बरकरार रखना ठीक नहीं है, ऐसे में संक्रमण से बचाव के साथ-साथ सामान्य स्थिति की तरफ कैसे लौटा जाए? अंग्रेजी अखबार द इकनॉमिक टाइम्स के एक आर्टिकल में नीरज भार्गव, जो फर्नांडिस और शंकर कृष्णन ने अपने सुझावों के जरिए इस सवाल का जवाब दिया है. चलिए अलग-अलग क्षेत्रों के आधार पर इन सुझावों पर नजर दौड़ाते हैं:

ट्रांसपोर्ट

  • रेलवे स्टेशनों और बस टर्मिनल्स पर कम भीड़ रखने और सोशल डिस्टेंसिंग को बढ़ावा देने पर ध्यान दिया जाए. पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए नए सामाजिक नियम परिभाषित किए जाएं
  • ट्रांसपोर्टेशन में यात्रियों की संख्या को सीमित किया जाए (जैसे बसों या ट्रेन में कोई खड़ा न हो/एक कार में 2 लोग तक ही हों)
  • सड़कों पर वाहनों की संख्या सीमित करने के लिए दिल्ली में कई बार प्रदूषण से लड़ने को लागू की गई ऑड-ईवन स्कीम जैसी कोई योजना लागू की जा सकती है
  • हर दिन में एक परिवार से बाहर निकलने वाले लोगों की संख्या को सीमित रखा जाए/सार्वजनिक जगहों पर लोगों के जाने का समय सीमित रखा जाए
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इंडस्ट्री/ऑफिस

मास्क पहनने को अनिवार्य बनाया जाए. नए नियमों में हाथ न मिलाना, गले न लगना और एक दूसरे से सुरक्षित दूरी पर रहना आदि शामिल किया जाए. ऑफिस, फैक्ट्री और वेयरहाउसेज में उन चीजों को सैनिटाइज किए जाने के साफ नियम हों, जिन पर वायरस रह सकता है. यह भी ध्यान रखा जाए कि किसी कर्मचारी में कोरोना वायरस के लक्षण तो नहीं दिख रहे.

हालांकि कई इंडस्ट्री में ऊपर दिए गए सभी नियमों का पालन करके काम आगे नहीं बढ़ाया जा सकता. जैसे कि एक्टर्स और मॉडल हर वक्त काम पर मास्क नहीं पहन सकते.

कंस्ट्रक्शन जैसे कामों में वर्कर्स को पास रहकर और एक ही चीज को छूकर काम करना पड़ सकता है. ऐसी इंडस्ट्रीज के लिए उनके काम को ध्यान में रखकर अलग से नियम बनाए जाएं.

बहुत से दिहाड़ी कामगारों से लेकर छोटे कारोबारों तक को वित्तीय सहायता की भारी जरूरत है. इनके लिए एक बार में कुछ वित्तीय राशि दिए जाने से लेकर टैक्स में राहत देने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं. रेस्टोरेंट्स, मूवी थिएटर्स, होटल्स, एयरलाइन्स, मॉल्स आदि को भी काम जारी रखने के लिए विशेष वित्तीय मदद की जरूरत पड़ सकती है. नौकरियां देने के लिए लिहाज से ये इंडस्ट्री काफी अहम हैं, लेकिन इनके लिए कम रेवेन्यू के साथ नौकरियां बरकरार रख पाना मुश्किल होगा.

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हेल्थ सेक्टर

कोरोना वायरस संकट पूरी तरह टलने तक हेल्थ सेक्टर के लिए भविष्य में भी चुनौतियां बनी रहेंगी. ऐसे में इन बातों का ध्यान रखा जाए

  • केंद्र और राज्य सरकारें पर्याप्त हॉस्पिटल बेड, वेंटिलेटर, हेल्थकेयर प्रफेशनल्स के लिए पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट की उपलब्धता को सुनिश्चित करना जारी रखें
  • लगातार पर्याप्त संख्या में टेस्टिंग की तरफ बढ़ा जाए. जरूरत के हिसाब से टेस्टिंग का तरीका तय किया जाए
  • नए मामलों का पता लगाने के लिए साफ नीतियां हों
  • लोगों की मेंटल हेल्थ पर भी ध्यान दिया जाए
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एजुकेशन

लॉकडाउन के वक्त ऑनलाइन एजुकेशन को बढ़ावा मिला है. हालांकि देश के बहुत से छात्रों, खासकर गरीबों के पास संसाधनों का अभाव, बहुत से शिक्षकों और छात्रों में टेक्निकल समझ की कमी और कई जगह कनेक्टिविटी की समस्या अभी भी ऑनलाइन एजुकेशन के आड़े आ रही है. ऐसे में सरकार को इन बातों पर ध्यान देना होगा. दिल्ली के पूसा रोड स्थित स्प्रिंगडेल्स स्कूल की प्रिंसिपल अमीता वत्तल ने एजुकेशन सेक्टर के लिए द इंडियन एक्सप्रेस के एक आर्टिकल में ये सुझाव दिए हैं

  • स्कूलों के लिए महामारी के बाद का एक प्लान तैयार होना चाहिए
  • स्कूल खुलने के बाद क्लासरूम्स को लगातार सैनिटाइज किया जाना चाहिए
  • स्कूलों के लिए मेडिकल स्टाफ और काउंसलर्स की संख्या को बढ़ाया जाना चाहिए
  • एक नया स्कूल कैलेंडर प्लान किया जाना चाहिए, जिसमें भीड़ जुटने की संभावना वाले इवेंट्स को शामिल करने से बचा जाए
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लॉकडाउन के बाद ‘परमिट राज’ की तरफ न बढ़े इकनॉमी

वर्ल्ड बैंक में चीफ इकनॉमिस्ट रहे कौशिक बासु ने द इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि जब लॉकडाउन का यह फेज 3 मई को खत्म हो जाए, तो कारोबारों को खोलने की शुरुआत करनी होगी, प्राइवेट सेक्टरों, खासकर अनौपचारिक एंटरप्राइजेज और छोटी फर्म्स को काम करने की अनुमति देनी होगी. बासु के मुताबिक, हमें व्यवहार के नियमों (सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क लगाना, हाथ धोना आदि) को "भागीदारी" द्वारा जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करना होगा न कि नौकरशाही की "अनुमति" द्वारा. वह लिखते हैं कि भारत में "परमिट राज" का एक लंबा इतिहास रहा है. जिसने लंबे समय तक देश की इकनॉमिक ग्रोथ को जकड़ रखा था, हमें इस तरह की पुरानी आदतों की तरफ फिसलने के जोखिम से बचना होगा.

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