ADVERTISEMENTREMOVE AD

लॉकडाउन के 6 महीने बाद, हम कहां खड़े हैं, किधर को जा रहे हैं?

तब स्थिति क्या थी? आज क्या हालात हैं, दोनों की तुलना पढ़िए-समझिए और लॉकडाउन से क्या बदला वो जानिए.

Updated
भारत
3 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

24 मार्च, 2020. दुनियाभर के कई देशों में चीन से निकले कोरोना वायरस का हाहाकार मचा था. किसी देश को साफ-साफ कुछ पता नहीं कि संक्रमण के लक्षण क्या हैं, मास्क पहने तो कौन सा? अफरातफरी में कुछ देश लॉकडाउन का ऐलान कर चुके हैं और फिर पीएम मोदी का देश के नाम संबोधन आता है कि देशभर में कोरोना वायरस की स्थिति को देखते हुए 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान कर दिया गया है.

तब स्थिति क्या थी? 24 मार्च 2020 को सुबह 8 बजे जारी हुए स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में 500 से कम कोरोना वायरस मरीज थे. 9 लोगों की मौत हुई थी. अब 6 महीने बीच चुके हैं. सबसे ज्यादा करोना संक्रमण के मामले में भारत दुनियाभर में दूसरे नंबर पर है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ऐसे में कुछ एक्सपर्ट ये सवाल पूछते रहते हैं कि आखिर इस लॉकडाउन से हमें क्या मिला? जाहिर है कि पक्ष-विपक्ष दोनों के अपने तर्क हैं लेकिन मौजूदा आंकड़े ये बता रहे हैं कि 6 महीने बाद कोरोना संक्रमण के लिहाज से स्थिति नाजुक है. पिछले 24 घंटे में देश में कोरोना वायरस के 86,508 मामले सामने आए और कुल आंकड़ा 57 लाख से ज्यादा तक पहुंच गया है.

तब स्थिति क्या थी? आज क्या हालात हैं, दोनों की तुलना पढ़िए-समझिए और लॉकडाउन से क्या बदला वो जानिए.
0

पीएम मोदी समेत कई केंद्रीय मंत्री ऐसा कहते आए हैं कि लॉकडाउन अगर नहीं लगा होता तो स्थिति और भी बदतर होती, इस बात को नकारा नहीं जा सकता. लेकिन लॉकडाउन का कोरोना वायरस संक्रमण पर असर हुआ हो या नहीं करोड़ों की संख्या में प्रवासी मजदूरों, आम लोगों और इकनॉमी पर जबरदस्त नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में -23.9% रेट के साथ जीडीपी के आंकड़े पाताल में पहुंच गए हैं. बताया जा रहा है कि ये पिछले 40 साल का सबसे बड़ी गिरावट है.

तब स्थिति क्या थी? आज क्या हालात हैं, दोनों की तुलना पढ़िए-समझिए और लॉकडाउन से क्या बदला वो जानिए.

पिछले 6 महीनों में प्रवासी मजदूरों के पलायन की दिल दहला देने वाली तस्वीरें आपने देखीं होंगी. किसी ने सड़क दुर्घटना में जान गंवा दी तो कोई हजार-दो हजार किलोमीटर पैदल ही अपने गांव की ओर निकल गया. इन तस्वीरों को देखकर आप अगर ये सोचते थे कि सरकार से ये जान लेंगे कि कितने मजदूरों की मौत हुई, तो आप गफलत में थे. सरकार के पास इसका कोई आंकड़ा है ही नहीं. केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय ने 14 सितंबर को संसद में बताया कि उसके पास डेटा नहीं है कि देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान कितने प्रवासी मजदूरों ने अपनी जान गंवाई. मंत्रालय ने ये भी कहा कि जब ऐसा कोई डेटा इकट्ठा नहीं किया है, तो इन लोगों को कोई मुआवजा कैसे दिया जाए. मंत्रालय ने ये जरूर बताया कि उसके आंकड़ों के मुताबिक, 1 करोड़ 6 लाख प्रवासी मजदूर ऐसे थे जो मार्च-जून के भीतर अपने घरों को वापस गए, इनमें पैदल घर वापस जाने वाली भी जनता शामिल है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कुछ संस्थाएं हैं जो ऐसे डेटा जुटाती रहती हैं ताकि सही तस्वीर सामने आ सके. ऐसी ही संस्था CMIE जिसके अनुमान के मुताबिक, अप्रैल में लॉकडाउन के बाद करीब 9 करोड़ से ज्यादा दिहाड़ी मजदूरों का रोजगार छिन गया.

नौकरीपेशा लोगों की बात करें तो CMIE के ही आंकड़े बताते हैं कि हर तरह के रोजगार में 2.1 करोड़ नौकरियों की कमी हुई है. जुलाई में लगभग 48 लाख लोगों की नौकरियां गईं और अगस्त में 33 लाख नौकरियां लोगों ने गंवाई हैं.

कुल मिलाकर, ये 6 महीना देश के लिए भयानक सपना साबित हुआ है.डरावनी बात ये है कि ये दु:स्वप्न अभी टूटा नहीं है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें