“’सरजी, प्लीज जाने दो.’ मैंने उनसे हाथ जोड़ के भीख मांगी.”
मेरठ पुलिस के एक सिपाही ने 12 साल के अभिषेक जाटव को उसकी विनती के जवाब में कथित रूप से दो चांटे मारे और एक जीप में धकेल दिया, जहां दूसरे बच्चे भी थे.
“ मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि मेरे साथ क्या हुआ है. पूरी तरह शांति थी . सिर्फ कानों में झन्नाटेदार थप्पड़ों की गूंज सुनाई पड़ रही थी.”
2 अप्रैल का वो मनहूस लम्हा
अभिषेक को दलित समुदाय के कई और लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया था जब 2 अप्रैल को एससी-एसटी एक्ट को कमजोर करने के खिलाफ मेरठ समेत पूरे भारत में लोग सड़कों पर उतर आए थे. इस दौरान हिंसा में नौ लोगों की मौत हो गई थी. इनमें दो उत्तर प्रदेश से थे. मेरठ के एसपी सिटी रणविजय सिंह के दफ्तर के मुताबिक करीब 100 एफआईआर दर्ज हुए और 92 लोगों को गिरफ्तार किया गया.
जब अभिषेक मेरठ से थोड़ी दूर मवाना में मौजूद अपनी चाची लक्ष्मी (22 साल) के घर से निकला तो उसे इस बात का बिल्कुल अंदेशा नहीं था कि आगे क्या होने वाला है. ऑटो ड्राइवर ने रास्ता जाम दिखाकर यात्रियों को उतार दिया था. अभिषेक भी उतर गया. और जब वह डिवाइडर पर चलते हुए घर की ओर बढ़ने लगा, तो रास्ते में उसे गुस्साए पुलिसवालों ने रोक दिया.
लक्षमी ने द क्विंट को बताया, “मुझे पता होता कि बाहर क्या हो रहा है, तो मैं उसे हरगिज जाने नहीं देती.”
अभिषेक पर भारतीय दंड संहिता की धारा 147 (दंगा फैलाना), 148 (खतरनाक हथियारों से लैस रहना), 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र), 295 (डकैती), 307 (हत्या का प्रयास), 336 (दूसरे को खतरे में डालने वाला काम करना) और आपराधिक नियम (संशोधित कानून) की धारा 7 के साथ-साथ दूसरी धाराएं भी लगा दी गईं.
अभिषेक की मां 32 वर्षीय सुन्दरी कहती हैं-
मेरे बच्चे को देखो. ऐसा लगता है कि उसने किसी की हत्या की कोशिश की है? सरकार दलित समुदाय के लिए नहीं है. पुलिस दलित समुदाय के लिए नहीं है.
लॉक-अप में पहली रात अभिषेक बिल्कुल नहीं सोया. उसने बताया, “थाने पर लाने के बाद उन्होंने मुझे कोने में खड़ा रहने को कहा क्योंकि वहां मौजूद लोगों में मैं सबसे छोटा था.”
अभिषेक जीवित और सुरक्षित होगा, इस उम्मीद के साथ उसका परिवार एक थाने से दूसरे थाने खोजता रहा. नफरत का भाव लाते हुए उसकी मां उस वक्त को याद करती है,
हमें वह सिविल लाइन्स थाने में मिला. जब हमने अफसरों से पूछा कि क्या हम लोग मिल सकते हैं, तो पुलिस वाले ने कहा, ‘वो यहां है लेकिन हम तुम लोगों को उससे मिलने नहीं देंगे. और अगर तुम लोग नहीं जाते तो हम तुम्हें भी यहीं बंद कर देंगे.
उन्होंने दूर से ही अपने बेटे को देखा और असहाय होकर थाने से लौट चले. नींद से दूर बड़ी-बड़ी आंखें और अब भी यह समझने की कोशिश करते हुए कि टेम्पो से उतरने के बाद क्या हुआ था, अभिषेक ने खुद को अगली सुबह जुवेनाइल होम में पाया.
खौफ इतना कि अब अकेले सो नहीं पाता अभिषेक
अभिषेक ने बताया, मैं कई रात ठीक से सो नहीं पाया. 8 जून को जमानत मिलने के बाद उसने अपने परिजनों के साथ कमरे में सोने पर जोर दिया. जुवेनाइल होम में बिताई गई रातों को याद करते हुए उसने कहा, “वहां बिजली नहीं थी और रात होने पर वे हमें एक मोमबत्ती तक नहीं देते थे ”
जुवेनाइल होम में टॉयलेट साफ कराया गया
जुवेनाइल होम्स में केवल आपको अपने परिवार से हर सोमवार को मिलने की इजाजत होती है. वह अपनी मां की ओर देखते हुए कहता है, “हर बार मेरी मां मुझसे मिलने आती. मैं उनसे बाहर ले जाने की विनती करता.” उसकी मां सुन्दरी बताती हैं कि जेल में समय बिताने के बाद उसके व्यवहार में बहुत बड़ा बदलाव आ गया. उसने द क्विंट को बताया, “वह सबकुछ सुनता है. वह सख्ती से बात नहीं करता. यह दिल को झकझोरने वाला है कि उसे जेल में रहने के बाद ही यह सब सीखना था.”
अभिषेक और उसके भाई-बहन संध्या और हर्ष की मौजूदगी में कालियागढ़ी में एक बार जो कुछ हुआ वह पूरे घर को हिला देने वाला है. उसे याद करते हुए संध्या कहती है,“ रिश्तेदार उसके बारे में पूछा करते. वह मेरा छोटा भाई है कोई आतंकी नहीं, जिसे वे गिरफ्तार कर पुलिसवाले अपने साथ ले गए.”
घरवाले उसे अपने घर में अक्सर अकेला छोड़ दिया करते थे जबकि जुवेनाइल होम में बड़े लोग कथित रूप से उसे धमकाया करते थे. उसने बताया, “ वे मुझे झाडू पोंछा और टॉयलेट साफ करने के लिए इस्तेमाल करते थे. यहां तक कि जिस दिन वहां से निकल रहा था, उस दिन भी वहां के लोगों ने मुझे सब कुछ अच्छी तरह से साफ करने को कहा था.”
अभिषेक की मां याद करती है कि उसे जमानत दिलाना कोई आसान काम नहीं था. उसने कहा, “जिस पहले वकील के पास हम गए, वह हमारे बच्चे को निकालने पर काम नहीं कर रहा था. इसलिए हम मेरठ बार एसोसिएशन के पास गए और दो नए वकीलों को पकड़ा, जिन्होंने हमारी मदद की.”
मेरठ बार एसोसिएशन में थूक-पीक से भरी दीवारों के बीच हमने सतीश कुमार राजवाल और सतेन्द्र कुमार सिंह से मुलाकात की. ये लोग ऐसी जगह बैठे थे जहां रोशनी कम थी और जिसे वकीलों की ओर से दफ्तर के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा था. यहीं 2 अप्रैल को विरोध प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार लोगों के ट्रायल के सिलसिले में संबंधियों की भीड़-भाड़ थी.
हर सुनवाई में फूट-फूट कर रोता था वो
सतेन्द्र कुमार ने कहा, “हर सुनवाई में जब कभी भी बच्चा आया वह फूट-फूट कर रोया. मासूम नहीं जानता था उसे किस बात की सज़ा दी जा रही है और वह क्यों बंदी है.“ उन्होंने आगे बताया कि अभिषेक को 5 या 6 अप्रैल को ही छूट जाना चाहिए था, लेकिन उसके बाद भी कैद में जो समय बीतता रहा उसने प्रशासन का भय बच्चे के मन में डाल दिया. वे कहते हैं, “यह न्याय नहीं है.” राजवाल ने कहा कि उसकी मां की बिगड़ती हालत हर सुनवाई के दौरान सबको दिख रही थी.
उसकी आवाज टूट रही थी जब उसकी मां ने पूछा, “क्या नसीब में लिखा था मेरे 12 साल के बच्चे के लिए जेल का खाना? वह बताती है कि जब तक दो महीने और पांच दिन तक उसका बेटा जेल में रहा, वह लगातार हाई बीपी और बेचैनी की शिकार रही.
पुलिस हालांकि हर गिरफ्तारी का आधार रखती है. मेरठ के एसपी सिटी रणविजय सिंह ने द क्विंट को बताया, “बच्चे की गिरफ्तारी हुई क्योंकि वे हिंसाग्रस्त इलाके में मौजूद थे और उनके खिलाफ वीडियो प्रमाण हैं.”
लंबी लड़ाई की तैयारी
अभिषेक को केवल जमानत मिली है. हालांकि केस खत्म होने में वक्त लगेगा. यह केस अब ट्रायल के साथ आगे बढ़ेगा और लगातार अदालतों के चक्कर काटने होंगे, वकीलों के साथ बैठकें होंगी और अनगिनत सुनवाई होंगी. लेकिन, दो महीने के बाद उसके परिवार ने उस कैरम बोर्ड को साफ कर लिया है जिसका इस्तेमाल बंद हो गया था और उसे भरपूर पाउडर के साथ पहले जैसा बना दिया गया है.
12 साल का दलित बच्चा अपने परिवार की मदद से अब खुद को अदालत की लंबी लड़ाई के लिए तैयार कर रहा है.
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